KNEWS DESK – अक्षय नवमी, जिसे आंवला नवमी भी कहा जाता है, हिंदू धर्म में एक विशेष महत्व रखता है। यह दिन धार्मिक दृष्टि से अत्यधिक शुभ माना जाता है और विशेषकर भगवान श्री विष्णु, देवी लक्ष्मी और भगवान शिव की पूजा का दिन होता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन व्रत रखने और आंवला वृक्ष की पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और जीवन में सुख, समृद्धि और आरोग्य की प्राप्ति होती है।
व्रत कथा का पाठ करना अत्यंत फलदायी
बता दें कि आंवला नवमी का व्रत विशेष रूप से धन, वैभव, सुख, और अच्छे स्वास्थ्य के लिए किया जाता है। इसे मनाने के लिए व्रति को आंवला वृक्ष के नीचे पूजा करनी चाहिए, और इस दिन की व्रत कथा का पाठ करना अत्यंत फलदायी माना जाता है। इस दिन बिना मुहूर्त देखे कोई भी शुभ कार्य शुरू किया जा सकता है, क्योंकि इसे विशेष रूप से तात्कालिक सफलता और अक्षय फल देने वाला दिन माना जाता है।
आंवला नवमी पौराणिक व्रत कथा
एक समय की बात है, एक छोटे से गांव में एक सेठ रहता था, जो हर साल आंवला नवमी के दिन आंवला वृक्ष के नीचे ब्राह्मणों को भोजन कराता था और उन्हें उपहार देता था। हालांकि, सेठ के बेटे इस काम को पसंद नहीं करते थे और वे हमेशा अपने पिता से इस पर विवाद करते रहते थे। एक दिन सेठ के बेटे इतना नाराज हुए कि उन्होंने अपने पिता से यह सब बंद करने को कहा, और अंततः सेठ को अपने घर छोड़कर दूसरे गांव में बसने का निर्णय लेना पड़ा।
दूसरे गांव में सेठ ने एक छोटी सी दुकान खोली और उसके सामने आंवला का पेड़ लगाया। भगवान विष्णु की कृपा से उसकी दुकान खूब चलने लगी। इसके साथ ही, वह हर साल की तरह आंवला नवमी के दिन ब्राह्मणों को भोजन कराता और दान देता रहा।
जबकि सेठ के बेटे की दुकानें और व्यापार बंद हो गए थे। बहुत दिनों तक वे यही सोचते रहे कि उनका व्यापार कैसे ठप हो गया। फिर उन्हें एहसास हुआ कि उनकी किस्मत उनके पिता के दान-पुण्य और आंवला नवमी की पूजा पर निर्भर थी। उन्होंने अपनी गलती समझी और अपने पिता से माफी मांगने गए। पिता ने उन्हें आंवला वृक्ष की पूजा करने और दान-पुण्य करने की सलाह दी। इसके बाद, सेठ के बेटों ने भी आंवला वृक्ष की पूजा शुरू की और उनके घर फिर से खुशहाली आ गई। उनकी दुकानें फिर से चलने लगीं और उनका जीवन फिर से समृद्ध हो गया।
देवी लक्ष्मी की पूजा
एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार, एक समय देवी लक्ष्मी पृथ्वी पर भ्रमण करने आईं। उन्होंने देखा कि सभी लोग भगवान शिव और श्रीहरि विष्णु की पूजा कर रहे हैं। इस दृश्य को देखकर देवी लक्ष्मी ने सोचा कि वह दोनों देवताओं की पूजा कैसे करें? उन्हें यह समझ में आया कि आंवला वृक्ष के नीचे दोनों देवताओं की पूजा करना ही सही तरीका है, क्योंकि आंवला वृक्ष में बेल और तुलसी दोनों के गुण होते हैं।
लक्ष्मी जी ने आंवला वृक्ष के नीचे भगवान विष्णु और शिव की पूजा की। इस पूजा से देवी लक्ष्मी इतनी प्रसन्न हुईं कि उन्होंने भगवान शिव और विष्णु को भोजन कराया। तब से यह परंपरा बन गई कि आंवला नवमी पर आंवला वृक्ष की पूजा करके सुख, समृद्धि और स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है।
अक्षय नवमी के महत्व
अक्षय नवमी का दिन विशेष रूप से शुभ है। इस दिन की पूजा से न केवल समृद्धि मिलती है, बल्कि पापों से मुक्ति भी मिलती है। शास्त्रों में कहा गया है कि इस दिन किया गया दान और पूजा, कई गुना फल देता है। आंवला नवमी का व्रत करने से व्यक्ति को आय, समृद्धि और स्वास्थ्य लाभ मिलता है, और साथ ही परिवार में सुख-शांति बनी रहती है। इसके अतिरिक्त, यह दिन सभी प्रकार के पापों से मुक्ति दिलाने वाला होता है। आंवला नवमी के दिन यदि कोई व्यक्ति उपवास करके व्रत कथा का पाठ करता है तो उसे सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है और उसके जीवन में शुभ फल की प्राप्ति होती है।