KNEWS DESK ……आधुनिक युग की दुनिया में बच्चे को मोबाइल से अलग करना एक बड़ी चुनौती है। बच्चे दिनरात मोबाइल पर शॉर्ट वीडियो,गेम,..आदि में लगे हुये हैं।बच्चों को ऐसी गेम खेलने की तो ऐसी आदत लगी कि अब ये एक तरह का डिसऑर्डर बन चुकी है। कई बच्चों ने तो इसके चलते खतरनाक कदम भी उठाए हैं। इस डिसऑर्डर का पता पेरेंट्स को तब लगा जब बच्चा बात-बात पर मोबाइल मांगने की जिद करने लगा। रात-रात भर जागने लगा।पहले जहां ये बीमारी 18 साल से ज्यादा उम्र के युवाओं में देखने को मिलती थी वहीं अब छोटे बच्चे भी इसकी गिरफ्त में आ रहे हैं। गेमिंग डिसऑर्डर को वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन ने इंटरनेशनल डिजीज की कैटेगरी में रखा है।
गेमिंग डिसऑर्डर
गेमिंग डिसऑर्डर एक मानसिक बीमारी है, जिसे विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) भी मानता है। गेमिंग डिसऑर्डर की बीमारी तब होती है जब व्यक्ति गेम खेलने का आदी हो जाता है, चाहकर भी उसकी गेम खेलने की आदत नहीं छूट पाती। गेम खेलने की इस लत के कारण उसका काम, नींद, डाइट यों कहें कि पूरी लाइफस्टाइल प्रभावित होने लगती है।जब गेमिंग की आदत व्यक्ति के रोजमर्रा के जीवन, रिश्तों, काम, पढ़ाई या अन्य महत्वपूर्ण चीज़ों को प्रभावित करने लगे तो समझ जाएं कि आप हो चुके हैं गेमिंग डिसऑर्डर का शिकार।
इससे बचाव के उपाय
बच्चे को मोबाइल और लैपटॉप से दूर रखने की कोशिश करें।
– बच्चे आपको डिस्टर्ब न करें इसलिए उन्हें मोबाइल न पकड़ाएं।
– बच्चों को मोबाइल दिया है तो उसकी मॉनिटरिंग करते रहें।
– अगर किसी साइट पर ज्यादा वक्त गुजार रहा है, तो अलर्ट हो जाएं।
– बच्चों के साथ खुद शतरंज, लूडो या आउटडोर गेम्स खेलें।
– बेवजह के एप डाउनलोड न करें , रात को बच्चों को मोबाइल न दें।