KNEWS DESK, भारत में धार्मिक परंपराओं और आस्थाओं का विशेष स्थान है। इन परंपराओं के पीछे न केवल सांस्कृतिक महत्व छिपा होता है, बल्कि आध्यात्मिक ऊर्जा और दिव्यता भी जुड़ी होती है। ऐसी ही एक प्राचीन परंपरा है रामचरितमानस को लाल कपड़े में लपेटकर रखने की। यह सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि इसके पीछे गहरे धार्मिक और आध्यात्मिक रहस्य छिपे हुए हैं।
लाल रंग का धार्मिक महत्व
हिंदू धर्म में लाल रंग को अत्यधिक शुभ और सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है। यह रंग शक्ति, भक्ति, और समर्पण का प्रतीक है। धार्मिक ग्रंथों को लाल कपड़े में लपेटकर रखने का उद्देश्य उन्हें बुरी शक्तियों और नकारात्मक ऊर्जा से बचाना है। यह परंपरा दिखाती है कि लाल रंग पवित्रता और दिव्यता को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
मंगल ग्रह और लाल रंग का संबंध
लाल रंग को ज्योतिष शास्त्र में मंगल ग्रह से जोड़ा गया है, जिसे साहस, ऊर्जा और शुभता का कारक माना जाता है। यही कारण है कि पूजा-पाठ, धार्मिक ग्रंथों और शुभ कार्यों में लाल रंग का उपयोग प्रचलित है। जब रामचरितमानस को लाल कपड़े में रखा जाता है, तो यह सकारात्मक ऊर्जा को बनाए रखने और ग्रंथ की पवित्रता को सुरक्षित रखने में मदद करता है।
इतिहास से जुड़े प्रमाण
धार्मिक परंपराओं के ऐतिहासिक प्रमाणों के अनुसार, जब महर्षि वाल्मिकी ने रामायण लिखी, तो उन्होंने इसे लाल कपड़े में सुरक्षित रखा। इसी परंपरा को तुलसीदास जी ने भी अपनाया, जब उन्होंने रामचरितमानस की रचना की। उस समय इन ग्रंथों को अत्यधिक सम्मान और शुद्धता के साथ लिखा जाता था। लाल कपड़ा ग्रंथों को न केवल शारीरिक रूप से सुरक्षित रखता था, बल्कि उनकी दिव्य ऊर्जा को भी संरक्षित करता था।
आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व
रामचरितमानस को लाल कपड़े में लपेटना सिर्फ धार्मिक मान्यता नहीं है, बल्कि इसका गहरा आध्यात्मिक महत्व है। यह श्रद्धालुओं में भक्ति, समर्पण और सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है। लाल कपड़े में लिपटा हुआ रामचरितमानस एक प्रतीक है, जो यह दर्शाता है कि यह ग्रंथ ईश्वर की कृपा और शक्ति का भंडार है। इसे इस प्रकार संरक्षित करना न केवल इसकी दिव्यता का सम्मान है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए इसे सुरक्षित रखने का प्रयास भी है।
परंपरा का वर्तमान स्वरूप
आज भी रामचरितमानस को लाल कपड़े में लपेटने की परंपरा को बड़े ही श्रद्धा और आस्था के साथ निभाया जाता है। यह परंपरा न केवल धार्मिक ग्रंथों की पवित्रता को बनाए रखती है, बल्कि यह हमारी सांस्कृतिक धरोहरों को संरक्षित करने का भी प्रतीक है। लाल कपड़े में लिपटा रामचरितमानस घर के मंदिरों में विशेष स्थान पाता है और इसे पढ़ने वाले श्रद्धालुओं में भक्ति और श्रद्धा का भाव जगाता है।