उत्तराखंड डेस्क रिपोर्ट,
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में किए गए भारतीय ज्ञान परंपरा के प्रावधान के तहत उत्तराखंड सरकार अब बच्चों को नैतिक शिक्षा से रूबरू कराने पर विशेष जोर दे रहा है। इसी क्रम में उत्तराखंड शिक्षा विभाग ने प्रदेश के सभी सरकारी स्कूलों में श्रीमद्भागवद् गीता के श्लोक का वाचन करना शुरू कर दिया है। इसके साथ ही साल 2026 में शुरू होने वाले नए शैक्षिक सत्र से बच्चों को श्रीमद्भागवद् गीता और रामायण पढ़ाया जाएगा। इसके लिए उत्तराखंड शिक्षा विभाग ने बच्चों के पाठ्यक्रम में भारतीय ज्ञान परंपरा के साथ ही श्रीमद्भागवद् गीता और रामायण को शामिल करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। दरअसल 6 मई को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने शिक्षा विभाग की समीक्षा बैठक की थी। बैठक के दौरान सीएम धामी ने अधिकारियों को निर्देश दिए थे की नई शिक्षा नीति में जो भारतीय ज्ञान परंपरा का प्रावधान किया गया है। उसके तहत बच्चों के पाठ्यक्रम में श्रीमद्भगवद् गीता और रामायण को शामिल किया जाए। जिसके चलते शिक्षा विभाग ने एक और कदम आगे बढ़ते हुए 15 जुलाई से प्रदेश के सभी स्कूलों में श्रीमद्भागवद् गीता के श्लोक के वाचन की प्रक्रिया शुरू कर दी है। वही विपक्ष का मानना है कि यह संविधान के खिलाफ है। क्योंकि श्रीमद्भागवद् गीता एक धार्मिक ग्रंथ है।
उत्तराखंड के स्कूलों में सुबह की प्रार्थना के साथ बच्चों को श्रीमद् भागवत गीता के श्लोक सिखाए जाएंगे। इसे लेकर उत्तराखंड की राज्य सरकार ने आदेश जारी कर दिया है। दरअसल उत्तराखंड के शिक्षा विभाग ने मुख्यमंत्री के साथ एक अहम फैसला लिया है और उसका असर बहुत ही जल्द राज्य के 17 हजार सरकारी स्कूलों में देखने को मिलेगा। दरअसल शिक्षा विभाग की एक समीक्षा बैठक हुई और उस बैठक में राज्य के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस मामले में फैसला लिया. राज्य के सभी सरकारी स्कूलों में भगवद् गीता पढ़ने के फैसले को लेकर सीएम धामी ने कहा ‘भगवद् गीता एक पवित्र ग्रंथ है जिसमें भगवान कृष्ण द्वारा अर्जुन को दिया गया ज्ञान समाहित है. जो व्यक्ति के जीवन भर काम आता है यदि इसे ध्यान से पढ़ा जाए। हमने शिक्षा विभाग की समीक्षा बैठक में निर्णय लिया कि राज्य के सभी स्कूलों में गीता पढ़ाई जाएगी और यह प्रक्रिया शुरू हो गई है. जिसको लेकर प्रदेश के सभी स्कूलों में बच्चों को श्लोक का वाचन कराए जाने को लेकर माध्यमिक शिक्षा विभाग के निदेशक डॉ मुकुल कुमार सती ने सभी मुख्य शिक्षा अधिकारियों को आदेश जारी कर दिए हैं। वही उत्तराखण्ड की राज्य सरकार के इस फैसले का मदरसा बोर्ड के अध्यक्ष मुफ्ती शमून काजमी ने स्वागत किया है। मदरसा बोर्ड के अध्यक्ष ने सीएम धामी के इस फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि मुख्यमंत्री के नेतृत्व में उत्तराखंड लगातार अग्रिम राज्य बनने की ओर बढ़ रहा है। खुशी की खबर है कि विद्यालयों में पाठ्यक्रम के अंदर श्रीमद्भागवत गीता पढ़ाई जाएगी। श्री राम के जीवन से लोगों को परिचित कराना, श्री कृष्ण को लोगों तक पहुंचाना और हर भारतवासी का ये