KNEWS DESK… अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी NASA ने रूस के फेल मून मिशन की एक तस्वीर जारी की है. इस तस्वीर में दिखाया गया है कि कैसे रूसी मून मिशन Luna-25 के क्रैश से पहले और बाद में चंद्रमा की सतह पर बदलाव आया है. आपको साफ तौर गड्ढा दिखाई देगा. यानी चांद पर बना नया क्रेटर.
दरअसल आपको बता दें कि रूस का Luna-25 मिशन पिछले महीने चांद के दक्षिणी ध्रुव के पास क्रैश हो गया था. वह अपनी तय गति से ज्यादा तेज स्पीड में था. जिसकी वजह से तय ऑर्बिट पार करके चांद की सतह से टकरा गया. अगर वह क्रैश नहीं होता तो रूस 47 साल बाद चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग की उपलब्धि हासिल करता. नासा के लूनर रीकॉन्सेंस ऑर्बिटर ने रूसी Luna-25 मिशन के क्रैश साइट की तस्वीर ली है. चांद की सतह पर नया क्रेटर दिख रहा है. जो Luna-25 की टक्कर से बना हुआ लगता है. NASA ने ट्वीट करके कहा कि यह क्रेटर करीब 10 मीटर व्यास का है. यानी करीब 33 फीट. यह एक इम्पैक्ट क्रेटर है. यह प्राकृतिक तौर पर बना गड्ढा नहीं है.
कमेटी कर रही है जांच
बता दें कि Luna-25 क्रैश के बाद रूस ने इस हादसे की जांच के लिए इंटर-डिपार्टमेंटल कमीशन का गठन किया है. ताकि क्रैश की असली वजह का पता किया जा सके. ये देखने में आता है कि बहुत सारे मून मिशन अक्सर फेल हो जाते हैं. लेकिन रूस का यह फेल मिशन उसके सम्मान के लिए बड़ी चोट है. क्योंकि शीतयुद्ध के समय वह स्पेस इंडस्ट्री का राजा था. रूस पहला देश था जिसने सबसे पहले 1957 में स्पुतनिक-1 सैटेलाइट लॉन्च किया था. सोवियत कॉस्मोनॉट यूरी गैगरीन 1961 में अंतरिक्ष की यात्रा करने वाले पहले व्यक्ति थे. रूस की स्पेस इंड्स्ट्री की शुरुआत बेहद शानदार थी, लेकिन अभी उसकी हालत बेहद खराब है. रूसी स्पेस एजेंसी रॉसकॉसमॉस ने कहा था Luna-25 असली पैरामीटर्स से अलग चला गया था. तय ऑर्बिट के बजाय दूसरी ऑर्बिट में गया. इसकी वजह से वह सीधे चांद के
जानकारी के लिए बता दें कि दक्षिणी ध्रुव के पास जाकर क्रैश हो गया. Luna-25 को 11 अगस्त की सुबह 4:40 बजे अमूर ओब्लास्ट के वोस्तोनी कॉस्मोड्रोम से लॉन्च किया गया. लॉन्चिंग सोयुज 2.1बी रॉकेट से किया गया. इसे लूना-ग्लोब मिशन भी कहते हैं. 1976 के लूना-24 मिशन के बाद से आज तक रूस का कोई भी यान चांद के ऑर्बिट तक नहीं पहुंचा है. ये पहुंचा लेकिन बुरी हालत में. रूस ने सोयुज रॉकेट से लॉन्चिंग की थी. यह करीब 46.3 मीटर लंबा था. इसका व्यास 10.3 मीटर था. वजन 313 टन था. इसने Luna-25 लैंडर को धरती के बाहर एक गोलाकार ऑर्बिट में छोड़ा. जिसके बाद यह स्पेसक्राफ्ट चांद के हाइवे पर निकल गया. उस हाइवे पर उसने 5 दिन यात्रा की. इसके बाद चांद के चारों के ऑर्बिट में पहुंचा. लेकिन तय लैंडिंग से एक दिन पहले ही क्रैश हो गया.
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लैंडिंग को लेकर यह हुई थी प्लानिंग
रूस का प्लान था कि 21 या 22 अगस्त को लूना-25 चांद की सतह पर उतरेगा. इसका लैंडर चांद की सतह पर 18 km ऊपर पहुंचने के बाद लैंडिंग शुरू करेगा. 15 km ऊंचाई कम करने के बाद 3 km की ऊंचाई से पैसिव डिसेंट होगा. यानी धीरे-धीरे लैंडर चांद की सतह पर उतरेगा. 700 मीटर ऊंचाई से थ्रस्टर्स तेजी से ऑन होंगे ताकि इसकी गति को कम कर सकें 20 मीटर की ऊंचाई पर इंजन की गति धीमी से चलेंगे. ताकि यह लैंड हो जाए.
चंद्रमा की सतह पर यह करता Luna-25
Luna-25 चंद्रमा की सतह पर साल भर काम करने के मकसद से गया था. वजन 1.8 टन था. इसमें 31 किलोग्राम के वैज्ञानिक यंत्र लगे थे. एक यंत्र ऐसा लगा था जो सतह की 6 इंच तक खुदाई करके, पत्थर और मिट्टी का सेंपल जमा करते . ताकि जमे हुए पानी की खोज हो सके.