दिल्ली हाई कोर्ट से महुआ मोइत्रा को बड़ी राहत, ‘कैश-फॉर-क्वेरी’ मामले में लोकपाल का आदेश रद्द

डिजिटल डेस्क- दिल्ली हाई कोर्ट ने तृणमूल कांग्रेस (TMC) की सांसद महुआ मोइत्रा को बड़ी कानूनी राहत देते हुए शुक्रवार को लोकपाल के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) को उनके खिलाफ कथित ‘कैश-फॉर-क्वेरी’ मामले में आरोप पत्र दाखिल करने की अनुमति दी गई थी। अदालत के इस फैसले को विपक्ष के लिए एक अहम राहत के तौर पर देखा जा रहा है। न्यायमूर्ति अनिल क्षेत्रपाल और न्यायमूर्ति हरीश वैद्यनाथन शंकर की खंडपीठ ने महुआ मोइत्रा की याचिका पर सुनवाई करते हुए स्पष्ट कहा कि लोकपाल द्वारा पारित आदेश को रद्द किया जाता है। साथ ही अदालत ने लोकपाल से अनुरोध किया है कि वे लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013 के प्रावधानों के अनुसार एक महीने के भीतर धारा 20 के तहत अभियोजन की स्वीकृति देने पर नए सिरे से विचार करें।

क्या है पूरा मामला

‘कैश-फॉर-क्वेरी’ मामला इस आरोप से जुड़ा है कि महुआ मोइत्रा ने एक व्यवसायी से नकदी और महंगे उपहार लेने के बदले संसद में सवाल पूछे। इस मामले में उद्योगपति दर्शन हीरानंदानी का नाम सामने आया था। आरोपों के आधार पर सीबीआई ने भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत 21 मार्च 2024 को महुआ मोइत्रा और दर्शन हीरानंदानी के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की थी। इसके बाद सीबीआई ने जुलाई 2024 में अपनी प्रारंभिक जांच रिपोर्ट लोकपाल को सौंपी। इसी रिपोर्ट के आधार पर लोकपाल ने सीबीआई को आगे की कार्रवाई यानी आरोप पत्र दाखिल करने की अनुमति दे दी थी, जिसे महुआ मोइत्रा ने दिल्ली हाई कोर्ट में चुनौती दी।

महुआ मोइत्रा की दलील

महुआ मोइत्रा की ओर से अदालत में दलील दी गई कि लोकपाल द्वारा अपनाई गई प्रक्रिया में गंभीर खामियां हैं। उनके वकील ने लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम की धारा 20(7) का हवाला देते हुए कहा कि किसी लोक सेवक या जनप्रतिनिधि के खिलाफ अभियोजन की मंजूरी देने से पहले उसकी राय लेना अनिवार्य है। वकील का कहना था कि लोकपाल ने न तो इस प्रावधान का पालन किया और न ही मोइत्रा को प्रभावी रूप से अपना पक्ष रखने का अवसर दिया। इसके अलावा मोइत्रा की ओर से यह भी आग्रह किया गया कि जब तक इस मामले में वैध अनुमति नहीं दी जाती, तब तक सीबीआई को किसी भी प्रकार की आगे की कार्रवाई से रोका जाए।

सीबीआई का पक्ष

सीबीआई ने महुआ मोइत्रा की याचिका का विरोध किया। एजेंसी ने तर्क दिया कि लोकपाल की कार्यवाही के दौरान आरोपी को केवल लिखित टिप्पणी करने का अधिकार होता है, दस्तावेज पेश करने या मौखिक सुनवाई का अधिकार नहीं। सीबीआई का कहना था कि लोकपाल द्वारा दी गई मंजूरी पूरी तरह कानून के दायरे में थी। दिल्ली हाई कोर्ट ने सीबीआई के तर्कों को खारिज करते हुए कहा कि अभियोजन की अनुमति देने से पहले लोकपाल को अधिनियम में तय सभी प्रक्रियाओं का पालन करना होगा। अदालत ने फिलहाल लोकपाल के आदेश को रद्द कर दिया है और मामले को दोबारा विचार के लिए लोकपाल के पास भेज दिया है।

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