चेन्नई। पोंगल दक्षिण भारत का प्रमुख त्योहार है। इसे मुख्य रूप से तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में मनाया जाता है। चार दिन तक चलने वाला यह त्योहार पारंपरिक फसल उत्सव है। इस दौरान भगवान सूर्य की पूजा की जाती है। उन्हें अच्छी फसल के लिए धन्यवाद दिया जाता है और कामना की जाती है कि अगली फसल भी ठीक हो। उत्तर भारत में इस त्योहार को मकर संक्रांति के नाम से मनाया जाता है। इस साल पोंगल 15 जनवरी से 18 जनवरी तक मनाया जाएगा। इस दौरान भगवान सूर्य को दूध और चावल चढ़ाया जाएगा और जल्लीकट्टू जैसे खेल आयोजित होंगे। इन चार दिनों को भोगी पोंगल, सूर्य पोंगल, मट्टू पोंगल और कनुम पोंगल के रूप में जाना जाता है।
तमिलों के लिए पोंगल का है खास महत्व
तमिलों के लिए पोंगल उत्सव का खास महत्व है। इस महीने को थाई महीने के रूप में जाना जाता है। तमिलनाडु के लोगों का मानना है कि यह उनके जीवन में सकारात्मक बदलाव लाता है और उनकी समस्याओं को दूर करने में मदद करता है। इसी महीने गन्ना, हल्दी और चावल की फसल को काटा जाता है। यह महीना विवाह, सगाई और सभी धार्मिक कार्यों के लिए शुभ माना जाता है। पोंगल का त्योहार मूल रूप से कृषि से संबंधित पर्व होता है। तमिल कैलेंडर के अनुसार जब सूर्य 14 या 15 जनवरी को धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करते हैं तब यह नववर्ष की पहली तारीख होती है। पोंगल पर तमिलनाडु में गन्ने और धान की फसले तैयार हो जाती है। जिसे किसान देखकर बहुत प्रसन्न होते हैं। किसान अपनी फसलों के तैयार होने की खुशी में प्रकृति का आभार प्रगट करने के लिए हर साल मकर संक्रांति के दिन से इंद्रदेव, सूर्यदेव और पशुधन की पूजा करते हैं। पोंगल पर घरों की विशेष रूप से साफ-सफाई और सजावट की जाती है।
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान शिव ने नश्वर लोगों को मासिक भोजन, तेल मालिश और स्नान करने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए अपने बैल नंदी को पृथ्वी पर भेजा था। हालांकि, नंदी ने सभी को प्रतिदिन भोजन करने के अलावा महीने में एक बार तेल स्नान करने की सलाह दी। भगवान शिव ने क्रोधित होकर नंदी को हमेशा पृथ्वी पर रहने का आदेश दिया। उन्होंने कहा कि नंदी हल चलाएगा और अनाज और अन्य खाद्य पदार्थ उपजाने में दूसरों की सहायता करेगा। इसलिए इस दिन को फसल की कटाई, नई फसल की बुआई और जानवरों के लिए मनाया जाता है।
चार दिनों का त्योहार है पोंगल
मकर संक्रांति पर मनाया जाने वाला पोंगल तमिलनाडु में बहुत ही जोश और उमंग के साथ मनाया जाता है। पोंगल का त्योहार चार दिनों तक चलता है। पहले दिन को भोगी पोंगल कहा जाता है, दूसरे दिन को सूर्य पोंगल, तीसरे दिन को मट्टू पोंगल के तौर पर और चौथे दिन कन्नम पोंगल मनाया जाता है। चार दिनों तक चलने वाले पोंगल पर्व पर हर दिन अलग-अलग तरीके से मनाएं जाने की परंपरा निभाई जाती है।
भोगी पोंगल के रूप में मनाया जाता है पहला दिन
पोंगल त्योहार चार दिन तक चलता है। इसके पहले दिन को भोगी पोंगल के रूप में मनाया जाता है। इस दिन भगवान इंद्र की पूजा की जाती है। उन्हें धरती पर समृद्धि लाने का श्रेय दिया जाता है। इंद्र की पूजा बारिश के देवता के रूप में होती है। भोगी पोंगल को भोगी मांटालू के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन लोग लकड़ी और गोबर के उपले की आग में अपने घरेलू सामान को जलाते हैं। महिलाएं अलाव के चारों ओर नृत्य करती हैं और भगवान की स्तुति में गीत गाती हैं।
सूर्य पोंगल के रूप में मनाया जाता है दूसरा दिन
पोंगल के दूसरे दिन को सूर्य पोंगल के रूप में मनाया जाता है। इसे समृद्धि लाने वाला माना जाता है। इस दिन सुबह ताजे दूध को उबाला जाता है। चावल, दूध और गुड़ से पारंपरिक मिठाई “पोंगल” तैयार किया जाता है। इसे भगवान सूर्य को प्रसाद के रूप में चढ़ाया जाता है। तमिलनाडु के विभिन्न क्षेत्रों की महिलाएं एक जगह पर इकट्ठा होती हैं और एक साथ मिलकर त्योहार मनाती हैं। केला, नारियल और गन्ना भी सूर्य देव प्रसाद के रूप में चढ़ाया जाता है।
मट्टू पोंगल के रूप में मनाया जाता है तीसरा दिन
तीसरे दिन को मट्टू पोंगल के रूप में मनाया जाता है। इस दिन गौ माता की पूजा की जाती है। किसान अपने बैलों की पूजा करते हैं। उन्हें फसल उगाने और काटने में मदद के लिए सम्मानित किया जाता है। जानवरों को नहलाने के बाद विभिन्न रंगों से सजाया जाता है। उनके सींगों को रंगा जाता है और माला पहनाई जाती है। इस दिन सांडों की लड़ाई का आयोजन किया जाता है। इसे जल्लीकट्टू कहा जाता है।
कन्नम पोंगल के साथ होता है त्योहार का समापन
चौथे दिन कन्नम पोंगल मनाया जाता है। इसके साथ ही चार दिन तक चलने वाले पोंगल त्योहार का समापन होता है। तमिलनाडु के कई क्षेत्रों में इसे करिनाल के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन लोग सूर्य भगवान को पोंगल और गन्ना का प्रसाद चढ़ाते हैं। लोग कन्नुम पोंगल के दिन अपने करीबी दोस्तों और रिश्तेदारों से मिलने जाते हैं। कन्नम पोंगल के दौरान स्थानीय नृत्य भी किया जाता है।