KNEWS DESK… भारत आज अंतरिक्ष के क्षेत्र में एक नया कीर्तिमान लिखने जा रहा है. भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी यानी ISRO श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से चंद्रयान-3 मिशन आज यानी शुक्रवार को दोपहर 2: 35 बजे लॉन्च हो गया है। चंद्रयान-3 को चांद तक पहुंचने में एक महीने से ज्यादा का समय लगेगा. यह 23 या 24 अगस्त को चंद्रमा की सतह पर उतर सकता है. हालाँकि, यह दिनांक घट-बढ़ भी सकती है।
दरअसल आपको बता दें कि इससे पहले चंद्रयान-2 को वर्ष 2019 में लॉन्च किया गया था। उस दौरान सफल लैंडिंग नहीं हो पाई थी। दरअसल आपको बता दें कि चंद्रयान-3 की लॉन्चिंग का आखों देखा हाल जानने हजारों की संख्या में लोग भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र, श्रीहरिकोटा पहुंचें. हजारों की संख्या लोग इस ऐतिहासिक पल के गवाह बनें। चंद्रयान के लाॅन्चिंग के बाद इसरो समेत पूरे देश के लोगों के बीच खुशी का माहौल देखने को मिल रहा है। जहां पर लगातार सोशल मीडिया देश के कई दिग्गज नेता समेत बड़ी हस्तियां इसरो को बधाई दे रही हैं। तो वहीं पर आमजनता भी आतिशबाजी फोड़कर और मिठाई बांटकर खुशियां मना रहे हैं।
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मिशाइल मैन डाॅ. एपीजे अब्दुल कलाम को किया जा रहा याद
जानकारी के लिए बता दें कि फ्रांस दौरे पर गए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर देश के हर आमजन के मन में चांज पर भारत के इस खास मिशन को लेकर भारी उत्साह देखने को मिल रही है। भारत ही नहीं दुनिया भर के अंतरिक्ष वैज्ञानिक इस पर नजर बनाए हुए हैं। लेकिन इस दौरान भारत के पूर्व राष्ट्रपति और मिशाइलमैन के नाम से मशहूर वैज्ञानिक डाॅ. एपीजे अब्दुल कलाम को भी याद किया जा रहा है। गौरबतल हो कि भारत का पहला राॅकेट नाइकी अपाचे मिशाइल मैन डाॅ. एपीजे अब्दुल कलाम के नेतृत्व में छोड़ा गया था। आज के समय पर ISRO के पास काफी उन्नति तकनीकि है। लेकिन कलाम ने दशकों पहले ही कम संशाधनों में अंतरिक्ष की दुनिया में भारत की ताकत दिखा दी थी। एपीजे को भारत के मिसाइल कार्यक्रम का जनक भी माना जाता है। जिस समय भारत गरीबी जैसी समस्याओं से जूझ रहा था, उस समय कलाम ने भारत की अंतरिक्ष शक्ति के जरिए दुनिया से लोहा मनवाया। 1980 के दशक में भारत के उपग्रह प्रक्षेपण और अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के क्षेत्र के बारे में शायद ही कोई सोचता हो, लेकिन डॉ. कलाम ने भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम का चेहरा बदल दिया। डाॅ. एपीजे इसरो का प्रोग्राम डायरेक्टर बनाया गया। उन्होंने खुद जमीन पर जाकर SLV का निर्माण कराया। जुलाई 1980 में, SLV III ने रोहिणी उपग्रह को पृथ्वी की कक्षा में स्थापित किया, जिससे भारत अंतरिक्ष क्लब का सदस्य बन गया।
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कई मिसाइलों का किया था परीक्षण
जानकारी के लिए बता दें कि SLV कार्यक्रम की सफलता के बाद कलाम ने इस तकनीक का उपयोग करके बैलिस्टिक मिसाइलें बनाना शुरू किया। उनके नेतृत्व में ही 1988 में पृथ्वी मिसाइल, 1985 में त्रिशूल मिसाइल और 1998 में अग्नि मिसाइल का परीक्षण किया गया था. उन्होंने 1998 में सोवियत संघ के सहयोग से एक सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल पर काम करना शुरू किया और इस दौरान ब्रह्मोस प्राइवेट लिमिटेड भी स्थापित किया गया था।
डॉ. साराभाई, डॉ. होमा भाभा और कलाम की तिकड़ी ने भारत के अंतरिक्ष विज्ञान जगत में कई मील के पत्थर स्थापित किये
आज जब हम मंगलयान और चंद्रयान जैसे मिशन लॉन्च कर रहे हैं तो इसका आधार भी डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम की ही देन है। लॉन्च पैड से लेकर अंतरिक्ष में यान भेजने वाले शक्तिशाली रॉकेट की तकनीक तक का विकास डॉ. कलाम के समय में ही शुरू हो गया था। अब्दुल कलाम ने भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक डॉ. विक्रम साराभाई के साथ काम किया। डॉ. साराभाई, डॉ. होमा भाभा और कलाम की तिकड़ी ने भारत के अंतरिक्ष विज्ञान जगत में कई मील के पत्थर स्थापित किये।
डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम के बदौलत भारत के पास बड़ी परमाणु शक्ति है
बता दें कि डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने न केवल अंतरिक्ष और मिसाइल कार्यक्रमों में भूमिका निभाई। बल्कि उन्होंने देश को परमाणु ऊर्जा दी। भारत के परमाणु परीक्षण के पीछे भी उनकी ही बुद्धिमता थी। पोखरण परीक्षण के समय डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के वैज्ञानिक सलाहकार थे। इंदिरा गांधी को पोखरण परीक्षण की तैयारियों और आगे की योजनाओं के बारे में बताते रहते थे। यह परीक्षण बहुत ही चतुराई से किया गया। लेकिन आज भारत के पास बड़ी परमाणु शक्ति है इसलिए कोई भी दुश्मन हमसे टकराने की हिम्मत नहीं करता।