KNEWS DESK- स्नान पूर्णिमा के दिन स्नान वेदी पर दिव्य स्नान करने के बाद भगवान जगन्नाथ बुखार से पीड़ित हो गए हैं और प्रभु का इलाज चल रहा है। चतुर्धा विग्रह की गुप्त नीति जारी है। ऐसे में अब जब तक भगावन बुखार से स्वस्थ नहीं हो जाते हैं तब तक पुरी जगन्नाथ मंदिर में भक्तों को महाप्रभु का दर्शन नहीं कर सकेंगे। 7 जुलाई को ही महाप्रभु के भक्त दर्शन करेंगे।
भगवान शिव की नगरी काशी में भगवान जगन्नाथ का भी उत्सव धूमधाम से मनाया जाता है| वहीं इस कड़ी की शुरुआत उड़ीसा से जगन्नाथ जी के भक्तों द्वारा काशी आकर इस परंपरा की शुरुआत की गई थी|
भगवान शिव की नगरी काशी विश्व की सबसे प्राचीन नगरी मानी जाती है। यहां कई ऐसी परंपराएं हैं जिन्हें काशीवासी बड़े उत्साह और धूमधाम के साथ निभाते हैं। इसी कड़ी में काशी में भगवान जगन्नाथ से जुड़ा एक ऐसा उत्सव है, जिसे न केवल काशीवासी बल्कि अन्य शहरों के लोग भी पूरे उल्लास के साथ मनाते हैं। इस उत्सव से पहले एक ऐसी मान्यता है जो श्रद्धालुओं के भगवान के प्रति अटूट आस्था और विश्वास को प्रदर्शित करती है। यह कथा भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा से जुड़ी है।
धर्माचार्य बताते हैं कि भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा को 14 दिनों तक नियमित काढ़ा दिया जाता है। इसके बाद वे पुनः स्वस्थ होते हैं। ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा से लेकर अगले 14 दिनों तक श्रद्धालु उनके स्वास्थ्य लाभ की प्रतीक्षा में रहते हैं। इस वर्ष, 6 जुलाई को स्वस्थ होने के पश्चात, भगवान जगन्नाथ अपने परिवार के साथ भोर में श्रद्धालुओं को दर्शन देंगे। इसके बाद, काशी में भगवान जगन्नाथ की प्राचीन रथयात्रा मेले का आयोजन होता है, जिसे देखने के लिए दूर-दराज से श्रद्धालु आते हैं।
क्या बोले पंडित विश्वकांताचार्य
काशी के विद्वान पंडित विश्वकांताचार्य ने एबीपी लाइव से चर्चा में बताया कि काशी विश्व की सबसे प्राचीन नगरी है और यहां भगवान शिव का वास है। इस धर्म नगरी में सभी देवी-देवताओं से संबंधित कई मान्यताएं और परंपराएं हैं, जिन्हें भक्तों ने सैकड़ों वर्षों से संजोया हुआ है। इसी परंपरा के अंतर्गत, उड़ीसा से आए जगन्नाथ जी के भक्तों ने काशी में एक नई परंपरा की शुरुआत की थी, जिसे आज भी विधिपूर्वक संपन्न किया जाता है।
ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा को वाराणसी के अस्सी क्षेत्र के मंदिर में भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के दर्शन होते हैं। इस समय एक विशेष परंपरा निभाई जाती है, जिसमें कहा जाता है कि भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा सृष्टि के पालन के लिए निरंतर कार्य करते रहते हैं। इस दिन, भोजन और स्नान के बाद वे अस्वस्थ हो जाते हैं। इसके बाद 14 दिनों तक उन्हें नियमित रूप से लौंग, इलायची, जायफल, तुलसी और काली मिर्च का काढ़ा दिया जाता है। इसी कारण शिव की नगरी काशी में भगवान जगन्नाथ का उत्सव भी धूमधाम से मनाया जाता है।