KNEWS DESK- राजस्थान में इसी साल के अंत में विधानसभा चुनाव होना है जिसके लिए चुनावी शोर टॉप पर है और इसी के चलते पिछले काफी समय से राजस्थान की पूर्व समय वसुंधरा राजे और केंद्रीय नेतृत्व के बीच सबकुछ ठीक नहीं था लेकिन बीते 28 सितंबर को दोनों नेताओं के बीच मीटिंग हुई और वसुंधरा राजे यह कहते हुई निकलीं कि मीटिंग बहुत अच्छी रही।
6 घंटे से भी अधिक चली बीजेपी की बैठक
शाम करीब साढ़े सात बजे शुरू हुई यह बैठक रात दो बजे तक चलती रही। उम्मीदवारों से लेकर प्रचार की रणनीति तक पर चर्चा हुई। कोर ग्रुप की बैठक में अमित शाह और जेपी नड्डा समेत राज्य और केंद्र सरकार के करीब 17-18 लोग मौजूद थे। जब मीटिंग खत्म हुई और नेता होटल से बाहर निकलने लगे तो मीडिया के कैमरे में वसुंधरा, गजेंद्र सिंह शेखावत और कुलदीप बिश्नोई नजर आए। पत्रकारों ने वसुंधरा से सवाल पूछना चाहा लेकिन उन्होंने दिलचस्पी नहीं दिखाई। वो ये कहते हुए गाड़ी में बैठ गई कि मीटिंग बहुत अच्छी रही।
सूत्रों की मानें तो मीटिंग में बनी रणनीति ने वसुंधरा को फिर से रेस में वापस ला दिया है। बुधवार की रात कोर कमेटी की मीटिंग के बीच अमित शाह, जेपी नड्डा और संगठन महासचिव बीएल संतोष के बीच गुप्त मीटिंग हुई। माना जा रहा है कि इस मीटिंग में वसुंधरा को भरोसा दिया गया है कि पार्टी चुनाव में उनके सम्मान का पूरा ख्याल रखेगी।ऐसे में सवाल हैं कि क्या राजस्थान में इस बार वसुंधरा राजे एक बार फिर चुनावी कमान संभालेंगी। क्या प्रदेश में एक बार फिर से उनके चेहरे को कमान दी जाएगी?
राजस्थान में क्यों अहम हैं वसुंधरा?
राजस्थान की राजनीति में वसुंधरा बीजेपी की सबसे बड़ी नेता हैं। प्रदेश में अब भी उनको भीड़ जुटाने वाली नेता के तौर पर जाना जाता है। पार्टी पॉलिटिक्स में भले ही खुद को साइड लाइन समझ रही थी लेकिन समर्थकों के बीच उनकी लोकप्रियता बनी हुई है और माना जा रहा है कि इसी लोकप्रियता की बदौलत उन्होंने चुनावी रेस में वापसी की है .माना जा रहा है कि आरएसएस नेताओं ने वसुंधरा की पैरवी की है।
संघ का भी मानना है कि बिना क्षेत्रीय क्षत्रप को आगे रखे सिर्फ प्रधानमंत्री के नाम पर विधानसभा का चुनाव नहीं जीता जा सकता। कर्नाटक की हार के बाद संघ के मुखपत्र में ये बातें कही गई थी। राजस्थान में आरएसएस की जड़ें गहरी हैं।
ये भी पढ़ें- Asian Games: शूटिंग में भारत को मिला एक और गोल्ड, टीम इवेंट में भारत को सिल्वर