KNEWS DESK- हिंदू धर्म में अमावस्या तिथि का विशेष धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व होता है। खासतौर पर साल की आखिरी अमावस्या यानी पौष अमावस्या पितरों को समर्पित मानी जाती है। शास्त्रों के अनुसार इस दिन तर्पण, दान और पुण्य कर्म करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है। वहीं, छोटी सी भूल भी पितरों को अप्रसन्न कर सकती है, जिससे परिवार में अशांति और पितृ दोष उत्पन्न हो सकता है। आइए जानते हैं पौष अमावस्या के दिन किन गलतियों से बचना बेहद जरूरी है।
तामसिक भोजन से बनाएं दूरी
पौष अमावस्या के दिन मांस, मछली, अंडा और शराब का सेवन पूरी तरह वर्जित माना गया है। साथ ही भोजन में लहसुन-प्याज का प्रयोग भी नहीं करना चाहिए। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार ऐसा भोजन नकारात्मक ऊर्जा को बढ़ाता है और पितृ दोष का कारण बन सकता है।
वाद-विवाद और अपमान से बचें
अमावस्या के दिन घर में शांति और सौहार्द बनाए रखना बेहद आवश्यक है। किसी भी प्रकार का झगड़ा, कटु वचन या बुजुर्गों का अपमान पितरों को दुखी करता है। विशेष रूप से महिलाओं और वृद्धजनों के प्रति सम्मान बनाए रखें।
देर तक सोना और संयम का त्याग न करें
धार्मिक दृष्टि से अमावस्या के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान-ध्यान करना शुभ माना जाता है। देर तक सोना, आलस्य करना और संयम का उल्लंघन करने से जीवन में बाधाएं आने लगती हैं। इस दिन ब्रह्मचर्य का पालन करना उत्तम फल देता है।
भिक्षु या पशु को खाली हाथ न लौटाएं
पौष अमावस्या पर किया गया दान कई गुना फलदायी होता है। यदि कोई गरीब, जरूरतमंद या गाय-कुत्ता आपके द्वार पर आए तो उसे खाली हाथ न लौटाएं। अन्न या जल का दान अवश्य करें। मान्यता है कि पितृ किसी भी रूप में द्वार पर आ सकते हैं।
सुनसान स्थानों पर जाने से बचें
शास्त्रों में अमावस्या की रात को नकारात्मक शक्तियों की सक्रियता अधिक बताई गई है। इसलिए देर रात सुनसान रास्तों, श्मशान या पीपल के पेड़ के पास अकेले जाने से बचें। इस समय इष्ट देव का ध्यान और जप करना शुभ माना जाता है।
पौष अमावस्या पर शुभ फल पाने के उपाय
- तर्पण और दान: सुबह स्नान के बाद तिल, कुश और जल से पितरों का तर्पण करें।
- पीपल की पूजा: शाम के समय पीपल के नीचे सरसों के तेल का दीपक जलाएं।
- गीता पाठ: भगवद गीता का पाठ पितरों की आत्मा की शांति के लिए अत्यंत लाभकारी माना गया है।
पौष अमावस्या का धार्मिक महत्व
पौष अमावस्या को पितृ देवताओं की तिथि माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार इस दिन पितृलोक और पृथ्वी लोक के बीच विशेष संबंध बनता है. जल, तिल और कुश से किया गया तर्पण पितरों तक सीधे पहुंचता है, जिससे पितृ दोष से मुक्ति और वंश में सुख-समृद्धि बनी रहती है।