KNEWS DESK- मणिपुर हिंसा मामले पर सुप्रीम कोर्ट आज सुनवाई करेगा। इससे पहले भी जो सुनवाई हुई थी उसमें सुप्रीम कोर्ट ने राज्य पुलिस को कड़ी फटकार लगाई थी। सीजेआई ने मणिपुर के पुलिस महानिदेशक को सोमवार की सुनवाई के दौरान जवाब के साथ पेश होने का आदेश दिया था।
बीते मंगलवार को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने जातीय हिंसा के दौरान हुई घटनाओं पर गुस्सा जाहिर करते हुए कहा था कि राज्य में दो महीने तक पूरी संवैधानिक मशीनरी टूट गई थी। सीजेआई ने दो कुकी-जोमी महिलाओं के साथ बलात्कार और उन्हें निर्वस्त्र करके घुमाए जाने के मामले में दो महीने तक एफआईआर न लिखे जाने पर भी सवाल उठाया था।
FIR में देरी पर किया सवाल
प्रधान न्यायाधीश ने पूछा था कि घटना के 18 दिन बाद जीरो एफआईआर लिखी गई. फिर 1 महीने बाद एफआईआर दर्ज की गई. आखिर इतना समय क्यों लगा. क्या ये इस तरह का इकलौता मामला था या ऐसे और भी मामले हैं. 6500 एफआईआर दर्ज हुई हैं, उसमें महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामले में कितनी शिकायतें हैं. सीजेआई ने कहा, हमें 6500 एफआईआर को अलग-अलग परखने की जरूरत है. कितनी जीरो एफआईआर हैं, कितने गिरफ्तार हुए हैं और कितने न्यायिक हिरासत में हैं?
कोर्ट ने कहा था, हम इस पहलू पर भी विचार करेंगे कि कौन-कौन से मुकदमे किसे जांच के लिए सौंपे जाएं. सीजेआई ने सुनवाई के दौरान कहा था कि 6500 एफआईआर की जांच का जिम्मा सीबीआई के ऊपर देना असंभव है, लेकिन राज्य पुलिस को भी जांच नहीं दी जा सकती. हमें सोचना होगा कि हम क्या करें. उन्होंने सरकार से भी इस मसले का हल सोचने को कहा था. इसके साथ ही सीजेआई ने हाई कोर्ट के पूर्व जजों की कमेटी बनाने की बात भी कही थी. सीजेआई ने कहा था कि कोर्ट इस कमेटी का दायरा तय करेगी।
कई महीनों से जारी है मणिपुर में हिंसा
बीती 3 मई को आदिवासी समाज की एक रैली के बाद मणिपुर में हिंसा भड़क गई थी। ये रैली मणिपुर में मैतेई समाज को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिए जाने के अदालत के आदेश के विरोध में निकाली गई थी। इसके बाद भड़की जातीय हिंसा में अब तक 160 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि सैकड़ों लोग घायल हैं। 50 हजार से ज्यादा लोगों को घरों से निकलकर आश्रय स्थलों में शरण लेनी पड़ी है।