KNEWS DESK- 1947 में जब भारत और पाकिस्तान दो स्वतंत्र देशों के रूप में अस्तित्व में आए, तब सिर्फ ज़मीन, संस्थान और संपत्तियों का ही नहीं, बल्कि सेना का भी बंटवारा हुआ। यह प्रक्रिया न केवल जटिल थी बल्कि बेहद संवेदनशील भी। उस समय ब्रिटिश इंडियन आर्मी में कुल लगभग 3,91,000 सैनिक थे, जिनका बंटवारा दोनों देशों की जनसंख्या और ज़रूरतों के आधार पर किया गया।
सेना के बंटवारे में भारत को लगभग 2,60,000 सैनिक मिले, जिनमें अधिकांश हिंदू और सिख समुदाय से थे। वहीं पाकिस्तान को लगभग 1,40,000 सैनिक मिले, जिनमें ज्यादातर मुस्लिम सैनिक शामिल थे। बंटवारे के समय सैनिकों को यह विकल्प दिया गया कि वे भारत या पाकिस्तान में से किसी एक को चुन सकते हैं, लेकिन एक शर्त यह भी थी कि भारत की सेना में कोई मुस्लिम पाकिस्तानी नहीं जा सकता और पाकिस्तानी सेना में कोई गैर-मुस्लिम भारतीय नहीं शामिल हो सकता।
इस नियम के तहत करीब 98% मुस्लिम सैनिकों ने पाकिस्तान को चुना, जबकि केवल 554 मुस्लिम अधिकारी ऐसे थे जिन्होंने भारत में ही रहने का फैसला किया और भारतीय सेना में सेवा दी। सेना के साथ-साथ वायुसेना और नौसेना का भी बंटवारा हुआ।
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वायुसेना में कुल 13,000 कार्मिक थे, जिनमें से 10,000 भारत को और 3,000 पाकिस्तान को मिले।
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नौसेना में कुल 8,700 जवान थे, जिनमें 5,700 भारत के हिस्से में आए और 3,000 पाकिस्तान को दिए गए।
इस बंटवारे की पूरी प्रक्रिया ब्रिटिश फील्ड मार्शल सर क्लाउड औचिनलेक की निगरानी में संपन्न हुई। उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि बंटवारा निष्पक्ष हो और दोनों देशों को कार्यशील सैन्य ढांचा मिल सके।
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