उत्तराखंड डेस्क रिपोर्ट, उत्तराखंड में अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले राज्य में नगर निकाय के चुनाव पर सियासी बवाल छिड़ गया है। विपक्षी दलों ने सत्तापक्ष पर हार के डर से निकाय चुनाव ना कराने का आरोप लगाया है। आपको बता दें कि देवभूमि उत्तराखंड में आठ नगर निगमों समेत 97 नगर निकाय प्रशासकों के हवाले हो गए हैं। उत्तराखंड शासन ने जिलाधिकारियों को प्रशासक का जिम्मा सौंपा है। आपको बता दें कि राज्य में 97 नगर निकायों के चुनाव साल 2018 में हुए थे जिनका पांच वर्ष का कार्यकाल एक दिसंबर को खत्म हो गया…..हांलाकि राज्य की दो निकायों जिसमें नगर निगम रुड़की व नगर पालिका परिषद बाजपुर का कार्यकाल अगले वर्ष खत्म होना है। वहीं शासन ने राज्य में प्रशासक के तौर पर सभी जिलों के जिलाधिकारियों को तैनात किया है। जिलाधिकारी अपने हिसाब से अब निकायों की सभी व्यवस्थाएं देखेंगे। वहीं निकाय चुनाव ना करवाने के पीछे सरकार का तर्क है कि अभी नगर निकाय के चुनाव के लिए राज्य निर्वाचन आयोग की ओर से मतदाता सूची तैयार करने का काम किया जा रहा है। इसके साथ ही ओबीसी का सर्वेक्षण कार्य किया जा रहा है। इन सभी प्रक्रियाओं के पूरा होने के बाद ही राज्य में निकाय चुनाव हो पाएंगे…यानि की कम से कम छह माह बाद ही निकाय चुनाव संभव हो पाएंगे…ऐसे में विपक्ष का कहना है कि सरकार ने हार के डर से निकाय चुनाव ना कराने का फैसला लिया है। सवाल ये है कि जब हर पांच साल में निकाय चुनाव कराने की प्रक्रिया है तो फिर समय रहते चुनावी प्रक्रिया को पूरा क्यों नहीं किया गया….
उत्तराखंड में नगर निकायों का कार्यकाल पूरा हो गया है। उत्तराखंड शासन ने राज्य के निकायों में प्रशासकों की तैनाती कर दी है। समय पर निकाय चुनाव ना होने पर राज्य के नगर निकाय प्रशासको के हवाले कर दिए गए हैं… आपको बता दें कि राज्य के आठ नगर निगमों समेत 97 नगर निकाय प्रशासकों के हवाले हो गए हैं। उत्तराखंड शासन ने जिलाधिकारियों को प्रशासक का जिम्मा सौंपा है। प्रशासकों को नगर निगम और नगर निकाय सौंपे जाने से पहले देहरादून नगर निगम की अंतिम बोर्ड बैठक हुई.. जिसमें कई महत्वपूर्ण प्रस्तावों पर मुहर लगी….बोर्ड ने शहर में बनाए जा रहे वेंडिंग जोन में 50 प्रतिशत दुकानें स्थानीय बेरोजगारों को देने. राज्य आंदोलनकारियों को भवन कर में शत-प्रतिशत छूट देने समेत कई महत्वपूर्ण प्रस्तावों पर मुहर लगी…इसके साथ ही नगर निगम की ओर से वर्ष 2016 में मलिन बस्ती नियमावली लागू होने के बाद बस्तियों में बने मकानों को बिजली व पानी के कनेक्शन देने पर लगी रोक भी हटा दी गई है। लेकिन इस बार भी देहरादून नगर निगम के विभिन्न वार्डों में स्थित 129 मलिन बस्तियों के नियमितीकरण की मांग पूरी नहीं हो पाई। वहीं निवर्तमान मेयर सुनील उनियाल गामा ने सभी का आभार व्यक्त किया है…..साथ ही अपने कार्यकाल की जमकर उपलब्धियां गिनाई है
आपको बता दें कि राज्य में 97 नगर निकायों के चुनाव साल 2018 में हुए थे जिनका पांच वर्ष का कार्यकाल एक दिसंबर को खत्म हो गया…..हांलाकि राज्य की दो निकायों जिसमें नगर निगम रुड़की व नगर पालिका परिषद बाजपुर का कार्यकाल अगले वर्ष खत्म होना है। वहीं शासन ने राज्य में प्रशासक के तौर पर सभी जिलों के जिलाधिकारियों को तैनात किया है। जिलाधिकारी अपने हिसाब से अब निकायों की सभी व्यवस्थाएं देखेंगे। वहीं निकाय चुनाव ना करवाने के पीछे सरकार का तर्क है कि अभी नगर निकाय के चुनाव के लिए राज्य निर्वाचन आयोग की ओर से मतदाता सूची तैयार करने का काम किया जा रहा है। इसके साथ ही ओबीसी का सर्वेक्षण कार्य किया जा रहा है। इन सभी प्रक्रियाओं के पूरा होने के बाद ही राज्य में निकाय चुनाव हो पाएंगे…यानि की कम से कम छह माह बाद ही निकाय चुनाव संभव हो पाएंगे…ऐसे में विपक्ष का कहना है कि सरकार ने हार के डर से निकाय चुनाव ना कराने का फैसला लिया है।
कुल मिलाकर लोकसभा चुनाव से पहले राज्य में निकाय चुनाव पर सियासत गरमा गई है। सरकार चुनाव से संबंधित जरूरी कार्रवाई पूरी ना होने का हवाला दे रही है। जबकि विपक्ष की चिंता है कि सरकार लोकसभा चुनाव में प्रशासको के सहारे लोकसभा चुनाव को प्रभावित कर सकती है। इसके साथ ही विपक्ष का कहना है कि सरकार हार के डर से निकाय चुनाव नहीं करा रही है ऐसे में सवाल ये है कि आखिर क्यों समय रहते सभी प्रक्रियाएं पूरी नहीं की गई…..