KNEWS DESK – पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव नजदीक आते ही राज्य की राजनीति एक नए विवाद से गरमा गई है। राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (NCBC) द्वारा राज्य की ओबीसी सूची से 35 मुस्लिम समुदायों को हटाने की सिफारिश के बाद बंगाल में चुनावी माहौल और गर्म हो गया है। बीजेपी इसे तुष्टिकरण का अंत बता रही है, जबकि टीएमसी इसे राजनीतिक साजिश कहकर केंद्र और आयोग पर निशाना साध रही है।
35 मुस्लिम जातियों को ओबीसी से हटाने की सिफारिश कैसे शुरू हुई?
राष्ट्रीय पिछड़ा आयोग की जांच में पाया गया कि 2014 लोकसभा चुनाव से ठीक पहले पश्चिम बंगाल सरकार ने 37 समुदायों को ओबीसी सूची में जोड़ा था, जिनमें 35 समुदाय मुस्लिम थे। आयोग का कहना है कि यह फैसला बिना उचित सामाजिक-आर्थिक अध्ययन के लिया गया था। सामाजिक न्याय मंत्रालय ने संसद को बताया कि आयोग ने अपनी यह सिफारिश जनवरी 2025 में भेजी थी। 102वें संवैधानिक संशोधन के बाद ओबीसी सूची में किसी बदलाव के लिए संसद की मंजूरी अनिवार्य है, यानी अंतिम निर्णय केंद्र के हाथ में है।
बीजेपी ने दी प्रतिक्रिया
बीजेपी के मुताबिक टीएमसी सरकार ने वोट बैंक की राजनीति के तहत मुस्लिम समुदायों को ओबीसी में शामिल किया। इससे वास्तविक पिछड़ी जातियों का हक प्रभावित हुआ। अब आयोग की सिफारिश से सच्चाई सामने आ गई है। केंद्र को “वास्तविक सामाजिक पिछड़ेपन” के आधार पर OBC सूची को पुनर्गठित करना चाहिए। बीजेपी नेताओं का कहना है कि यह कदम बंगाल में न्याय व्यवस्था बहाल करने वाला है।
टीएमसी ने आयोग और केंद्र पर निशाना साधा
टीएमसी इस मुद्दे को राजनीतिक षड्यंत्र बता रही है। पार्टी का दावा आयोग के पास राज्य की ओबीसी सूची में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं। यह पूरा विवाद बीजेपी द्वारा चुनाव से पहले माहौल बिगाड़ने की कोशिश है। केंद्र सरकार चुनावी फायदा लेने के लिए संवैधानिक संस्थाओं का दुरुपयोग कर रही है।
टीएमसी का कहना है कि ममता सरकार की सामाजिक न्याय नीतियों को निशाना बनाया जा रहा है, ताकि मुस्लिम वोट बैंक में भ्रम पैदा किया जा सके।
लोकसभा में भी उठा मुद्दा
बीजेपी सांसदों ने लोकसभा में सरकार से मांग की है कि वह इस मामले में हस्तक्षेप करे और आयोग की सिफारिशों को जल्द लागू करे। मुस्लिम समुदायों को हटाए जाने के मुद्दे को लेकर संसद से लेकर बंगाल की सड़कों तक राजनीतिक गर्मी बढ़ती जा रही है।
बंगाल में आने वाले चुनाव के साथ ही यह मुद्दा बीजेपी के लिए मुख्य चुनावी हथियार बन चुका है। टीएमसी इसे भाजपा की ध्रुवीकरण रणनीति बता रही है। आयोग की रिपोर्ट ने राज्य की राजनीति को नए मोड़ पर ला खड़ा किया है।