Knews Desk, पितरों की पूजा हिंदू धर्म में महत्वपूर्ण है, क्योंकि धार्मिक मान्यता के अनुसार, पितरों की कृपा जीवन के हर क्षेत्र में समृद्धि और सुख की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह मान्यता है कि जिन व्यक्तियों पर पितरों की आशीर्वाद बरसते हैं, वे अपने जीवन में समृद्धि, सुख, और विशेष धन प्राप्त करते हैं, और उनके वंश में वृद्धि होती है। इसके विपरीत, जो इन पितृगणों का आदर नहीं करते हैं, उन्हें विभिन्न प्रकार के कष्टों का सामना करना पड़ता है। गरुण पुराण के अनुसार, जो व्यक्ति पितृपक्ष में श्रद्धा और भक्ति के साथ अपने पितरों के लिए श्राद्ध करता है, उन्हें पितर अनंत सुख, धन, संतान का सुख, मान-सम्मान, और अन्य सुख प्रदान करते हैं। इन पितृगणों की कृपा से व्यक्ति अपने जीवन में सभी सुखों का आनंद उठाता है और अंत में मोक्ष को प्राप्त करता है।
- हिंदू मान्यता के अनुसार, पितृपक्ष में पितरों के लिए तर्पण करने का विशेष महत्व है। तर्पण, जिसे जल में तिल मिलाकर अर्पण करना कहा जाता है, पितरों के आत्माओं की शांति के लिए किया जाता है। मान्यता है कि जब व्यक्ति तीन अंजुलि जल में तिल मिलाकर कुश ग्रास के साथ पितरों को यह अर्पित करता है, तो उसका पितृदोष समाप्त हो जाता है। इसके अलावा, तर्पण देवताओं, ऋषियों, और यम जैसे दिव्य प्राणियों के लिए भी किया जा सकता है। पितृपक्ष के दौरान, पीपल के वृक्ष पर भी काले तिल, दूध, अक्षत और पुष्पों का अर्पण करने से पितरों को संतुष्ट करने का अवसर मिलता है।
- पितृपक्ष में पितरों के लिए किए जाने वाले श्राद्ध का महत्व श्रद्धा से होता है, इसलिए जब भी श्राद्ध किया जाता है, तो यह तन और मन से पवित्रता और सात्विकता के साथ किया जाना चाहिए। इस दौरान, भूलकर भी तामसिक चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए। हिंदू मान्यता के अनुसार, पितृपक्ष में श्राद्ध का सबसे उत्तम समय दोपहर के 12 बजे से 1 बजे के बीच का होता है, इसलिए श्राद्ध कर्म को इसी समय करने का प्रयास करना चाहिए।
- पितृपक्ष में दान का महत्व हिंदू धर्म में अत्यधिक माना जाता है। इस समय पितरों के आत्माओं की शांति और सुख के लिए दान करना बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। व्यक्ति अपनी सुविधा और सामर्थ्य के अनुसार किसी सुयोग्य ब्राह्मण या आवश्यकता पूर्ण व्यक्ति को अपने सामर्थ्य के अनुसार दान देता है, जिससे उनके पितरों की आत्मा को शांति मिलती है।
पितृपक्ष में काले तिल का दान, गोदान, अन्न दान, और अन्य प्रकार के दानों का महत्व बड़ा होता है। काले तिल का दान पितरों की खुशी और सुख के लिए किया जाता है, गोदान पुण्य का स्रोत होता है, और अन्न दान भूखमरी से ग्रस्त लोगों की मदद करता है। इसलिए, पितृपक्ष के दौरान दान करना धार्मिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण होता है।
- हिंदू मान्यता के अनुसार, पितृपक्ष में जब भी आप पितरों के नाम पर श्राद्ध करते हैं, तो उनकी फोटो को हमेशा घर की दक्षिण दिशा में लगाना चाहिए। उनके पुष्प चढ़ाकर पूजन करना और जाने-अनजाने में हुई किसी भी गलती के लिए क्षमा मांगना चाहिए। आपको उनके आशीर्वाद के लिए आभार प्रकट करना चाहिए और कभी भी पितरों की आलोचना नहीं करनी चाहिए।
- पितृपक्ष में हमेशा किसी सुयोग्य ब्राह्मण से पितरों के लिए पूजन कार्य करवाना चाहिए और उसे इस कार्य को संपन्न कराने के लिए आदरपूर्वक आमंत्रित करना चाहिए, और भूलकर भी उसे दिये जाने वाले दान का अभिमान नहीं करना चाहिए। पितृपक्ष में ब्राह्मण को कांसे या पत्तल में भोजन करवाना चाहिए, और उनके साथ भोजन करते समय शांति बनाए रखनी चाहिए।