KNEWS DESK- आंध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम जिले में स्थित काशीबुग्गा वेंकटेश्वर स्वामी मंदिर धार्मिक और ऐतिहासिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यह मंदिर भगवान विष्णु के अवतार श्री वेंकटेश्वर स्वामी (बालाजी) को समर्पित है और स्थानीय लोगों के बीच इसे ‘पूर्व का तिरुपति’ कहा जाता है। श्रद्धालुओं का विश्वास है कि यहां दर्शन करने से वही पुण्य प्राप्त होता है जो तिरुपति बालाजी के दर्शन से मिलता है।

इतिहास और स्थापना
ऐतिहासिक अभिलेख बताते हैं कि इस मंदिर का निर्माण 11वीं से 12वीं शताब्दी के बीच हुआ था। विद्वानों के अनुसार, यह मंदिर या तो चोल वंश के शासनकाल में बना या पूर्वी गंगा राजाओं द्वारा निर्मित कराया गया। उस दौर में दक्षिण भारत में विष्णु भक्ति का व्यापक प्रसार हुआ और कई वेंकटेश्वर मंदिरों की स्थापना हुई।
किंवदंती है कि एक ऋषि ने इस स्थान पर वर्षों तक कठोर तपस्या की थी। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने वेंकटेश्वर रूप में दर्शन दिए और उन्हें आशीर्वाद दिया कि वे यहीं स्थायी रूप से निवास करेंगे ताकि भक्तों की मनोकामनाएं पूरी कर सकें। इसके बाद एक स्थानीय राजा ने इस पवित्र स्थल पर भव्य मंदिर का निर्माण कराया।
द्रविड़ शैली की अद्भुत झलक
काशीबुग्गा वेंकटेश्वर स्वामी मंदिर द्रविड़ स्थापत्य कला का उत्कृष्ट उदाहरण है। ऊंचे गोपुरम, पत्थरों पर की गई सूक्ष्म नक्काशी, और मंदिर परिसर में स्थापित विष्णु के दशावतारों की मूर्तियां इसकी कलात्मक भव्यता को दर्शाती हैं। गर्भगृह में भगवान वेंकटेश्वर की मूर्ति एक ही शिलाखंड से निर्मित है। साथ ही, देवी लक्ष्मी, भगवान गरुड़ और अन्य वैष्णव देवताओं के छोटे मंदिर भी यहां स्थित हैं।
धार्मिक महत्व और उत्सव
भक्तों की मान्यता है कि वेंकटेश्वर स्वामी कलियुग के दाता हैं, जो सच्चे मन से प्रार्थना करने वालों की हर मनोकामना पूर्ण करते हैं। इसीलिए, इस मंदिर को “दक्षिण का वैकुंठ” भी कहा जाता है। हर वर्ष एकादशी, ब्रहमोत्सव, वैष्णव एकादशी और रथोत्सव के अवसर पर मंदिर में हजारों श्रद्धालु एकत्र होते हैं। विशेष रूप से वैकुंठ एकादशी पर यहां भक्तों का सैलाब उमड़ पड़ता है।
पौराणिक कथा से जुड़ा महत्व
स्थानीय किंवदंती के अनुसार, एक बार भगवान विष्णु उत्तर भारत के काशी (वाराणसी) जाने की इच्छा से दक्षिण की ओर निकले। जब वे इस स्थान पर पहुंचे, तो उन्होंने पाया कि यह भूमि उतनी ही दिव्य और पवित्र है जितनी स्वयं काशी है। तभी उन्होंने यहां वेंकटेश्वर रूप में अवतार लिया और इसे “काशीबुग्गा” नाम दिया — अर्थात दक्षिण की काशी।
भगवान ने यह वरदान दिया कि जो भी भक्त सच्चे मन से उनकी आराधना करेगा, उसके जीवन के सभी संकट दूर होंगे और उसे मोक्ष की प्राप्ति होगी। काशीबुग्गा वेंकटेश्वर स्वामी मंदिर न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि यह दक्षिण भारत की समृद्ध सांस्कृतिक, स्थापत्य और आध्यात्मिक विरासत का जीवंत प्रतीक भी है। यहां आने वाले हर भक्त को आस्था, शांति और दिव्यता का अद्भुत अनुभव प्राप्त होता है।