KNEWS DESK – चूहों को पकड़ने के कई तरीके हैं, साथ ही बाजार में भी कई तरह के प्रोडक्ट्स मिलते हैं जिनकी मदद से हम चूहों को पकड़ सकते हैं| बाजार में मिलने वाले ग्लू पेपर बोर्ड का इस्तेमाल चूहों को पकड़ने में किया जाता है | कई राज्यों ने इस पर बैन लगा रखा है| अब पंजाब में भी इसकी मैन्युफैक्चरिंग, बिक्री और इस्तेमाल करने पर बैन लगा दिया गया है| आपको इसके बैन होने की वजह बताते हैं|
पंजाब में भी बैन हुआ ग्लू पेपर बोर्ड
दिल्ली, महाराष्ट्र, कर्नाटक समेत कई राज्यों के बाद, अब पंजाब सरकार ने भी चूहे को पकड़ने वाले ग्लू पेपर बोर्ड को बैन करने का फैसला लिया है| पंजाब में इसकी मैन्युफैक्चरिंग, बिक्री और इस्तेमाल करने पर बैन लगा दिया गया है| यह एक खास तरह का बोर्ड होता है जिस पर गोंद लगा होता है| इसे घर के उस हिस्से में रखा जाता है जहां चूहे के फंसने का खतरा ज्यादा होता है| जैसे ही इस पर चूहा आता है चिपक जाता है| इसके बाद इसे फेंक दिया जाता है|इस फैसले के बाद पेपर बोर्ड को बैन करने वाला पंजाब 17वां ऐसा राज्य बन गया है|
प्रतिबंध की वजह
लोग इसका इस्तेमाल चूहों के साथ गिलहरियों और पक्षियों को भी मारने में भी कर रहे हैं| लम्बे समय से चूहों को इस तरह से मारने को लेकर सवाल उठ रहे हैं| चूहों को इतनी कूर मौत देने पर अलग-अलग राज्यों के सामाजिक कार्यकर्ताओं ने सरकार से इसे बैन करने की अपील की| सोशल मीडिया पर इसको लेकर कैम्पेन चलाए गए| इसके साथ ही पशुओं के हितों की रक्षा करने वाले संगठन पेटा (PETA) ने भी इस पर बैन लगाने की मांग की|
पेटा इंडिया ने की मांग
पेटा इंडिया ने लगातार इसे बैन करने की मांग की है| महाराष्ट्र के मामले में संस्था ने कहा कि एनिमल हज्बैंड्री कमिश्नरेट ने एक लेटर जारी किया है, जिसमें सभी जिलों के उप पशुपालन आयुक्तों और सदस्य सचिवों, सोसाइटी फॉर प्रिवेंशन ऑफ क्रुएल्टी टू एनिमल्स से जुड़ी चीजों की बिक्री पर रोक लगाने का निर्देश दिया है| लेटर में इस ग्लू बोर्ड के खिलाफ भारतीय पशु कल्याण बोर्ड (एडब्ल्यूबीआई) की एक सलाह का हवाला दिया गया है क्योंकि इनका उपयोग पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 की धारा 11 का उल्लंघन करता है|
मामला सिर्फ क्रूरतापूर्वक हुईं चूहों की मौत का नहीं था, देश के कई राज्यों में इस ग्लू बोर्ड का इस्तेमाल करने पर दूसरे जीवों के फंसने के मामले सामने आए| घर में ग्लू बोर्ड रखने पर चिड़िया, गिलहरी, बिल्ली के छोटे बच्चे फंस जाते थे| बेंगलुरू के फॉरेस्ट अधिकारियों के पास हर महीने ऐसे 20 से 25 मामले सामने आने के बाद इसे बैन करने की मांग उठी थी| मामला चर्चा में आने के बाद एक के बाद एक राज्य ने इसे प्रतिबंधित किया|
कार्रवाई की मांग
सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना था कि ऐसा करने वालों पर पशु क्रूरता अधिनियम 1960 के तहत कार्रवाई की जानी चाहिए| इस पर एक्शन लेते हुए कर्नाटक, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, अरुणाचल प्रदेश, गोवा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर, लद्दाख, लक्षद्वीप, मेघालय, मिजोरम, सिक्किम, तमिलनाडु, तेलंगाना, उत्तराखंड और पश्चिम बंगाल की सरकार ने इस पर बैन लगाया|
दिल्ली में भी प्रतिबंध लगने के बाद पेटा इंडिया ने सरकार का आभार जताते हुए कहा था कि यह अनगिनत जानवरों को बचाने के लिए अहम कदम है, जिसकी हम सराहना करते हैं|