KNEWS DESK- भारतीय संस्कृति में व्रत-उपवास का विशेष महत्व है। इन्हीं में से एक है जितिया व्रत या जीवित्पुत्रिका व्रत, जो माताएं अपनी संतान की लंबी आयु, अच्छे स्वास्थ्य और सुख-समृद्धि के लिए करती हैं। यह व्रत अपनी कठिनाई और मां के त्याग के प्रतीक के रूप में जाना जाता है। खास बात यह है कि इसमें महिलाएं एक पूरे दिन तक निर्जला उपवास करती हैं, यानी न अन्न ग्रहण करती हैं और न ही जल।

जितिया व्रत 2025 कब है?
पंचांग के अनुसार, अष्टमी तिथि 14 सितंबर 2025, रविवार की सुबह 5:04 बजे से शुरू होकर 15 सितंबर की सुबह 3:06 बजे तक रहेगी। उदया तिथि के आधार पर, इस साल जितिया व्रत 14 सितंबर 2025, रविवार को रखा जाएगा।
व्रत की शुरुआत और समापन
- पहला दिन (नहाय-खाय): महिलाएं गंगा या किसी पवित्र नदी में स्नान कर सात्विक भोजन करती हैं।
- दूसरा दिन (निर्जला उपवास): पूरे दिन बिना अन्न-जल ग्रहण किए उपवास रखा जाता है और भगवान जीमूतवाहन की पूजा की जाती है।
- तीसरा दिन (पारण): सूर्योदय के बाद व्रत खोला जाता है। इस दिन विशेष व्यंजन जैसे झोर, मरुवा की रोटी और नोनी का साग बनाए जाते हैं।

पौराणिक कथाएं और महत्व
जीमूतवाहन की कथा
कहा जाता है कि दयालु राजा जीमूतवाहन ने एक नागवंशीय बालक की रक्षा के लिए स्वयं को गरुड़ के समक्ष बलिदान हेतु प्रस्तुत कर दिया। उनकी निःस्वार्थ भावना से प्रसन्न होकर गरुड़ ने नागों को न खाने का वचन दिया। तभी से महिलाएं अपनी संतान की रक्षा के लिए जीमूतवाहन की पूजा करती हैं।
चील और सियारिन की कथा
मान्यता है कि एक चील और सियारिन ने व्रत करने का निश्चय किया। चील ने पूर्ण निष्ठा से निर्जला उपवास रखा और अगले जन्म में रानी बनकर अनेक पुत्रों का सुख प्राप्त किया। जबकि सियारिन ने व्रत तोड़ दिया और अगले जन्म में उसे दुखमय जीवन मिला। इस कथा से यह संदेश मिलता है कि व्रत हमेशा श्रद्धा और विश्वास से करना चाहिए।
पूजा विधि
महिलाएं कुश से जीमूतवाहन की प्रतिमा बनाकर उनकी पूजा करती हैं। पूजा में फल, फूल और घर में बने पकवान अर्पित किए जाते हैं। संतान की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि की कामना के लिए माता पूरे दिन निर्जला व्रत रखती हैं।
जितिया व्रत का महत्व
यह व्रत मातृत्व के त्याग और अटूट प्रेम का प्रतीक है। मान्यता है कि इस व्रत से संतान को दीर्घायु प्राप्त होती है और जीवन में आने वाले संकट टल जाते हैं। यह व्रत धार्मिक ही नहीं, बल्कि भावनात्मक दृष्टि से भी मां और संतान के रिश्ते की गहराई को दर्शाता है।
जितिया व्रत एक ऐसा पर्व है जो मां के निस्वार्थ भाव, त्याग और संतान के प्रति उसकी ममता का जीवंत उदाहरण है। कठिन निर्जला उपवास के माध्यम से मां अपनी संतान के लिए दीर्घायु, स्वास्थ्य और सुखमय जीवन की कामना करती है। यही कारण है कि यह व्रत भारत के कई हिस्सों में महिलाओं द्वारा बड़े श्रद्धा और आस्था के साथ मनाया जाता है।