उत्तराखंड- राज्य को अपना एक अलग अस्तित्व दिलाने में राज्य आंदोलनकारियों का बड़ा योगदान रहा है यही कारण है कि राज्य बनने के बाद से ही राज्य के लिए योगदान देने वाले राज्य आंदोलनकारियों को सरकारी नौकरी में आरक्षण देने के लिए राज्य की सरकारों ने अपने प्रयास किए हैं। अब इस दिशा में धामी सरकार ने भी अपने कदम आगे बढ़ा दिए है। कार्मिक विभाग ने इस सम्बन्ध में न्याय विभाग से सहमति प्राप्त कर ली है। इसके बाद प्रस्ताव को मुख्यमंत्री के पास अनुमोदन के लिए भेज दिया गया है।
राज्य गठन के बाद से ही आरक्षण की मांग
उत्तराखंड के एक अलग राज्य के गठन के बाद से ही राज्य आन्दोलनकारियों के लिए सरकारी नौकरी में आरक्षण की मांग चली आ रही है। ऐसे में सरकारों ने भी अपनी जिम्मेदारी समझते हुए इस दिशा में कदम आगे बढ़ाए। सबसे मुख्यमंत्री पहले नारायण दत्त तिवारी ने आरक्षण देकर सरकारी पदो पर नौकरी दिलाई थी लेकिन साल 2011 में मामला हाइकोर्ट में जाने के बाद इस पर रोक लगा दी गई थी। जिसके बाद कांग्रेस की सरकार के समय मे साल 2015 में मुख्यमंत्री हरीश रावत ने भी इस प्रस्ताव को पारित कराकर राजभवन भेजा लेकिन वहां प्रस्ताव साल 2022 तक लंबित रहा। जिसके बाद अब धामी सरकार ने भी इसके साथ दिए सुझावों को लेकर कैबिनेट मंत्री सुबोध उनियाल की अध्यक्षता में कमिटी गठित की। इसके बाद कैबिनेट की मंजूरी के बाद इसे न्याय विभाग के पास भी भेजा यहां से भी प्रस्ताव पर सहमति के बाद अब इसे सीएम कार्यालय भेज दिया गया है। इस सम्बन्ध में सचिव कार्मिक शैलेश बगोली ने बताया कि अब इस पर उच्च स्तर पर चर्चा के बाद राजभवन भेज दिया जाएगा।