7 फरवरी को होगी ज्ञानवापी मामले में सुनवाई, मुस्लिम और हिन्दू पक्ष ने कोर्ट में पेश की दलीलें, जानें क्या कुछ कहा…

KNEWS DESK-  7 फरवरी को ज्ञानवापी मामले में सुनवाई होगी। आपको बता दें कि बीते  5 फरवरी 2024 को ज्ञानवापी मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट में सुनवाई हुई। मस्जिद कमेटी के वकील फरमान नकवी ने 2 फरवरी को हुई अपनी बहस को आगे बढ़ाया। मस्जिद कमेटी के वकील फरमान नकवी ने कोर्ट में कहा कि जिला जज ने जब व्यास परिवार की अर्जी को 17 जनवरी को डीएम को रिसीवर बनाए जाने का आदेश जारी कर निस्तारित कर दिया था फिर उसके बाद इस मुकदमे को आगे बढ़ाते हुए तहखाना में पूजा अर्चना शुरू किए जाने का आदेश जारी नहीं किया जा सकता।

कोर्ट ने उनसे 17 और 31 जनवरी दोनों ही दिनों के आदेश पेश करने को कहा। नकवी ने उसे कोर्ट को दिखाया और दोनों आदेशों को पढ़कर सुनाया है। कोर्ट ने पूछा है कि 1993 में तहखाना बंद होने के समय क्या स्थिति थी। वहां पूजा होती थी या नहीं या वह जगह मस्जिद के हिस्से में आती थी। मस्जिद कमेटी की तरफ से कहा गया है कि 1993 से पहले तहखाना में किसी तरह की कोई पूजा नहीं होती थी। यह बात 1968 के एक मुकदमे में पहले भी साफ हो चुकी है।

मुस्लिम पक्ष के वकील नकवी ने कहा कि यह सूट सिविल जज की कोर्ट में पेश किया गया था। जिला जज ने इसे अपने यहां ट्रांसफर कर ऑर्डर पास किया। नकवी अभी कोर्ट में व्यास परिवार की उस अर्जी को पढ़ रहे हैं, जिस पर कोर्ट ने आदेश जारी किया था।

मुस्लिम पक्ष के वकील नकवी ने कहा कि वाराणसी के डीएम ने 31 जनवरी के जिला जज के आदेश को लेकर बेहद जल्दबाजी में काम किया। उन्होंने सिर्फ 7 से 8 घंटे में तहखाना खुलवाया। वहां साफ सफाई कराई और पूजा भी शुरू करा दी। वह यह नहीं बता सकेंगे कि इतनी जल्दी उन्हें आदेश की कॉपी कैसे प्राप्त हुई। नकवी ने कोर्ट से अनुरोध किया है कि इस बारे में वाराणसी कोर्ट और डीएम को मिले आदेश के सभी रिकॉर्ड समन कर लिए जाएं तो सच्चाई सामने आ जाएगी। यह सब कुछ कानून के दायरे में नहीं हुआ है।

नकवी ने दलील दी कि जिस तहखाना को लेकर विवाद है, वह पहले मस्जिद का ही हिस्सा था। बाद में वहां बैरिकेडिंग कर दी गई थी। यह बात हमने अपने पहले की आपत्तियों में भी कई बार कहा है। 1993 से अब तक हिंदू पक्ष का भी यहां कब्जा नहीं रहा।

मामले की सुनवाई कर रहे जस्टिस रोहित रंजन अग्रवाल ने नकवी से पूछा है कि सुप्रीम कोर्ट से आए असलम भूरे केस के संपत्तियों की रक्षा करने के आदेश के मामले से यह मामला अलग तो नहीं जा रहा है।

नकवी ने कहा कि यह मामला सुप्रीम कोर्ट के असलम भूरे केस के आदेश का उल्लंघन है। डीएम यह बताएं कि उन्हें आधिकारिक तौर पर आदेश की जानकारी कैसे हुई। उन्हें अदालत के आदेश की प्रमाणित कॉपी कब प्राप्त हुई और कब उन्होंने तहखाना को खोलकर उसमें साफ सफाई करने का आदेश दिया और कितने समय में पूजा की तैयारी कराई गई।

नकवी ने कहा कि अंतिम तौर पर मुकदमे का निपटारा होने तक पूजा अर्चना का आदेश देने का फैसला गलत था। जिला जज का फैसला सही नहीं है।

इस पर जस्टिस अग्रवाल ने कहा है कि आप यह बताइए कि तहखाना कब आपके कब्जे में था या वह आपकी संपत्ति है। अगर आप यह साबित कर दीजिए कि तहखाना पर आपका कब्जा था तो मैं आपकी यह अपील मंजूर कर लूंगा। पूजा शुरू कराए जाने का फैसला अंतिम नहीं है, यह एक अंतरिम व्यवस्था है।

नकवी का कहना है कि मैंने कोर्ट के सामने अपनी आपत्तियां रख दी हैं। वहां बैरिकेडिंग सिर्फ इसलिए की गई थी, ताकि कानून व्यवस्था कायम रहे और उसे कोई खतरा पैदा ना हो। इसके बाद हिंदू पक्ष के वकील विष्णु शंकर जैन ने दलीलें पेश की।

विष्णु शंकर जैन ने कहा कि कोर्ट में बहस के दौरान तमाम ऐसी बातें कही जा रही हैं, जो अपील में है ही नहीं। 31 जनवरी के पूजा अर्चना शुरू किए जाने के आदेश का आधार 17 जनवरी को डीएम को रिसीवर के तौर पर नियुक्त किए जाने का फैसला है, जिसे मुस्लिम पक्ष ने चुनौती ही नहीं दी। इस पर जस्टिस अग्रवाल ने उन्हें टोकते हुए कहा कि आप सिर्फ यह बताइए कि 17 जनवरी के आदेश के साथ ही जब अर्जी निस्तारित हो गई तो 31 जनवरी का फैसला कैसे आ गया। इस पर जैन ने कहा कि 17 जनवरी के आदेश को 30 जनवरी तक किसी भी बिंदु पर कहीं भी चुनौती नहीं दी गई।

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