Mahua Moitra: लंदन में बैंक की नौकरी छोड़कर राजनीति में महुआ ने क्यों रखा कदम? जानें महुआ मोइत्रा की जिंदगी के अनसुने किस्से

KNEWS DESK- बीते 8 दिसंबर को टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा की लोकसभा सदस्यता रद्द कर दी गई। एथिक्स कमेटी की रिपोर्ट पर चर्चा के बाद मोइत्रा मामले में लोकसभा में वोटिंग हुई जिसके महुआ मोइत्रा की लोकसभा सदस्यता रद्द कर दी गई। आज हम महुआ मोइत्रा की जिंदगी के कुछ अनसुने किस्से आपको बताने जा रहे हैं जो आपने पहले कभी नहीं सुने होंगे।

असम के कछार जिले में साल 1974 में जन्मी मोइत्रा की शुरुआती शिक्षा कोलकाता में हुई और फिर वह उच्च शिक्षा के लिए अमेरिका गयीं। न्यूयॉर्क और लंदन में जेपी मॉर्गन चेज में इन्वेस्टमेंट बैंकर रहीं मोइत्रा ने राहुल गांधी की ‘‘आम आदमी का सिपाही’’ पहल से प्रेरित हो कर राजनीति का रुख किया था। उन्होंने साल 2009 में कांग्रेस की युवा इकाई में शामिल होने के लिए लंदन में अपना हाई-प्रोफाइल बैंकिंग करियर त्याग दिया। कांग्रेस की पश्चिम बंगाल इकाई में तैनात की गयीं मोइत्रा ने पार्टी के नेता सुब्रत मुखर्जी के साथ निकटता से काम किया।

2010 में बनीं तृणमूल का हिस्सा

पश्चिम बंगाल में वाम मोर्चा की सरकार के खिलाफ बदलाव की बयार के बीच मोइत्रा और मुखर्जी 2010 के कोलकाता नगर निगम चुनाव से महज कुछ दिन पहले तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गईं। ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली पार्टी ने 2011 में राज्य में जीत हासिल की।

2016 में बनी थीं विधायक

2011 के विधानसभा चुनाव और 2014 के लोकसभा चुनाव में पार्टी से टिकट न मिलने के बावजूद मोइत्रा ने धैर्यपूर्वक इंतजार किया और 2016 के विधानसभा चुनाव में टिकट मिलने पर करीमपुर निर्वाचन क्षेत्र से जीत हासिल की। उन्हें राज्य मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किया गया लेकिन उनके ओजस्वी भाषण और वाद-विवाद कौशल ने उन्हें राष्ट्रीय मीडिया में पार्टी की प्रमुख प्रवक्ता बना दिया।

पहली बार सांसद चुनी गईं महुआ

मोइत्रा को 2019 में कृष्णानगर लोकसभा सीट से टिकट मिला और वह विजयी हुईं. ज्यादा अनुभव न होने के बावजूद संसद में मोइत्रा के जोशीले भाषणों ने उन्हें राष्ट्रीय सुर्खियों में ला दिया और वह टेलीविजन पर होने वाली बहसों में टीएमसी की तरफ से सबसे ज्यादा लोकप्रिय नेता बन गयीं।

बांग्ला मीडिया ने किया था बहिष्कार

अपने मन की बात कहने के लिए पहचानी जाने वाली मोइत्रा को अकसर संगठन के मामलों में पार्टी से मतभेदों का सामना करना पड़ा और ममता बनर्जी ने उन्हें सार्वजनिक रूप से फटकार भी लगायी। पिछले दो साल में विवाद मोइत्रा का पर्याय बन गए जिसमें पत्रकारों को ‘‘दो कौड़ी’’ का बताने वाली टिप्पणी भी शामिल हैं जिसके कारण स्थानीय बांग्ला मीडिया ने लंबे समय तक उनका बहिष्कार किया था।

देवी काली को लेकर की थी विवादित टिप्पणी

उन्होंने पिछले साल एक सम्मेलन में देवी काली को मांस खाने वाली और शराब पीने वाली कह कर देशभर में राजनीतिक तूफान खड़ा कर दिया था। राजद्रोह कानून की मुखर विरोधी मोइत्रा कानूनी लड़ाइयों में भी सक्रियता से शामिल रही हैं।

कैश फॉर क्वेरी विवाद में लड़ रही हैं कानूनी लड़ाई

उन्होंने उच्चतम न्यायालय में एक रिट याचिका भी दायर की हुई है। ‘पैसे लेकर सवाल पूछने’ के मामले के बीच मोइत्रा ने कहा कि उन्हें भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की सरकार को चुनौती देने की वजह से परेशान किया गया। उन्होंने भारी जनादेश के साथ संसद में लौटने का संकल्प जताया। भले ही इस विवाद से सांसद के रूप में उनका पहला कार्यकाल अचानक समाप्त हो गया लेकिन टीएमसी के शीर्ष नेतृत्व के अटूट समर्थन के साथ पार्टी के भीतर उनका कद निश्चित रूप से बढ़ा है. विपक्ष भी मोइत्रा के साथ है। बीजेपी के खिलाफ हमले बोलने के दौरान कांग्रेस नेता सोनिया गांधी का उनके साथ खड़े रहना, भारतीय राजनीति के जटिल क्षेत्र में मोइत्रा के प्रभाव को दर्शाता है।

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