KNEWS DESK- सावन के शुभ महीने की शुरूआत हो गई है। सावन मास का पहला सोमवार 10 जुलाई को है भोलेनाथ के सभी भक्त इसका काफी बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं। यदि कोई व्यक्ति पूरे सावन मास में शिव जी की पूजा न कर पाएं तो वह सावन सोमवार को शिव पूजा करके भी भोलेनाथ को प्रसन्न कर सकता है इसलिए आप सावन सोमवार को पूजा अवश्य करें। इस बार पहले सावन सोमवार पर शिव पूजा का संयोग बन रहा है। चलिए आपको बताते हैं कि सोमवार को महादेव की पूजा कैसे करें…?
पहला सोमवार यानी 10 जुलाई को सावन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि शाम 06.44 तक रहेगी। धर्म ग्रंथों के अनुसार, अष्टमी तिथि के स्वामी रुद्र हैं, जो कि शिवजी का ही स्वरूप हैं। सावन के पहले सोमवार पर अष्टमी तिथि का संयोग बहुत ही शुभ है। इस दुर्लभ संयोग में महादेव की पूजा करके आपकी हर इच्छा पूरी होगी।
पंचांग के अनुसार, 10 जुलाई को दिन भर रेवती नक्षत्र रहेगा, जिससे मातंग नाम का शुभ योग बनेगा। इसके अलावा सुकर्मा नाम का एक अन्य शुभ योग भी रहेगा। इस दिन कर्क राशि में सूर्य और बुध एक साथ रहेंगे, जिससे बुधादित्य नाम का राजयोग बनेगा। इतने सारे शुभ योगों के चलते सावन के पहले सोमवार का महत्व और भी बढ़ गया है।
सावन के पहले सोमवार को दिन भर पूजा के कई मुहूर्त हैं
♦ सुबह 09:12-10:52 तक
♦ दोपहर 12:05-12:58 तक
♦ दोपहर 03:52-05:32 तक
♦ शाम 04:38-06:12 तक
शिव पूजा में इस्तेमाल होने वाली सामग्री
दीपक, फूल, फल, शुद्ध घी, गाय का कच्चा दूध, इत्र, गंध रोली, मौली, जनेऊ, कपूर, धूप, शहद, पवित्र जल, मिठाई, बिल्वपत्र, धतूरा, भांग आदि।
सावन सोमवार पर शिव पूजा का पूर्ण विधि विधान
♦ सावन के पहले सोमवार को सुबह जल्दी उठकर स्नान करें फिर व्रत-पूजा का संकल्प लें। इसके लिए हाथ में जल, चावल और फूल लें और महादेव से प्रार्थना करें।
♦ बताए गए शुभ महूर्त में किसी शिव मंदिर जाएं और सबसे पहले शिवलिंग पर जल चढ़ाएं। इसके बाद गाय के दूध से अभिषेक करें।
♦ जल एक बार फिर से चढ़ाएं। शुद्ध घी का दीपक और धूप जलाएं फिर गंध, रोली, मौली, जनेऊ, शहद, मिठाई, बिल्वपत्र, भांग, धतूरा आदि एक-एक करके चढ़ाएं।
♦ आखिर में भोग लगाएं। रुद्राक्ष की माला से 108 बार ऊं नम: शिवाय मंत्र का जाप करें। संभव हो तो शिव चालीसा और महामृत्युंजय मंत्र का पाठ भी करें। इसके बाद आरती करें और भक्तों को प्रसाद बाटें।
महादेव की आरती
ॐ जय शिव ओंकारा, स्वामी जय शिव ओंकारा।
ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
एकानन चतुरानन पञ्चानन राजे।
हंसासन गरूड़ासन वृषवाहन साजे॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
दो भुज चार चतुर्भुज दसभुज अति सोहे।
त्रिगुण रूप निरखते त्रिभुवन जन मोहे॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
अक्षमाला वनमाला मुण्डमाला धारी।
त्रिपुरारी कंसारी कर माला धारी॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
कर के मध्य कमण्डलु चक्र त्रिशूलधारी।
सुखकारी दुखहारी जगपालन कारी॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका।
मधु-कैटभ दोउ मारे, सुर भयहीन करे॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
लक्ष्मी व सावित्री पार्वती संगा।
पार्वती अर्द्धांगी, शिवलहरी गंगा॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
पर्वत सोहैं पार्वती, शंकर कैलासा।
भांग धतूर का भोजन, भस्मी में वासा॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
जटा में गंग बहत है, गल मुण्डन माला।
शेष नाग लिपटावत, ओढ़त मृगछाला॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
काशी में विराजे विश्वनाथ, नन्दी ब्रह्मचारी।
नित उठ दर्शन पावत, महिमा अति भारी॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥
त्रिगुणस्वामी जी की आरति जो कोइ नर गावे।
कहत शिवानन्द स्वामी, मनवान्छित फल पावे॥
ॐ जय शिव ओंकारा॥