महिला आरक्षण बिल : 27 वर्षों में 8 बार हुआ रिजेक्ट, 9वीं बार पीएम मोदी के हाथ में प्रोजेक्ट, पास हुआ तो रच जाएगा इतिहास!

KNEWS DESK… महिला आरक्षण बिल 27 वर्षों में 8 बार रिजेक्ट हो चुका है अब 9वीं पीएम मोदी के हाथ में प्रोजेक्ट है. जोकि संसद में पेश होने जा रहा है. जिसे मोदी कैबिनेट से मंजूरी मिल गई है. यह बिल लगातार पिछले 27 वर्षों से लटका हुआ था. 8 बार में कभी राज्यसभा से रिजेक्ट हो गया तो कभी लोकसभा से रिजेक्ट हो जा रहा था. लेकिन अब उम्मीद जताई जा रही है कि मोदी सरकार इस बिल को लेकर कोई बड़ा फैसला ले सकती है. वहीं यह बिल पास होते ही महिलाओं को काफी फायदा होगा.

दरअसल, महिला आरक्षण बिल को 15 वर्षों के लिए लागू किया जाना है. इस बिल का लक्ष्य है कि महिलाओं के लिए लोकसभा और राज्यसभा में 33 फीसदी सीटें आरक्षित करना है. इस बिल में 33 फीसदी कोटे में SCST , एंग्लो-इंडियन के लिए फर-आरक्षण के लिए सुझाव हैं. हर बार आम चुनाव के बाद आरक्षित सीटों को रोटेट किए जाने का प्रावधान भी बिल में रहेगा. लेकिन इस बिल में अन्य पिछड़ा वर्ग के लोगों के लिए आरक्षण का प्रावधान नहीं है, जिस कारण विपक्षी दलों द्वारा इस बिल का विरोध किया जाता रहा है।

महिला आरक्षण बिल से होने वाले फायदे

जानकारी के लिए बता दें कि महिला आरक्षण बिल पास होने से देश में पंचायत चुनाव से लेकर विधानसभाओं, विधान परिषदों और संसद में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ेगा. सरकारी निजी क्षेत्र में और साथ ही देश की सियासत में भी महिलाओं की भागीदारी बढ़ेगी. अगर वर्तमान की बात करें तो लोकसभा में 78 महिला सांसद हैं जो कुल 542 का प्रतिशत 15 से भी कम है. राज्यसभा में 32 महिला सांसद हैं जो कुल 238 सांसदों का 11 प्रतिशत हैं. उत्तर प्रदेश, बिहार, हरियाणा, राजस्थान, पंजाब और दिल्ली में 10 से 12 प्रतिशत महिला विधायक हैं.

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अब तक क्या होता रहा बिल का साथ…

गौरबतल हो कि महिला आरक्षण बिल 1996 में पहली बार पेश किया गया था. इस बिल पर अंतिम बार 2010 में चर्चा हुई थी. लेकिन यह बिल 1996 से अब तक लगातार रिजेक्ट होता आ रहा है. आएये जानिए ऐसा क्यों?

12 सितम्बर 1996 को बिल पहली बार एच. डी देवगौड़ा की सरकार में पेश किया गया था. उस समय संविधान के 81वें संशोधन विधेयक के रूप में यह संसद के पटल पर रखा गया था लेकिन बाद में देवगौड़ा सरकार के अल्पमत में आने से 11वीं लोकसभा भंग हो गई और बिल लटक गया.

26  जून 1998 को पीएम अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने बिल को को 12वीं लोकसभा में पेश किया. इस बार बिल को 84वें संशोधन विधेयक बनाकर पेश किया गया, लेकिन विरोध के चलते यह पास नहीं हुआ. वाजपेयी सरकार अल्पमत में आई और 12वीं लोकसभा भंग होने से बिल लटक गया.

 1999  में 13वीं लोकसभा में NDA सरकार एक बार फिर सत्ता में आई, जिसने 22 नवम्बर को महिला आरक्षण बिल संसद के पटल पर रखा, लेकिन इस बिल पर सहमति नहीं बन पाने से यह लटक गया.

भाजपा के नेतृत्व में NDA सरकार ने वर्ष 2002 और 2003 में बिल को संसद में पेश किया, लेकिन इसे पारित नहीं कराया जा सका, जबकि इसका समर्थन देने के लिए कांग्रेस और वामदल आगे आए थे.

6 मई 2008 को कांग्रेस के नेतृत्व में UPA सरकार ने महिला आरक्षण बिल को पारित कराने की इच्छा जताई. इस इरादे से इस बिल को राज्यसभा में पेश किया गया, लेकिन इसे पास नहीं कराया जा सका, लेकिन इसे चर्चा के लिए संसद की स्थायी समिति के पास भेज दिया गया.

17 दिसंबर 2009 को संसद की स्थायी समिति ने अपनी रिपोर्ट पेश की, जिसका समाजवादी पार्टी, जदयू और RJD ने विरोध किया. बावजूद इसके बिल को दोनों सदस्यों में पेश किया गया, लेकिन पास नहीं हो पाया.

2010 में बिल को एक बार फिर पास कराने की कोशिश की गई. 22 फरवरी 2010 को उस समय राष्ट्रपति रही प्रतिभा पाटिल ने अपने संसदीय अभिभाषण में इसे पास कराने की प्रतिबद्धता जताई. 08 मार्च 2010 को बिल राज्यसभा में आया। सदन में हंगामा हुआ. राजद ने UPA से समर्थन वापस लेने की धमकी दी.

9 मार्च 2010 को कांग्रेस ने भाजपा, जदयू और वामपंथी दलों के सहयोग से राज्यसभा में बिल बहुमत से पारित कराया, लेकिन लोकसभा में विधेयक पास नहीं कराया जा सका.

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