उत्तराखंड: कांग्रेस के उत्तराखंड प्रदेश अध्यक्ष करण मेहरा आज हरिद्वार दौरे पर रहे नगर निगम कार्यालय परिसर में आयोजित पूर्व विधायक दिवंगत अमरीश की जयंती समारोह में भाग लिया। इस दौरान उन्होंने भगवे रंग को लेकर भारतीय जनता पार्टी पर निशाना साधा और भगवे रंग का अपमान करने का आरोप लगाया। वहीं गैरसेण विधानसभा सत्र को लेकर बीजेपी पर करारा वार किया और विधानसभा भर्ती घोटाले की जांच को कटघरे में खड़ा किया।
बॉलीवुड की आने वाली फिल्म पठान को लेकर एक राजनीतिक बहस छिड़ गई है। उत्तराखंड कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष करण माहरा ने भगवा रंग को लेकर भारतीय जनता पार्टी पर निशाना साधा है। उन्होंने आरोप लगाया कि भगवा का सबसे ज्यादा अपमान भारतीय जनता पार्टी ने किया है। भगवा रंग साधु संतो और सन्यासियो का रंग है और वो ही इसे धारण करते है। लेकिन भाजपा ने तो भगवा को दुशाला बनाकर सबके गले में डाल दिया। लोग उसी भगवा रंग के कपड़े से अपनी गाड़ी साफ करता है और शाम को शराब पीकर हाथ भी साफ कर लेता है करण मेहरा ने आरोप लगाया कि वोटों का ध्रुवीकरण करने के लिए भाजपा भगवे की बात करती है उसे महंगाई भ्रष्टाचार और बेरोजगारी से कोई लेना देना नहीं है।
गैरसेण राजधानी सत्र को लेकर बीजेपी के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत द्वारा अपनी ही सरकार से कहा गया है की गैरसेण विधानसभा सत्र को लेकर कैलेंडर जारी करें। इसपर करण मेहरा का कहना है कि निश्चित ही बहुत देर कर दी पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने यह कहने में यह कार्य उसी वक्त कर देना चाहिए था। जब गैरसेण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाया गया था तभी कैलेंडर जारी हो जाना चाहिए था ताकि शासन और प्रशासन वहा तैयारी कर सके गैरसेण में विधानसभा का सत्र होना चाहिए इसे राज्य आंदोलनकारियों इच्छा पूरी होगी।
विधानसभा भर्ती घोटाले को लेकर कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत द्वारा तंज कसा गया है। इसको लेकर करण मेहरा ने बीजेपी पर वार करते हुए कहा कि नियुक्तियों की जांच को लेकर जो समिति बनाई गई थी उसकी जांच भी संदेह के घेरे में है। हरीश रावत द्वारा जो बात कही गई है वो बिल्कुल सत्य है नियुक्तियों में भाई भतीजावाद हावी था इसमें भ्रष्टाचार हुआ है। आरक्षण के मानकों का पालन नहीं किया गया सिर्फ 16 और 21 की नियुक्तियों पर ही क्यों गाज गिरी। 16 से पूर्व की नियुक्ति पर विधानसभा अध्यक्ष कहती है हम इसमें लीगल राय ले रहे हैं मगर तीन महीने बीत जाने के बाद भी कोई राय नहीं ली जा सकती है। यह चिंता का विषय है इसपर सत्र बुलाना चाहिए जिन राजनेताओं ने अपने परिजनों की नौकरी लगवाई है उनपर कार्रवाई हो। जिस अध्यक्ष के कार्यकाल में यह हुआ उनकी भी जिम्मेदारी तय हो सिर्फ कर्मचारियों पर ही गाज ना गिरे इस मामले में मुख्यमंत्री और मंत्रियों को नैतिकता के आधार पर इस्तीफा दे देना चाहिए।
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