उत्तराखंड पंचायत चुनाव ने खोल दी वर्चुअल दुनिया की हकीकत….बड़े-बड़े यूट्यूबर्स हुए फेल

KNEWS DESK – उत्तराखंड पंचायत चुनावों ने इस बार एक ऐसा चेहरा दिखाया है, जिसने सोशल मीडिया की चकाचौंध और वास्तविक जमीन की सच्चाई के बीच की गहरी खाई को उजागर कर दिया। लाखों फॉलोअर्स, हजारों लाइक्स और वर्चुअल सपोर्ट का दावा करने वाले कई सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर्स जब ग्रामीण राजनीति के मैदान में उतरे, तो उन्हें कड़वे सच का सामना करना पड़ा।

दीप्ति बिष्ट: डिजिटल स्टार, मगर वोटिंग में धराशायी

यूट्यूब पर 1.5 लाख सब्सक्राइबर और फेसबुक पर लाखों फॉलोअर्स होने के बावजूद दीप्ति बिष्ट को कनालीछीना ब्लॉक की डूंगरी ग्राम पंचायत में महज 55 वोट मिले। वहीं, उनकी प्रतिद्वंदी राधिका देवी ने 79 वोट पाकर जीत दर्ज की। यह साफ कर गया कि डिजिटल फॉलोअर्स और वास्तविक समर्थन में फर्क होता है।

दीपा नेगी: सोशल मीडिया की ‘स्टार’, गांव में हारी जंग

दीपा नेगी, जो यूट्यूब चैनल ‘दीपा नेगी पहाड़ी’ के जरिए पहाड़ी संस्कृति की आवाज बनी थीं, उन्हें भी राजनीति के मैदान में हार का सामना करना पड़ा। घिमतोली गांव से प्रधान पद की उम्मीदवार दीपा को 269 वोट मिले, जबकि कविता नाम की महिला ने 480 वोट से उन्हें पीछे छोड़ दिया।

हार के बाद दीपा ने एक भावुक वीडियो शेयर किया, जिसमें उन्होंने कहा, “मैं हार गई, लेकिन आत्मसम्मान नहीं हारी। सोशल मीडिया एक भ्रम है — जो साथ दिखते हैं, वही पीठ पीछे खंजर लिए घूमते हैं।” दीपा का दर्द तब और गहरा हुआ जब उन्होंने बताया कि चुनाव प्रचार के दौरान उनके पति और बच्चों पर झूठे इल्ज़ाम लगाए गए, और गांव की राजनीति ने उनके परिवार को भी निशाना बनाया।

भीम सिंह: हजारों फॉलोअर्स, वोट फिर भी कम

हल्द्वानी की बच्चीनगर ग्राम पंचायत से भीम सिंह भी मैदान में उतरे। उनके यूट्यूब पर 21,000 सब्सक्राइबर्स और फेसबुक पर 24,000 फॉलोअर्स हैं। लेकिन उन्हें मिले केवल 955 वोट, जबकि विजेता हरेंद्र सिंह को 1,534 वोट मिले।

दीपिका की हार, आत्मसम्मान की जीत

एक अन्य प्रत्याशी दीपिका ने भी वीडियो के ज़रिए अपने जज़्बात बांटे। उन्होंने कहा, “मुझे पहले से पता था कि हार-जीत लगी रहती है। दुख सिर्फ इस बात का है कि वोट खरीदे गए, और झूठ फैलाया गया।” दीपिका ने अपने सपने साझा किए, जिनमें उन्होंने ग्राम सभा के बुजुर्गों को बद्रीनाथ धाम ले जाने की बात कही थी। पर जैसा कि उन्होंने खुद कहा — “कुछ सपने, सिर्फ सपने रह जाते हैं।”

गांव का नजरिया और सोच का संघर्ष

दीपा ने एक बुजुर्ग महिला का जिक्र किया जो अपने पोते को वोट डालने से रोक रही थी क्योंकि उसका मानना था कि “जिसने अपने खोला (परिवार) से बाहर जाना, वो जड़धार (भरोसेमंद) नहीं होता।” यह संवाद उस सामाजिक सोच को दर्शाता है जिसमें बाहरी दुनिया से जुड़ाव को अविश्वास की नजर से देखा जाता है, भले ही वह व्यक्ति गांव के लिए कुछ अच्छा करना चाहता हो।