यूसीसी का विरोध, सड़क पर उतरे लोग !

Knews India, उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता यानी यूसीसी कानून लागू हो गया है, लेकिन इसको लेकर विरोध भी शुरू होने लग गया है। विपक्ष का मानना है कि यूसीसी असंवैधानिक और अव्यवहारिक है। जिस राज्य में अंकिता भंडारी जैसे प्रकरण पर कोई कार्रवाई नहीं हुई उस प्रदेश में किस तरह समान नागरिक संहिता लागू कर महिलाओं के हित में इसे बताया जा रहा है। कई मुस्लिम संगठन यूसीसी कानून के विरोध में हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाने की बात कह रहे हैं, वहीं राज्य आंदोलनकारी भी इस कानून के विरोध में सड़क पर उतरकर विरोध कर रहे हैं। विपक्षी दलों के अनुसार यूसीसी कानून अगर लागू करना ही था तो इसे पूरे देश में एक साथ लागू किया जाता। समान नागरिक संहिता होने के बाद भी अनुसूचित जातियों को इससे अलग आखिर क्यों रखा गया है, यह अपने आप में बड़ा सवाल है। लिव इन रिलेशनशिप को लेकर भी विरोध सामने आ रहा है। कांग्रेस का कहना है कि क्या प्रदेश के मुख्यमंत्री अपने बच्चों को लिव इन रिलेशनशिप में रहने की आजादी देंगे? राज्य आंदोलनकारी 16 फरवरी से दून में इस कानून के विरोध में धरना-प्रदर्शन शुरू करेंगे। वहीं, रविवार को यूसीसी के खिलाफ कलक्ट्रेट देहरादून सभागार में विभिन्न मुस्लिम संगठनों ने विरोध प्रदर्शन किया और इसे काला कानून करार देते हुए वापस लेने के लिए नारेबाजी की गई। उन्होंने कहा कि यह कानून सामाजिक, धार्मिक भावनाओं के खिलाफ है।

विगत 27 जनवरी को उत्तराखंड आजाद भारत के इतिहास में पहला राज्य बन गया है जिसने समान नागरिक संहिता कानून लागू किया। समान नागरिक संहिता लागू होने के बाद सभी जाति, धर्म और सम्प्रदाय के लिए एक जैसा कानून होने का दावा किया गया है। इस कानून में विवाह, तलाक, उत्तराधिकार और विरासत के लिए एक समान नियम लागू किए गए हैं। भाजपा के अनुसार यह कानून किसी धर्म या समुदाय के खिलाफ नहीं है, बल्कि समाज में एकरूपता लाएगा। लिव इन में रहने वाले जोड़े को भी यूसीसी में पंजीकरण करवाना होगा। पैतृक संपत्ति में बेटा और बेटी दोनों को समान अधिकार इस कानून से मिलेंगे। लिव इन में रहने के बाद पैदा संतान को भी संपत्ति में समान अधिकार मिलेंगे। वहीं, विपक्ष के अनुसार अगर ऐसा कानून लागू करना ही था तो केंद्र सरकार लोकसभा में इस कानून को पास करती। विपक्षी दलों के अनुसार कहीं न कहीं उत्तराखंड को हिन्दुत्व की एक प्रयोगशाला की तरह भाजपा यूज कर रही है! उत्तराखंड के एक बड़ा वर्ग जनजाति समुदाय का है, ऐसे में समान नागरिक संहिता कानून इन पर क्यों नहीं लागू किया गया यह बड़ा सवाल है।

समान नागरिक संहिता (यूसीसी) लागू होने के बाद अब उत्तराखंड में विवाह का पंजीकरण अनिवार्य किया गया है। इसके लिए कट ऑफ डेट 27 मार्च 2010 रखी गई है। यानी इस दिन से हुए सभी विवाह पंजीकृत कराने होंगे। विवाह का पंजीकरण छह माह के भीतर करना होगा। शादी, वसीयत, उत्तराधिकारी, तलाक और डिक्री के लिए पंजीकरण शुल्क और विलंब शुल्क भी तय कर लिया गया है। उत्तराखंड में लागू हुए इस कानून के बाद बड़े बदलाव की संभावना जताई जा रही है। इस कानून के लागू होने से पहले ही सीएम धामी पुलिस और प्रशासन को सतर्क रहने के निर्देश दे चुके हैं। कानून लागू होते ही समुदाय विशेष के लोग और राज्य आंदोलनकारी भी इसका विरोध कर रहे हैं। इस कानून के लागू होने के बाद बहुविवाह और मनमाने रूप से तलाक पर अंकुश लगने की उम्मीद जताई जा रही है। विपक्षी दल यूसीसी का पहले से ही विरोध कर रहे हैं, वहीं भाजपा इसे धामी सरकार का अहम फैसला बता रही है।

समान नागरिक संहिता कानून लागू होते ही उत्तराखंड के इतिहास में एक नया अध्याय जुड़ तो गया है लेकिन इसका विरोध भी शुरू होने लगा है। 2022 में विधानसभा चुनाव के दौरान मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने भाजपा के सत्तासीन होने के बाद समान नागरिक संहिता कानून लागू करने वादा किया था। अब यह कानून लागू होने के बाद तमाम नियमों में बदलाव हो गया है। देखना होगा कि इस कानून को हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में चुनौती मिलने पर क्या-क्या बदलाव किए जाएंगे। भाजपा सरकार इसे अपनी बड़ी उपलब्धि के रूप में प्रचारित कर रही है, जबकि इसमें तमाम खामियां नजर आ रही हैं। विपक्षी पार्टियां इसके विरोध में सड़क पर उतरने लगी हैं और इस कानून को लागू करने की बजाय मूल निवास और भू-कानून प्रदेश में लागू करने की मांग कर रही हैं।

About Post Author