देहरादून। उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलन मे वैसे तो हजारों लोगों ने अपना अमूल्य योगदान दिया किन्तु कुछ आंदोलनकारियों को इतिहास में जगह मिल गई। इतिहास में जगह पाने वाली एक ऐसी ही आंदोलनकारी रहीं सुशीला बलूनी अब हमारे बीच नहीं रहीं।
84 वर्षीय वरिष्ठ आंदोलनकारी सुशीला बलूनी का मंगलवार देर शाम निधन हो गया है. वे लम्बे समय से सांस की समस्या से जूझ रही थी। देर शाम को मैक्स अस्पताल में उनका निधन हो गया है। ।बलूनी भले ही अब इस दुनिया को छोड़कर चली गई हैं किन्तु उनका योगदान सदियों तक उत्तराखंड के इतिहास में याद रखा जाएगा। बलूनी राज्य निर्माण के लिए भूख हड़ताल पर बैठने वाली पहली महिला थीं। उन्होने अपने साथ महिलाओं को जोड़कर राज्य निर्माण की आग को प्रचंड करने में अपना महत्वपूर्ण योगदान निभाया।
बलूनी आन्दोलन के दौरान कई बार जेल गई,कई बार उनकी गिरफ्तारी हुई लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी। जानकारी के मुताबिक बलूनी चार साल लीवर की समस्या से जूझ रही थीं ।
वे लीवर के साथ कई अन्य गंभीर बीमारियों से भी पीड़ित थी। लोगों का कहना है कि उन्होने अपना जीवन राज्य निर्माण के लिए समर्पित कर दिया था। उत्तराखंड के गांव गांव से लोगों को जोड़कर दिल्ली और उत्तर प्रदेश के आंदोलन को धार देने मे बलूनी का महत्वपूर्ण योगदान रहा।
राज्य के आंदोलन के दौरान उन्होंने कई महत्वपूर्ण संगठनों में अहम पदों की जिम्मेदारी निभाते हुए अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। अनेक बार जेल यात्राओ के दौरान ही लाठीचार्ज से वे कई बार घायल भी हुई।
सुशीला बलूनी के निधन पर राज्यपाल,मुख्यमंत्री कई बड़े अधिकारियों के साथ ही राजनीतिक संगठनों ने भी गहरा शोक जताया है।