KNEWS DESK- भारतीय टेनिस के सबसे प्रतिष्ठित खिलाड़ियों में से एक, रोहन बोपन्ना ने पेशेवर टेनिस से अपने संन्यास की घोषणा कर दी है। लेकिन यह विदाई एक साधारण अलविदा नहीं, बल्कि एक भावनात्मक धन्यवाद थी—एक ऐसे खिलाड़ी की, जिसने दो दशकों से भी अधिक समय तक भारत के लिए गौरव के पल रचे।
कूर्ग की धरती से निकले रोहन बोपन्ना ने टेनिस की दुनिया में वह मुकाम हासिल किया, जिसकी कल्पना करना भी आसान नहीं। उन्होंने 20 से अधिक वर्षों तक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का प्रतिनिधित्व किया और डबल्स के खेल में अपनी पहचान एक विश्वस्तरीय खिलाड़ी के रूप में बनाई। 2017 में उन्होंने गैब्रिएला डाब्रोव्स्की के साथ फ्रेंच ओपन मिक्स्ड डबल्स जीता था, जबकि 2024 में मैथ्यू एबडन के साथ ऑस्ट्रेलियन ओपन पुरुष युगल खिताब जीतकर इतिहास रच दिया।
उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि रही- 43 वर्ष की उम्र में विश्व नंबर-1 युगल खिलाड़ी बनना, जो अपने आप में भारतीय टेनिस के इतिहास का एक स्वर्णिम अध्याय है।
बोपन्ना ने सोशल मीडिया पर अपने संन्यास की घोषणा करते हुए लिखा- “जिस चीज़ ने मेरे जीवन को अर्थ दिया, उससे विदाई कैसे लूं? कूर्ग में लकड़ी काटकर अपनी सर्व को मजबूत करने से लेकर दुनिया के सबसे बड़े एरेना में खेलने तक का यह सफर अविश्वसनीय रहा। भारत का प्रतिनिधित्व करना मेरे जीवन का सबसे बड़ा सम्मान था।”
उन्होंने आगे कहा कि यह अलविदा नहीं है, बल्कि टेनिस और उन सभी लोगों के प्रति आभार है जिन्होंने उनके सफर को आकार दिया। बोपन्ना ने यह भी कहा कि अब उनका लक्ष्य टेनिस को लौटाने का है — ताकि छोटे शहरों के युवा खिलाड़ी भी यह विश्वास कर सकें कि मेहनत और विश्वास से कोई भी सपना पूरा हो सकता है।
बोपन्ना का करियर भारतीय टेनिस में धैर्य, अनुशासन और निरंतरता का प्रतीक रहा। उन्होंने कई बार नए साथियों के साथ तालमेल बनाया, असफलताओं से सीखा, और हर बार मजबूत होकर लौटे। उनकी फिटनेस और मानसिक मजबूती ने यह साबित किया कि “उम्र केवल एक संख्या है” — क्योंकि उन्होंने 40 की उम्र पार करने के बाद भी ग्रैंड स्लैम फाइनल और खिताब जीते।
रोहन बोपन्ना का अंतिम टूर्नामेंट पेरिस मास्टर्स 1000 रहा, जहां उन्होंने एलेक्जेंडर बुब्लिक के साथ जोड़ी बनाई। इसके साथ ही भारतीय टेनिस के एक सुनहरे युग का अध्याय भले ही समाप्त हुआ, लेकिन उनकी विरासत आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बन गई है। उनकी कहानी यह सिखाती है कि सफलता केवल ट्रॉफियों में नहीं, बल्कि उस समर्पण में होती है जो कोई खिलाड़ी हर दिन कोर्ट पर लाता है।