नई दिल्ली: सरकारी नौकरियों में अनुसूचित जातियों (एससी) और अनुसूचित जनजातियों (एसटी) को प्रोन्नति में आरक्षण देने के मामले में आज सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाही की। सुप्रीम कोर्ट ने कोई मानदंड तय करने से इनकार कर दिया। सुनवाही के दौरान न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने कहा कि राज्य सरकारें एससी/एसटी के प्रतिनिधित्व में कमी के आंकड़े एकत्र करने के लिए बाध्य हैं।
उच्च न्यायालय ने कहा कि, वह एससी/एसटी के अपर्याप्त प्रतिनिधित्व का पता लगाने के लिए कोई मानदंड तय नहीं कर सकती और यह राज्यों को करना होगा। कोर्ट ने कहा है कि नागराज (2006) और जरनैल सिंह (2018) मामले में संविधान पीठ के फैसले के बाद शीर्ष अदालत कोई नया पैमाना नहीं बना सकती. इस मामले में कोर्ट ने 26 अक्टूबर 2021 को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि, प्रमोशन में आरक्षण से पहले उच्य पदों पर प्रतिनिधित्व के आंकड़े जुटाना ज़रूरी है. साथ ही कोर्ट ने कहा कि प्रतिनिधित्व का एक तय अवधि में मूल्यांकन किया जाना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अवधि क्या होगी, इसे केंद्र सरकार तय करे. केंद्र/राज्यों से जुड़े आरक्षण के मामलों में स्पष्टता पर 24 फरवरी से सुनवाई शुरू होगी।
न्यायमूर्ति नागेश्वर राव की अध्यक्षता वाली तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने कहा –
न्यायमूर्ति नागेश्वर राव की अध्यक्षता वाली तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि राज्य अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति के प्रतिनिधित्व की अपर्याप्तता पर डेटा एकत्र करने के लिए बाध्य हैं. शीर्ष अदालत ने कहा कि वह अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के प्रतिनिधित्व की अपर्याप्तता को निर्धारित करने के लिए कोई मानदंड निर्धारित नहीं कर सकती है. ये काम राज्य सरकार कर सकती है।
आजादी के 75 साल बाद भी एससी/एसटी को समान मेधा के स्तर पर नहीं लाया गया-
न्यायमूर्ति एल. नागेश्वर राव की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीशों की पीठ ने विभिन्न राज्यों की ओर से पेश हुए अन्य वरिष्ठ वकीलों सहित सभी पक्षों को सुना था. केंद्र ने पीठ से कहा था कि यह सत्य है कि देश की आजादी के 75 साल बाद भी एससी/एसटी समुदाय के लोगों को अगड़े वर्गों के समान मेधा के स्तर पर नहीं लाया गया है. वेणुगोपाल ने दलील दी थी एससी और एसटी समुदाय के लोगों के लिए ग्रुप ‘ए’ श्रेणी की नौकरियों में उच्चतर पद हासिल करना कहीं अधिक मुश्किल है और वक्त आ गया है कि रिक्तियों को भरने के लिए शीर्ष न्यायालय को एससी, एसटी तथा ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) के वास्ते कुछ ठोस आधार देना चाहिए।