KNEWS DESK, विजय दशमी जिसे दशहरा भी कहा जाता है, बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। इस दिन भगवान राम द्वारा रावण के वध की याद में रावण के पुतले का दहन किया जाता है। इसके साथ ही इस दिन शस्त्रों की पूजा का विशेष महत्व है। आइए जानते हैं विजय दशमी के दिन शस्त्र पूजा करने के पीछे की वजह, विधि और उसके महत्व के बारे में।
शस्त्र पूजा का महत्व
विजय दशमी के दिन शस्त्र पूजा की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है। यह दिन बुराई पर विजय पाने का प्रतीक है और शस्त्र पूजा का उद्देश्य उस विजय की सिद्धि और सुरक्षा को सुनिश्चित करना है। बता दें कि एक कथा के अनुसार, जब प्रभु श्रीराम ने माता सीता को रावण की कैद से मुक्त करने के लिए युद्ध किया, तब उन्होंने अपने शस्त्रों की पूजा की थी। यह पूजा उन्हें विजय के लिए प्रेरित करती है। दूसरी कथा में, मां दुर्गा ने महिषासुर का वध किया था। उनके इस विजय के बाद देवताओं ने उनके शस्त्रों का पूजन किया। यह परंपरा न केवल युद्धों में विजय के लिए है बल्कि यह जीवन में संघर्ष और चुनौतियों का सामना करने की प्रेरणा भी देती है।
शस्त्र पूजा की विधि
विजय दशमी के दिन शस्त्र पूजा करने के लिए सुबह उठकर स्नान करें और शुभ मुहूर्त का ध्यान रखें। सभी अस्त्र-शस्त्रों को निकालें और उन्हें एक चौकी पर साफ कपड़ों में रखें। फिर शस्त्रों पर गंगाजल छिड़कर उन्हें पवित्र करें। इसके बाद सभी शस्त्रों पर मौली बाधें और सभी पर तिलक करें और उन्हें फूलों की माला चढ़ाएं। साथ ही चंदन, अक्षत, पुष्प, धूप, और दीप से विधि-विधान के साथ पूजा करें।
शस्त्र पूजा का लाभ
विजय दशमी के दिन शस्त्र पूजा करने से जीवन में चल रही परेशानियों और दरिद्रता का नाश होता है। इसके अलावा यह पूजा शोक और भय को भी दूर करने में सहायक होती है। पूजा के बाद व्यक्ति में आत्मविश्वास और शक्ति का संचार होता है जो उसे जीवन की चुनौतियों का सामना करने में मदद करता है।