KNEWS DESK- जी20 सम्मेलन का पहला दिन, शामिल हुए कुल 20 देशों के राष्ट्राध्यक्ष लेकिन इस अंतराष्ट्रीय मंच पर किसी भी देश ने यूक्रेन मुद्दे पर रूस को आड़े हाथों नहीं लिया। हालांकि, जंग पर चर्चा हुई है। बैठक में शामिल देशों ने, ‘बल पूर्वक यूक्रेन के क्षेत्रों पर अधिकार करने से परहेज करने की बात कही है.’ बैठक की पूर्व संध्या पर बैठक की अध्यक्षता कर रहे पीएम की आह्वान पर, ‘दिल्ली घोषणा पत्र’ को स्वीकार किया गया है।
इस बार रहीं बहुत चुनौतियां
US ने कहा कि साझा बयान में युद्ध पर रूस की कड़ी आलोचना जरूर होनी चाहिए। रूस ने कहा कि साझा बयान में युद्ध का मुद्दा शामिल करने पर वो सहमत नहीं होगा। भारत ने मध्यमार्ग अपनाते हुए कहा कि G20 विश्व अर्थव्यवस्था के विकास पर विचार करने का मंच है, युद्ध पर चर्चा हो ये जरूरी नहीं है। यूरोपियन यूनियन ने इस मुद्दे पर कहा कि शांति से ही समृद्धि का रास्ता तैयार किया जा सकता है।
ब्रिटेन ने रखा ये तर्क
ब्रिटेन ने तर्क रखा कि युद्ध से पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था प्रभावित हो रही है। रूस-यूक्रेन के युद्ध की वजह से ही अनाज आपूर्ति सौदे पर रोक लग चुकी है। इसकी वजह से पूरी दुनिया के 10 करोड़ लोगों पर असर पड़ा है।
चीन ने दिया ये जवाब
चीन ने ब्रिटेन के बयान पर तर्क दिया कि युद्ध की वजह से दुनिया की अर्थव्यवस्था पर बुरा असर नहीं पड़ा, बल्कि अमेरिका की तरफ से रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों की वजह से अर्थव्यवस्था प्रभावित हुई है। इन प्रतिबंधों के चलते रूस के साथ व्यापार करने वाले देशों पर असर पड़ा है। इसलिए अर्थव्यवस्था पर असर के लिए रूस नहीं बल्कि अमेरिका जिम्मेदार है।
भारत ने ऐसे जीता सभी का दिल
रूस इस युद्ध में शक्तशाली हथियारों का इस्तेमाल कर रहा है लेकिन भारत को इस महायुद्ध की अंतरराष्ट्रीय समस्या से निपटने के लिए कूटनीति के हथियार का इस्तेमाल करना पड़ा। मुद्दा यही था कि रूस-यूक्रेन समस्या को साझा बयान में किस तरह शामिल किया जाए। शब्द ऐसे हों जिनसे अमेरिका और यूक्रेन के बाकी समर्थक देश भी सहमत हों और सार ऐसा हो जिस पर रूस और उसके बाकी समर्थक देश भी राजी हो जाएं यानि ये कि बात ऐसे कही जाए जिससे भारत की गुटनिरपेक्षता और रूस के साथ दोस्ती दोनों अखंड रहें।