International Women’s Day 2024: वुमेंस डे के मौके पर बॉलीवुड में काम करने वाली महिलाओं ने कहा, ‘जेंडर भेदभाव अब भी हावी…’

KNEWS DESK- बॉलीवुड में फिल्म मेकिंग, स्टंट, गाने लिखने और एडिटिंग जैसी फील्ड में पर्दे के पीछे काम करने वाली महिलाओं का मानना है कि बदलाव एक प्रक्रिया है और हमेशा सुधार की गुंजाइश होती है। इंटरनेशनल वुमेंस डे के मौके पर ये महिलाएं अपने अब तक के संघर्ष और आगे के सफर को लेकर अपनी बात सामने रख रही हैं।

फिल्ममेकर अश्विनी अय्यर तिवारी, फिल्म एडिटर श्वेता वेंकट, स्टंट आर्टिस्ट रेशमा पठान, गीतकार-लेखक कौसर मुनीर और राइटरर स्नेहा देसाई ने फिल्म इंडस्ट्री में अपने अनुभवों के बारे में पीटीआई वीडियो से बात की। ‘निल बटे सन्नाटा’, ‘बरेली की बर्फी’ और ‘पंगा’ जैसी फिल्मों से पहचान बनाने वाली अश्विनी अय्यर ने कहा कि महिलाओं की असली जीत तब होगी जब उन्हें पहले अपने जेंडर और बाद में अपने प्रोफेशन से पहचाना जाना बंद किया जाएगा।

फिल्ममेकर अश्विनी अय्यर तिवारी का कहना है कि जब आप डॉक्टर, इंजीनियर या पायलट के पास जाते हैं तो आप नहीं सोचते कि वे पुरुष हैं या महिला हैं लेकिन शुरू में ऐसा इसलिए था क्योंकि एक महिला को पायलट के रूप में रखने का आइडिया बहुत अच्छा था। उनका मानना है कि अब महिला डायरेक्टर शब्द का इस्तेमाल बंद कर देना चाहिए और उसकी जगह सिर्फ डायरेक्टर कहना चाहिए। उनका कहना है कि जब से उन्होंने विज्ञापन में शुरुआत की और बाद में फिल्मों में स्विच किया, तब से बहुत कुछ बदल गया है।

रेशमा पठान, यकीनन भारत की पहली स्टंट वुमन हैं, जिन्होंने अलग-अलग भाषाओं में 500 से ज्यादा फिल्मों में काम किया है। उनका कहना है कि प्रोड्यूसरों ने उनके साथ महिला होने की वजह से कभी भेदभाव नहीं किया लेकिन उन्हें स्टंट की दुनिया से जुड़े कई दूसरे लोगोंं के तानों का सामना जरूर करना पड़ा। उनके मुताबिक, पैसे भी ज्यादा नहीं मिलते थे।

हेमा मालिनी, वहीदा रहमान, रेखा और श्रीदेवी सहित 70 और 80 के दशक की प्रमुख अभिनेत्रियों के लिए स्टंट डबल का काम कर चुकीं पठान ने कहा कि जब वे 70 और 80 के दशक में फिल्म जगत में आईं तो स्टंट डिपार्टमेंट में कोई महिला नहीं थी।

वहीं ‘अंजाना अंजानी’, ‘इशकजादे’, ‘एक था टाइगर’ और ’83’ में गीत लिखने के लिए पहचाने जाने वाले मुनीर ने कहा कि एक धारणा है कि कविता और संगीत पुरुषों के डोमेन हैं। उन्होंने कहा कि जब ज्यादा महिलाएं इस पेशे में शामिल होंगी तो चीजें बेहतर होंगी।

कंसल्टिंग फर्म ऑरमैक्स मीडिया की बिजनेस डेवलपमेंट (स्ट्रीमिंग, टीवी एंड ब्रांड्स) हेड कीरत ग्रेवाल के मुताबिक, सिनेमा आउटलेट फिल्म कंपेनियन के साथ भारतीय मनोरंजन उद्योग में महिला प्रतिनिधित्व पर उनकी सालाना रिपोर्ट दिखाती हैं कि स्ट्रीमिंग और थियेटर में प्रमुख एचओडी पदों पर महिला प्रतिनिधित्व के मामले में सुई ज्यादा नहीं बढ़ी है।

वहीं ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ और ‘न्यूटन’ जैसी फिल्मों की एडिटिंग करने वाली वेंकट ने कहा कि वे इस पेशे में करीब 25 साल से हैं और पेशे से जुड़े मुद्दे तो हैं लेकिन जेंडर से जुड़ा मुद्दा कम हुआ है।