उत्तराखंड- उत्तराखंड में उत्तरकाशी जिले के धराली में आई आपदा को आए अब तक 1 सप्ताह से जायदा का समय बीत चुका है. सेकड़ो की संख्या में आपदा ग्रस्त क्षेत्र से लोगो को निकाला जा चुका है लेकिन चुनौती अब इस बात को लेकर है की स्निफर डॉग्स और तमाम उपकरणों के बाद भी मलबे में दबे शवों को निकाल पाना मुश्किल सा हो रहा है. सेना और SDRF ने प्रशिक्षित डॉग्स की मदद से कई पॉइंट्स चिन्हित किए हैं, लेकिन दलदली जमीन और बड़े-बड़े बोल्डर के बीच यहां से मलबा निकाल पाना मुश्किल हो रहा है. उधर बड़ी चुनौती यह है कि करीब 30 से 40 फीट नीचे यदि कोई दबा भी है तो उस जगह को पक्के तौर पर ढूंढ पाना आसान नहीं है. शायद इसीलिए मलबे के नीचे दबे लोगों को निकालना अब नामुमकिन सा हो रहा है. धराली में भारी मलबे के साथ आई आपदा में केवल कुछ एक शव ही ढूंढे जा सके हैं, जबकि उत्तरकाशी जिला प्रशासन ने 42 लोगों के गुमशुदा होने की सूची जारी की है. हालांकि आने वाले दिनों में यह संख्या और भी बढ़ने की उम्मीद है. वही आपदा के बीच पंचायत चुनाव भी हंगामेदार तरीके से सम्पन्न हो गए है। विपक्ष का आरोप है कि सरकार के लोग धराली आपदा में न जाकर पंचायत चुनाव की हेरा-फेरी में लगे हुए थे।
उत्तराखण्ड धराली आपदा में भारी तबाही के बीच पहाड़ो में फसे लोगो का रेस्क्यू का कार्य तो पूरा हो चुका है. लेकिन अब उससे भी कठिन काम मलबे में दबे लोगों का सर्च ऑपरेशन जारी है. लाखों टन मलबे के नीचे कई शवों के होने की उम्मीद है, लेकिन सेना और एसडीआरएफ भारी मशीनों और स्निफर डॉग्स की मदद से भी इन शवों को मलबे के नीचे नहीं ढूंढ पा रही हैं. एक तरफ इस कठिन सर्च ऑपरेशन में मौसम भी बड़ी बाधा उत्पन कर रहा है। एक बार फिर प्रदेश के कई जिलों में अगले 3 दिन भारी बारिश का रेड अलर्ट जारी है। बात करे विपक्ष की तो. विपक्ष का कहना है. सरकार का ध्यान धराली आपदा में न होकर पंचायत चुनाव में था. जिसमे कांग्रेस ने प्रदेश के कई जिलों में पंचायत चुनाव में धांधली व हेरा-फेरी का आरोप लगाया है।
उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में पंचायत चुनाव में इस बार बाहुबलियों ने खूब दहशत मचाई। अल्मोड़ा और नैनीताल के पहाड़ी हिस्सों में अपहरण-फायरिंग के मुकदमे दर्ज किए गए। नैनीताल जिला पंचायत अध्यक्ष की सीट को लेकर सबसे अधिक बवाल हुआ. जिसको लेकर नैनीताल में दोबारा चुनाव कराने को हाईकोर्ट को निर्णय लेना पड़ा। पहाड़ी इलाकों में पंचायत चुनाव में जिस तरह का बवाल इस बार दिखा है वह पहले कभी नहीं हुआ। हालांकि हरिद्वार, ऊधमसिंह नगर में बाहुबल और दबंगई का असर चुनावों पर राज्य गठन के बाद से ही दिखता रहा है। 2003 पंचायत चुनाव में लक्सर ब्लॉक में हथियार बंद समर्थकों ने शक्ति प्रदर्शन कर पहली बार दहशत फैलाई थी। 2008 के पंचायत चुनाव में किच्छा ब्लॉक में बूथ में घुसकर फर्जी वोटिंग का मामला सामने आया। 2015 के पंचायत चुनाव में बहादराबाद क्षेत्र में अपहरण के मामले सामने आए, लेकिन पहाड़ इससे अछूते नहीं रहे। इस बार पंचायत चुनाव के दौरान पहाड़ की शांत वादियां गोलियों की तड़तड़ाहट और हंगामे से गूंज उठीं। नैनीताल समेत पूरे कुमाऊं में पंचायत चुनाव का माहौल यूपी-बिहार के चुनावी रण जैसा हो गया। नैनीताल के बवाल से पहले ऊधमसिंह नगर में चुनावी घमासान मचा। बाजपुर में यूपी के राज्य मंत्री के बेटे, दामाद और पूर्व चेयरमैन पर तमंचे की नोक पर बीडीसी सदस्य के अपहरण का आरोप लगा। गदरपुर में ब्लॉक से क्षेत्र पंचायत सदस्यों के प्रमाण पत्र गायब होने पर जमकर हंगामा हुआ। हाईकोर्ट के आदेश पर बुधवार रात पांच सदस्यों को प्रमाण पत्र सौंपे गए। अल्मोड़ा के द्वाराहाट में बीडीसी सदस्यों के अपहरण की शिकायत पर कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने सात घंटे तक हाईवे जाम कर रखा। गुरुवार को भी वहां बीजेपी और कांग्रेस कार्यकर्ताओं में ईंट और पत्थर चले। इस दौरान हवा में फायरिंग हुई। आपको बता दे उत्तराखंड बनने के बाद पहाड़ी जिलों में भी राजनीतिक प्रतिस्पर्धा बढ़ी और स्थानीय गुटबाजी तेज हुई। जानकार कहते है कि कई जगह पंचायत चुनाव का दांव सीधे विधायक या सांसद समर्थित प्रत्याशियों पर होने लगा। इससे सत्ताधारी पार्टी से जुड़े स्थानीय बाहुबली उम्मीदवार सक्रिय हुए। पंचायत और बीडीसी सदस्यों की खरीद-फरोख्त खुलेआम होने लगी है। इसे नियंत्रित करने के लिए आज यूपी जैसे राज्यों से भाड़े में बदमाश लाए जा रहे हैं।
धराली में आई आपदा में खास बात यह है कि खीरगंगा से आया लाखों टन मलबा आज धराली बाजार के ऊपर पसरा हुआ है. एक पूरा बड़ा बाजार मलबे के नीचे है. जाहिर है कि जिस बाजार में 65 होटल 30 से ज्यादा रिजॉर्ट और होमस्टे समेत तमाम दुकानें मौजूद हो उसके ऊपर 25 से 30 फीट और कहीं-कहीं 40 फीट मलबा आने से सब कुछ जमींदोज हो चुका है.वही मौसम की मार भी भारी पड़ रही है दूसरी और पंचायत चुनाव को लेकर राजनिति भी जारी है ऐसे में सभी राजनैतिक पार्टियों को समझाना होगा ये समय प्रदेश में राजनीती का नहीं बल्कि उन पीड़ित परिवारों के साथ खड़े रहने का है। ताकि धराली में जल्द जनजीवन पटरी पर आ सके।