धोखाधड़ी में धन चला जाए तो कैसे संभालें मन? प्रेमानंद महाराज ने बताया जीवन का गूढ़ सच

KNEWS DESK- आज के दौर में धोखाधड़ी और मेहनत की कमाई हड़प लेने की घटनाएं तेजी से बढ़ रही हैं। जब किसी व्यक्ति की दिन-रात की कमाई एक झटके में चली जाती है, तो वह आर्थिक नुकसान के साथ-साथ मानसिक तनाव, क्रोध और हताशा से भी टूट जाता है। ऐसे ही एक पीड़ित भक्त के सवाल पर वृंदावन के संत प्रेमानंद महाराज ने बेहद गहन और व्यावहारिक मार्गदर्शन दिया है।

“यह पूर्व जन्मों का हिसाब है” – कर्म सिद्धांत की व्याख्या

प्रेमानंद महाराज के अनुसार, इस संसार में कुछ भी बिना कारण नहीं होता। यदि कोई आपकी मेहनत की कमाई लेकर भाग गया है या धोखे से धन हड़प लिया है, तो वह आपके पूर्व जन्मों के कर्मों का परिणाम भी हो सकता है। महाराज कहते हैं कि संभव है पिछले जन्म में आपने किसी का कुछ लिया हो और वही व्यक्ति आज अलग रूप में वह धन ‘सूद समेत’ वापस ले गया हो। इसे कर्मों का हिसाब बराबर होना समझना चाहिए।

द्वेष और बदले की भावना से बनता है नया कर्म

महाराज की सबसे अहम सीख यही है कि धोखा देने वाले व्यक्ति के प्रति मन में नफरत या बदले की भावना न रखें। उनका कहना है कि द्वेष और घृणा एक नया बुरा कर्म बनाते हैं। यदि आप इस भावना में बंध गए, तो वही कर्म आगे चलकर फिर भोगना पड़ेगा। बुद्धिमानी इसी में है कि पुराने हिसाब को यहीं समाप्त कर दिया जाए, उसे आगे न बढ़ाया जाए।

विवेक के साथ करें प्रयास, लेकिन मन को न बिगाड़ें

प्रेमानंद महाराज यह नहीं कहते कि व्यक्ति हाथ पर हाथ धरे बैठ जाए। वह विवेक के प्रयोग पर जोर देते हैं। अपने धन की रक्षा के लिए कानूनी, सामाजिक या व्यावहारिक प्रयास जरूर करें, लेकिन मन को क्रोध और तनाव से दूषित न होने दें। यदि तमाम प्रयासों के बाद भी धन वापस नहीं मिलता, तो यह मानकर स्वीकार करें कि वह किसी पुराने कर्म का परिणाम था।

भाग्य में होगा तो लौट आएगा, नहीं तो शांति न खोएं

महाराज का कहना है कि यदि कोई धन वास्तव में आपके भाग्य और अधिकार में है, तो ब्रह्मांड की कोई शक्ति उसे आपसे दूर नहीं रख सकती। असली शांति धन में नहीं, बल्कि संतोष और सही समझ में है। पैसा चला जाए तो उसे फिर से कमाया जा सकता है, लेकिन यदि क्रोध, नफरत और तनाव में मानसिक शांति खो गई, तो पूरा जीवन अशांत हो जाता है।

सीख: नुकसान से नहीं, सोच से टूटता है इंसान

प्रेमानंद महाराज की यह सीख हमें सिखाती है कि जीवन में नुकसान से ज्यादा खतरनाक हमारी प्रतिक्रिया होती है। यदि मन शांत, विवेकपूर्ण और कर्म सिद्धांत को समझने वाला हो, तो सबसे बड़ा नुकसान भी जीवन का सबक बन सकता है, बोझ नहीं।

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