उत्तराखंड- पहाड़ प्रदेश उत्तराखंड में नए सिरे से परिसीमन कराने की मांग तेज हो गई है। इसी कड़ी में खुद सत्ताधारी दल के विधायक किशोर उपाध्याय ने राज्य में नए सिरे से परिसीमन कराकर लोकसभा और विधानसभा की सीटें बढ़ाने की जरूरत बताई है। उन्होंने कहा कि राज्य में लोकसभा की 11 और विधानसभा की 101 सीटें बनाई जानी चाहिए। विधायक की ओर से इस संबंध में विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूड़ी भूषण को एक पत्र भी लिखा गया है। विधायक किशोर उपाध्याय ने कहा कि राज्य में पलायन और पर्वतीय क्षेत्रों की विषम भौगोलिक परिस्थितियों के कारण पर्वतीय क्षेत्रों में आबादी कम हो रही है। ऐसे में यदि आबादी के आधार पर परिसीमन कराया गया तो 2027 से शुरू होने वाले परिसीमन में पहाड़ की विधानसभा सीटों की संख्या घटने का खतरा रहेगा। उन्होंने कहा कि ऐसे में परिसीमन का आधार क्षेत्रफल को मानते हुए नए सिरे से परिसीमन तय किए जाने की जरूरत है। वहीं अपनी ही पार्टी के विधायक की इस मांग के बाद राज्य सरकार मंथन में जुट गई है। हांलाकि विपक्ष का तर्क है कि किशोर उपाध्याय को मीडिया में सुर्खियां ना बटोरते हुए केंद्र और राज्य सरकार से नए सिरे से परिसीमन की मांग करनी चाहिए। आपको बता दें कि साल 2002 में पहला परिसीमन राज्य में हुआ था। परिसीमन आयोग का गठन होने से पहले ही नए राज्य उत्तराखंड का परिसीमन हो चुका था, जिसे राज्य के पहले चुनाव में लागू किया गया.इसके बाद 2002 के बाद प्रदेश में 2007 में दूसरा परिसीमन हुआ था हालांकि परिसीमन आयोग की फाइनल रिपोर्ट साल 2008 में आयोग को सौंपी गई, जिसके आधार पर उत्तराखंड में 2012 के विधानसभा चुनाव हुए। यहां बता दें कि 2012 के परिसीमन का आधार 2001 की जनगणना थी. विधानसभा को लेकर जहां मैदानों में एक लाख से अधिक जनसंख्या को एक विधानसभा का मानक रखा गया तो वहीं पहाड़ों पर इसे घटाकर एक लाख से कम 85 हजार तक की जनसंख्या वाले क्षेत्र को एक विधानसभा बनाने का मानक रखा गया। हालांकि, इतनी रियायत रखने के बाद भी पहाड़ का नेतृत्व घटने लगा। यही चिंता किशोर उपाध्याय को भी है। इसी वजह से उन्होने सरकार से आबादी के आधार पर परिसीमन ना कराकर क्षेत्रफल के आधार पर परिसीमन कराने की मांग की है। सवाल ये है कि क्या संवैधानिक लिहाज से किशोर उपाध्याय की मांग जायज है, क्या सरकार किशोर उपाध्याय की मांग को पूरा करेगी या नहीं?
उत्तराखंड में नए जिलों की मांग के बीच राज्य में अब नए सिरे से परिसीमन कराने की मांग तेज हो गई है। बीजेपी विधायक किशोर उपाध्याय ने राज्य में नए सिरे से परिसीमन कराकर लोकसभा और विधानसभा की सीटें बढ़ाने की जरूरत बताई है। उन्होंने कहा कि राज्य में लोकसभा की 11 और विधानसभा की 101 सीटें बनाई जानी चाहिए। विधायक की ओर से इस संबंध में विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूड़ी भूषण को एक पत्र भी लिखा गया है। विधायक किशोर उपाध्याय ने कहा कि राज्य में पलायन और पर्वतीय क्षेत्रों की विषम भौगोलिक परिस्थितियों के कारण पर्वतीय क्षेत्रों में आबादी कम हो रही है। ऐसे में यदि आबादी के आधार पर परिसीमन कराया गया तो 2027 से शुरू होने वाले परिसीमन में पहाड़ की विधानसभा सीटों की संख्या घटने का खतरा रहेगा।
आपको बता दें कि उत्तराखंड में वर्ष 2002 में पहला परिसीमन राज्य में हुआ था। परिसीमन आयोग का गठन होने से पहले ही नए राज्य उत्तराखंड का परिसीमन हो चुका था, जिसे राज्य के पहले चुनाव में लागू किया गया.इसके बाद 2002 के बाद प्रदेश में 2007 में दूसरा परिसीमन हुआ था. इसके बाद जनसंख्या के लिहाज से सरकार ने रियायत भी दी बावजूद इसके पहाड़ का नेतृत्व घटने लगा.यही चिंता किशोर उपाध्याय को भी है। इसी वजह से उन्होने सरकार से आबादी के आधार पर परिसीमन ना कराकर क्षेत्रफल के आधार पर परिसीमन कराने की मांग की है वहीं भाजपा संगठन ने भी विधायक की इस मांग का समर्थन किया है
कुल मिलाकर नए जिलों की मांग के बीच राज्य में नए सिरे से परिसीमन कराने की मांग शुरू हो गई है। अनुमान है कि साल 2027 में परिसीमन के बाद पहाड़ में सीटें घटने का अनुमान है। इसको देखते हुए आबादी के आधार पर परिसीमन ना कराकर क्षेत्रफल के आधार पर परिसीमन कराने की मांग की जा रही है। हालांकि अब सवाल ये है कि क्या संवैधानिक लिहाज से किशोर उपाध्याय की मांग जायज है, क्या सरकार किशोर उपाध्याय की मांग को पूरा करेगी, क्या पहाड़ प्रदेश में पहाड़ की सीटें और घटेगी, आखिर क्यों पहाड़ में आबादी का घनत्व लगातार घटता जा रहा है?
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