जानना बहुत जरूरी है। इससे लोगों के अंदर भाईचारा भी स्थापित होगा। उन्होंने कहा कि हमने मदरसों में संस्कृत इंट्रोड्यूस कराने व पढ़ाने के लिए संस्कृत विभाग से एमओयू करने का जो निर्णय लिया वो इसी उद्देश्य से लिया है। मुफ्ती शमून काजमी ने इसे लेकर कहा कि इस निर्णय से सांप्रदायिक सौहार्द भी मजबूत होगा और प्रदेश आगे बढ़ेगा। जिन लोगों ने हमारे बीच दूरियां पैदा की है वो दूर होंगी और हम मदरसों के बच्चों को भी इन चीजों से लाभान्वित करवा रहे हैं।
वहीं मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस के प्रदेश उपाध्यक्ष संगठन सूर्यकांत धस्माना ने सरकार के इस फैसले पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया है. उन्होंने सरकार पर ध्रुवीकरण की राजनीति शुरू करने का आरोप लगाया है. यह सिर्फ धार्मिक आधार पर विवाद हो उसके लिए शुरू किया है. माध्यमिक शिक्षा विभाग की ओर से जारी आदेश के दो पहलू हैं. पहला राज्य सरकार की कोई ऐसी नीयत नहीं है कि गीता का ज्ञान बच्चों को सिखाया जाए और उनके आचरण में उसकी कोई झलक हो. बल्कि सरकार का सबसे बड़ा उद्देश्य है कि किसी भी तरह से धार्मिक आधार पर कोई विवाद हो. ताकि बीजेपी की ध्रुवीकरण की राजनीति प्रदेश में शुरू हो. लेकिन सनातन धर्म को मानने वालों का श्रीमद्भभागवत एक धार्मिक ग्रंथ है. इस ग्रंथ में जीवन जीने का रास्ता उपदेश के जरिए बताया गया है. जबकि हर धर्म के बच्चे स्कूल में पढ़ते हैं. ऐसे में यह आदेश सिर्फ विवाद का विषय बनाने के मकसद से जारी किया गया। वही बीजेपी की प्रदेश प्रवक्ता कमलेश रमन ने बताया कि पुष्कर सिंह धामी ने जब से मुख्यमंत्री पद की शपथ ग्रहण की है तब से ही उत्तराखंड की परंपरा संस्कृति को बढ़ावा दिया जा रहा है. जिस प्रकार से सनातन संस्कृति आजकल लुप्त होती जा रही है. विद्यालयों में बच्चों को श्रीमदभागवत गीता एवं रामायण की शिक्षा से आगे बढ़ाने की आवश्यकता है. धर्म, संस्कृति, सनातन परम्परा का ज्ञान बच्चों को होना चाहिए. क्योंकि उत्तराखंड को देवभूमि कहा जाता है तो यहा सनातन प्रथम स्थान पर आता है, ऐसे में इस निर्णय से छात्र अपनी सनातन संस्कृति का ज्ञान भी प्राप्त करेंगे और कही न कही हमारे सनातन धर्म को बढ़ावा भी मिलेगा। वही अब एस टी एस सी ,शिक्षा एसोसिएशन ने भी इसका कड़ा विरोध करते हुए शिक्षा निदेशक से इस आदेश को वापस लेने के साथ कड़े शब्दों में विरोध जताया है।
आपको बता दे आधिकारिक आदेश में कहा गया है कि राज्य के सरकारी स्कूलों की प्रार्थना सभा में विद्यार्थियों को श्रीमद् भगवद्गीता का एक श्लोक अर्थ सहित प्रतिदिन सुनाया जाए ताकि आधुनिक शिक्षा के साथ ही भारतीय ज्ञान परंपरा से छात्रों को अवगत कराकर उन्हें एक श्रेष्ठ नागरिक बनाया जा सके. उत्तराखंड माध्यमिक शिक्षा की ओर से इस संबंध में जारी एक आदेश में कहा गया है कि प्रार्थना सभा में सुनाए जाने वाले इस श्लोक के वैज्ञानिक दृष्टिकोण की जानकारी भी छात्रों को दी जाएगी.ऐसे में सवाल सिर्फ ये ही है क्या आने वाले समय पर सरकार अन्य सभी धर्मों के ग्रंथों के श्लोकों को भी इस तर्ज पर लागू करेगी क्योंकि इस पर विपक्ष का विरोध भी लगातार जारी है।