ऊंट गाड़ियां, कठपुतली नृत्य और वैक्सीन सांग्स के ज़रिये राजस्थान के रेतीले इलाकों में पहुँचाया जा रहा है कोविड का टीका

कानपुर- भारत-पाकिस्तान के बॉर्डर से 30 किमी दूर राजस्थान के रामसर के रेतीले इलाके में कोविड 19 की वैक्सीन पहुंचाने का एकमात्र जरिया है ऊंट गाड़ियां| कंतलकपार गांव के इस्लाम खान जब ये कहते हैं कि रेगिस्तान का जहाज है ये, तो रेतीले इलाके में सहज ही ऊंट महत्ता का पता चल जाता है। कमाल अपने साथ एक हेल्थ वर्कर चंद्रावती को सौरुनपानी गांव में लेकर जा रहे हैं। इसे रामसर के भीलों की बस्ती भी कहा जाता है। गांव में तकरीबन 5 सौ लोग रहते हैं। यहां 70 घर हैं।

मोमेंटम रूटीन इम्युनाइजेशन ट्रांसफारमेशन एंड इक्विटी प्रोजेक्ट के तहत यहाँ पर ये कोविड वैक्सीन पहुंचाई जा रही हैं। इस तरह के लोगों में जागरूकता फैलाने के लिए मोमेंटम रूटीन इम्युनाइजेशन ट्रांसफारमेशन एंड इक्विटी प्रोजेक्ट को भारत में जॉन स्नो इंडिया प्रा. लि. ने लागू किया है। USAID का इसे सपोर्ट है। भारत सरकार ने भी इस प्रोजेक्ट को अपनी मंजूरी दे दी है। प्रोजेक्ट का मुख्य उद्देश्य  उन लोगों तक पहुंचने में सहायता करना है जो वैक्सीन लेने से हिचकते हैं।

राजस्थान सरकार हर संभव कोशिश कर रही है जिससे वैक्सीन को दूर दराज़ इलाको तक पहुचाई जा सके| हेल्थ वर्कर चंद्रावती अपनी उन मुश्किलों को बयां करती हैं जो उनके सामने पेश आ रही हैं। उनका कहना है कि पुरुष डरते हैं कि वैक्सीन उन्हें नपुंसक न बना दे। वहीं गर्भवती समझती हैं कि उनके पेट में पल रहे बच्चे इसका गलत असर होगा।

पांच ऊंट गाड़ियां एएनएम को लेकर सियाई, नई सियाई, भीलों का पर, सौरेनपानी और संगरानी गांव लेकर जा रही हैं। ये सारे रामसर के गांव हैं। कोविड वैक्सीन हर गांव में पहुंचाई जानी है। सौरेनपानी के मर्द चार माह तक खेतों में काम करते हैं। उसके बाद वो गुजरात और दूसरे सूबों में जाकर मजदूरी करते हैं। वही महिलाएं पशु पालन के साथ सिलाई कढ़ाई का काम करती हैं।

30 साल के हेमा राम कहते हैं कि उनके गांव में कोरोना की वजह से मौत नहीं हुई। जो लोग बाहर से आए उनकी वजह से ही कोरोना का संक्रमण फैला। उनका कहना है कि उन्होंने टीवी पर लाशें देखीं तो डर गए। 45 साल की बाजू देवी कहती हैं कि उन्हें लगता था कि वैक्सीन लेने पर वो सभी मर जाएंगे। उसके बाद ग्राम पंचायत ने सोशल मीडिया के जरिये लोगो को जागरूक करने का काम किया|

राजस्थान के सबसे युवा सरपंच 23 साल के जीत परमार कहते हैं कि लोगों को वैक्सीन लेने के लिए तैयार करना सबसे मुश्किल काम था। वो मानने को तैयार ही नहीं हो रहे थे कि इससे उनको नुकसान नहीं होगा। फिलहाल सौरेनपानी के 12 से 18 साल के किशोरों को वैक्सीन की दूसरी डोज देने का काम चल रहा है।

रामसर के बाबूगेलेरिया गांव में भी लोग वैक्सीन को लेकर आशंकित थे। लेकिन गांव के सरपंच बौजू प्रधान ने उनका डर दूर करने के लिए खुद सबसे पहले वैक्सीन की डोज ली। वो कहती हैं कि अगर एक भी शख्स वैक्सीन लेने से छूट गया तो सारे गांव में संक्रमण फैल सकता है।

47 साल के जमाल खान एक लोक गीत गायक हैं। वो 2022 से अलग अलग जगहों पर लोक गीत गाते हैं। उन्होंने लोगों के मन से वैक्सीन का डर दूर करने का काम किया। वो रात्रि चौपाल में जाकर लोगों को जागरूक करते हैं। उनका कहना है कि “वो लोगों से बातचीत करके भी उनका डर दूर करते हैं। जमाल और उनकी टीम ने रामसर, बाडमेर, गाधरा, बैटू, जैसलमेर, फतेहगढ़ और दूसरे कई ब्लाकों में जाकर लोक गीतों के जरिये लोगों को जागरूक किया। इन सभी गांवों में लोग वैक्सीन लेने के लिए तैयार नहीं हो रहे थे।”

रात्रि चौपाल में ज्ञानी बाबा, कठपुतली और डा. पोपट ने भी शिरकत की। ये किरदार लाल पुरी गोस्वामी ने अदा किया। वो बीकानेर के थिएटर आर्टिस्ट हैं। वो कहते हैं कि उनका किरदार लोगों से जुड़ाव रखता है। उनका कहना है कि वो लोगों को वैक्सीन लेने के लिए जागरूक करते हैं। उनकी कोशिशें रंग लाईं। एक एएनएम सरोज अपने बच्चे को वैक्सीन की दूसरी डोज दिलाकर लाई। उसका कहना है कि वो अपने हाथों से बच्चे को नहीं मारना चाहती।

राजस्थान के स्कूलों में बाल मेला के जरिये भी जागरूकता फैलाने की कोशिश की गई। इंटर क्लास कंपीटीशन आयोजित करके बच्चों को वैक्सीन का महत्व समझाया गया। स्कूलों में बच्चों को वैक्सीन की डोज दी गईं।

 

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