सुप्रीम कोर्ट: क्या तारीख में बदलाव किए बिना संविधान की प्रस्तावना में संशोधन किया जा सकता है?

नई दिल्ली- सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को सवाल किया कि क्या संविधान को अपनाने की तारीख 26 नवंबर, 1949 को बरकरार रखते हुए प्रस्तावना में संशोधन किया जा सकता है या नहीं? जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता की पीठ ने राज्यसभा के पूर्व सदस्य सुब्रह्मण्यम स्वामी और वकील विष्णु शंकर जैन से ये सवाल किया, जिन्होंने संविधान की ‘प्रस्तावना’ से ‘‘समाजवादी’’ और ‘‘पंथनिरपेक्ष’’ शब्दों को हटाने की अपील की है।

जस्टिस दत्ता ने कहा, “अकादमिक उद्देश्य के लिए, क्या प्रस्तावना-जिसमें तारीख का जिक्र है, को अपनाने की तारीख में बदलाव किए बिना उसे बदला जा सकता है।” स्वामी ने जवाब दिया, “इस विषय में बिल्कुल यही सवाल है।”

जैन ने कहा कि भारत के संविधान की प्रस्तावना एक खास तारीख को आई, इसलिए चर्चा किए बिना इसमें संशोधन नहीं किया जा सकता। स्वामी ने हस्तक्षेप करते हुए कहा कि 42वां संशोधन अधिनियम आपातकाल (1975-77) के दौरान पारित किया गया था।

पीठ ने कहा कि इस मामले पर विस्तृत चर्चा की जरूरत है। दोनों याचिकाओं पर सुनवाई 29 अप्रैल तक के लिए टाल दी गई है।

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