सौरमंडल का इकलौता ग्रह जिस पर जीवन पाया जाता है, अब तपती भट्टी बनने की ओर बढ़ता जा रहा है। हमारी पृथ्वी बहुत तेजी से गर्म हो रही है। इसका कारण हम हर साल बदलते मौसम के रूप में देखते आ रहे हैं। उत्तर भारत में सर्दियों का मौसम अभी खत्म भी नहीं हुआ है लेकिन तापमान में बडोतरी होती जा रही है। मीठी ठंड का अहसास कराने वाली फरवरी इन दिनों 27 डिग्री तापमान के साथ गर्मी का एहसास दिलाने लगा है। ऐसा सिर्फ भारत ही नहीं हो रहा,इसका असर पूरी दुनिया के हर हिस्से में हो रहा है। मौसम अपना मिजाज बदल चुका है और अब बाढ़, चक्रवात, तूफान, बर्फबारी और शरीर को जलाती गर्मी का रौद्र रूप लोग देख रहे हैं।
गर्म होती धरती को आग की भट्टी बनने से रोकने के लिए वैज्ञानिक अब एक अलग ही रास्ते अपना रहे हैं। बढ़ते प्रदूषण पर लगाम लगाने की कोशिश और कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा घटाकर इतनी जल्दी शायद दुनिया को तबाही से न बचाया जा सके, लेकिन अगर सूरज से आ रही गर्मी को ही कम नहीं किया गया तो दुनिया का अंत हो जाए गा।
दुनिया भर के वैज्ञानिक ऐसी तकनीक पर काम कर रहे हैं जो सूरज की गर्मी को कम कर देगी। यह कुछ ऐसा है जैसे ज्वालामुखी से निकली राख का गुब्बार सूरज की ओर आ रही किरणों को धरती पर पड़ने से रोक देगा। इससे सूरज की किरणों की गर्मी को धरती पर कम मात्रा में आने देने का प्रयास किया जाएगा। रिसर्च इस सिद्धांत पर आधारित है कि प्लेन और बड़े गुब्बारों की मदद से पृथ्वी के वायुमंडल की परत, जिसे समताप मंडल कहते हैं, में सल्फर का छिड़काव किया जाएगा जिससे वह सूरज की किरणों को रिफ्लेक्ट यानि परावर्तित कर देगा और धरती पर सूरज से कम गर्मी भीतर पहुंच पाएगी। इससे धरती के बढ़ते तापमान को नियंत्रित रखने में मदद मिलेगी। यह प्रक्रिया बहुत जल्दी नतीजे देने में कामयाब होगी। बजाए कि पूरी दुनिया को कार्बन जीवाश्म रहित ईंधन वाले ईकोसिस्टम पर शिफ्ट करने के।
रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, इस स्थिति में डिग्रीज इनिशिएटिव नामक एनजीओ ने काफी उन्नति की है और इस पर रिसर्च के लिए 9 लाख डॉलर के करीब फंडिंग किए जाने की बात कही जा रही है। जिसमें नाइजीरिया, चिली और भारत जैसे 15 देशों के शोधकर्ता शामिल होंगे। इसे सोलर रेडिएशन मॉडिफिकेशन भी कहा जाता है। इस फंडिंग के जरिए इस प्रक्रिया में कम्प्यूटर मॉडलिंग से लेकर स्टडी तक पर सभी तरह का खर्च किया जाएंगे जिस से सूरज की तपन को कम करने में जल्द से जल्द उपाय मिल सके। सोलर जियोइंजीनियरिंग सुनने में जितना सरल और कारगर लग रहा है, इसके साथ उतने ही जोखिम के बारे में भी बताया जा रहा है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि सोलर रेडिएशन मॉडिफिकेशन हमारे जलवायु तंत्र पर बुरा असर डाल सकती है। जिससे मानसून से लेकर, आंधियां, ग्रीष्मलहर और जैव विविधता आदि सभी प्रभावित हो सकते हैं। इससे साउथ अफ्रीका जैसे देशों का सूखे का विशाल रूप देखने को मिल सकता है। या फिर फिलिपीन्स में चावल और मका का उत्पादन भी बुरी तरह से प्रभावित हो सकता है। हार्वर्ड और ऑक्सफोर्ड जैसी यूनिवर्सिटी भी इस रिसर्च पर अपनी एड़ी से सर तक का जोर लगाने में लगी है। दुनिया के कई हिस्सों में इसका विरोध भी सामने आया है क्योंकि एक तरफ जहां यह रिसर्च ग्लोबल वार्मिंग को कम करेगी, दूसरी ओर इसके जलवायु तंत्र पर बहुत गहरे प्रभाव होने की संभावना भी है।