उत्तराखंड में चुनाव नजदीक आते ही धामी सरकार ने राज्य में तीन महीने के लिए रासुका लगा दी है, इसके तहत जो व्यक्ति या समूह माहौल खराब करने और हिंसक घटनाओं को बढ़ावा देने का काम करेगा उस पर जिलाधिकारी राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम के तहत कार्रवाई कर सकते हैं। सरकार के इस कदम को रुड़की में एक चर्च में हुई हिंसा, ऊर्जा निगम कर्मचारियों की हड़ताल और आंदोलनों में हिंसक घटनाओं की आशंका से जोड़कर देखा जा रहा है, हालांकि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का कहना है कि कानून पहले से लागू है और समय समय पर तीन-तीन माह की अवधि में जिलाधिकारी को रासुका के तहत प्राप्त शक्तियों का प्रयोग करने का अधिकार दिया जाता है, राज्यहित में सरकार ने यह निर्णय लिया है।
राजनीति भी गर्मा गई है
वहीं इस मामले पर राजनीति भी गर्मा गई है, कांग्रेस का आरोप है कि चुनाव के तहत उसके खिलाफ उठने वाली आवाज को दवाने के लिए ऐसे फैसले ले रही है लेकिन जनता 2022 के विधानसभा चुनाव में सरकार को जरूर सबक सिखाएगी वहीं आम आदमी पार्टी ने सरकार के इस फैसले को तानाशाही फैसला बताया है ।
क्या है रासुका कानून ?
आपको बता दें कि रासुका कानून के तहत किसी व्यक्ति को पहले तीन महीने के लिए गिरफ्तार किया जा सकता है, फिर, आवश्यकतानुसार, तीन-तीन महीने के लिए गिरफ्तारी की अवधि बढ़ाई जा सकती है, एकबार में तीन महीने से अधिक की अवधि नहीं बढ़ाई जा सकती है, अगर, किसी अधिकारी ने ये गिरफ्तारी की हो तो उसे राज्य सरकार को बताना होता है कि उसने किस आधार पर ये गिरफ्तारी की है, जब तक राज्य सरकार इस गिरफ्तारी का अनुमोदन नहीं कर दे, तब तक यह गिरफ्तारी बारह दिन से ज्यादा समय तक नहीं हो सकती है। वहीं इस मामले में राजनीति भी गर्मा गई है ।
रासुका पर छिड़ी रार
कुल मिलाकर रासुका पर छिड़ी रार कब खत्म होगी ये तो वक्त बताएगा लेकिन इतना जरूर है कि चुनावी साल में सरकार के इस फैसले से सियासत तो खुब गर्मा गई है देखना होगा कि सरकार इस फैसले का कैसे इस्तेमाल करती है और विपक्ष इस अधिनियम के तहत कार्रवाई होने पर अपना क्या रूख रखेगा इस पर भी सहकी निगाहें बनी रहेंगी ।