पहाड़ का दर्द, मैदान की आय ?

देहरादून, उत्तराखंड राज्य का गठन पहाड़ के विकास के लिए हुआ…….हांलाकि राज्य के गठन के बाद से नेताओं के लिए पहाड़ का विकास कोई खास मायने नहीं रखा…..आलम ये है कि पहाड़ के पहाड़ आज खाली हो गए…..दौड़ती भागती जिंगदी के बीच पहाड़ का युवा रोजगार की तलाश में पहाड़ पर रूकने को राजी नहीं है। उत्तराखंड बनने के  पिछले 22 वर्षों में उत्तराखंड की प्रति व्यक्ति आय राष्ट्रीय औसत को तो पीछे छोड़ चुकी है, लेकिन तस्वीर का दूसरा पहलू यह भी है कि समृद्धि के मामले में राज्य का पर्वतीय क्षेत्र मैदान से पिछड़ गया है। औद्योगिक नगरी बन चुके हरिद्वार, ऊधमसिंह नगर और देहरादून जिले प्रति व्यक्ति आय के मामले में सबसे आगे हैं। जबकि पहाड़ पीछे हैं…..हाल ही में अर्थ एवं संख्या निदेशालय ने वर्ष 2021-22 के जिलावार प्रति व्यक्ति आय के आंकड़े जारी किए हैं जिसमें इसका खुलासा हुआ है। वहीं अब इस मामले में सियासत गर्मा गई है। राजनीतिक दल एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगा रहे हैं…

 9 नवंबर सन 2000 ये वो तारीख है जब उत्तराखंड राज्य का गठन हुआ….उत्तरप्रदेश से अलग होकर अलग राज्य की मांग इसलिए की गई थी… ताकी पहाड़ का विकास हो पहाड़वासियों की आय बढ़े….पहाड़ का पानी और जवानी पहाड़ के काम आए… लेकिन राज्य गठन के बाद हुआ इसका ठीक उलटा जहां पहाड़ों में आज ना तो जवानी है और ना ही पहाड़ का पानी ही पहाड़ के काम आ रहा है……इस बात की पुष्टि अर्थ एवं संख्या निदेशालय की वर्ष 2021-22 की प्रति व्यक्ति आय के आंकड़े कर रहे हैं… जिसमें इसका खुलासा हुआ है। रिपोर्ट में वर्ष 2022-23 की प्रति व्यक्ति आय 2,33,000 रुपये वार्षिक होने का अनुमान लगाया गया है। साथ ही पिछले एक दशक में पहाड़ की तुलना में मैदानी जिलों में समृद्धि का ग्राफ तेजी से बढ़ा है। हरिद्वार, देहरादून और ऊधम सिंह नगर जिले की प्रति व्यक्ति आय के आंकड़े इसकी तस्दीक कर रहे हैं। हरिद्वार जिले की सबसे अधिक 3 लाख 62 हजार 688 रुपये प्रति व्यक्ति आय का अनुमान है। जबकि पर्वतीय जिलों में चमोली की सबसे अधिक 1 लाख 27 हजार 330 रुपये प्रति व्यक्ति आय है, जबकि रुद्रप्रयाग जिले की प्रति व्यक्ति आय सबसे कम 93 हजार 160 रुपये वार्षिक है। वहीं अब इस मामले में सियासत भी गर्मा गई है। राजनीतिक दल एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगा रहे हैं….

आपको बता दें कि पहाड़ों में आय के संसाधन ना होने के चलते लोग रोजगार के लिए मैदानी क्षेत्रों में आ रहे हैं। मैदानी क्षेत्रों में जनसंख्या का काफी दबाव बढ़ गया है। पहाड़ और मैदान में असंतुलन के चलते व्यवस्थाएं चौपट हो रही है। आलम ये है कि देहरादून जिला प्रशासन को अवैध रेहड़ी-ठेली को हटाने के लिए पांच अलग अलग टीमों का गठन करना पड़ रहा है। सोमवार को देहरादून में सड़कों और फुटपाथ से अतिक्रमण हटाने के लिए अतिक्रमण हटाओ अभियान चलाया गया। प्रशासन की  पांच टीमों ने अलग-अलग इलाकों में कार्रवाई। करीब 75 इलाकों से अतिक्रमण, अवैध रेहड़ी-ठेली हटाए गए। जेसीबी से अस्थाई निर्माण भी ध्वस्त किया गया।

कुल मिलाकर पहाड़ की आय घटना निश्चित ही चिंताजनक है सवाल ये है कि यदि राज्य गठन के बाद भी पहाड़ का पानी और जवानी पहाड़ के काम नहीं आ रही है….तो फिर राज्य गठन का क्या लाभ, आखिर क्यों पहाड़ के पहाड़ खाली हो रहे हैं। आखिर क्यों मैदानी क्षेत्रों में जनसंख्या का दबाव बढ़ता जा रहा है। क्या सरकारे सिर्फ पहाड़ के विकास का भरोसा ही देते रहेगें या फिर धरातल पर पहाड़ के विकास के लिए कोई कार्य भी करेंगे ऐसे अनगिनत सवाल है जिसके जवाब का सबको इंतजार है

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