उत्तराखंड : शीर्ष अदालत के फैसले के बाद अब भूमिधर किसान अपनी भूमि से उपखनिज का इस्तेमाल कर सकते हैं। किसान अब अपनी भूमि पर बाढ़ के कारण एकत्र हुए उपखनिज को हटाकर भूमि को जोत लायक बना सकते हैं। इसके लिए उन्हें पर्यावरणीय स्वीकृति नहीं लेनी पड़ेगी। इसके साथ ही वे इस खनिज को अपने लिए इस्तेमाल कर वाटर टैंक, मत्स्य पालन हेतु तालाब का निर्माण भी कर सकते हैं। लेकिन इसको व्यावसायिक इस्तेमाल में नहीं लाया जा सकता है|
सुप्रीम कोर्ट के फैसले से, हटी रोक
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने नैनिताल हाइकोर्ट के एक फैसले में आंशिक रोक लगा दी जिसमें प्रदेश सरकार ने यह व्यवस्था की थी, कि भूमिधर अपनी भूमि में बाढ़ के कारण एकत्र हुए उपखनिज को अपने लिए तालाब बनाना या वाटर स्टोरेज टैंक बनाना हो इस्तेमाल कर सकता है।
प्रदेश सरकार द्वारा दो वर्ष पूर्व की गयी थी व्यवस्था
भूमिधर द्वारा अपनी भूमि से उपखनिज उठान के लिए राज्य सरकार द्वारा दो वर्ष पूर्व साल 2021 में उप खनिज संसोधन नियमावली निकाली गयी थी। इस नियमावली में सरकार द्वारा कहा गया था कि भूमिधर किसान नदी से आया मलवे और उपखनिज को निकाल सकता है, और इसके लिए उसे किसी भी तरह की कोई पर्यावरणीय अनुमति लेने की कोई आवश्यकता नहीं है। साथ ही सड़क भरान, मिट्टी ईंट निकालने को खनन के दायरे से बाहर रखा जायेगा। जब तक इसकी गहराई दो मीटर से अधिक नहीं होती। साथ ही उपखनिज को व्यावसायिक इस्तेमाल या अन्य जगह पर भरान के लिए रॉयल्टी की भी व्यवस्था की गयी थी। जिसके बाद इसके खिलाफ हाइकोर्ट में याचिका दायर कर इसपर रोक लगा दी गयी थी। इस रोक को हटवाने को लेकर सरकार सुप्रीम कोर्ट गयी जहां से उसे राहत मिल गयी, और इसपर से रोक को आंशिक रूप से छूटा दिया गया।