KNEWS DESK- देवभूमि उत्तराखंड में शिक्षा का स्तर लगातार खराब होता जा रहा है। शिक्षा की बेहतरी का दावा करने वाली सरकार के दावे शिक्षा विभाग की रिपोर्ट ही खोल रही है। राज्य के सरकारी स्कूलों का हाल ये है कि लाखों करोड़ों रुपए खर्च करने के बाद भी बच्चों को ना तो बेहतर शिक्षा मिल पा रही है। ना स्कूलों की इमारतों की हालत ठीक है। और ना ही बच्चों को पीने के पानी और शौचालय आदि की सुविधा मिल पा रही है। ऐसी स्थिति में बच्चे जाएं तो कहां जाए।
आपको बता दें कि उत्तराखंड में मानसून की भारी बारिश के बीच राज्य के करीब 60 फीसदी सरकारी स्कूलों के भवनों की हालत बिल्कुल ठीक नहीं है। सरकारी स्कूल लंबे समय से मरम्मत के लिए तरस रहे हैं। इनमें 1174 स्कूल ऐसें हैं जो जर्जरहाल स्थिति में पहुंच चुके हैं| शिक्षा विभाग की हालिया रिपार्ट में यह चौंकाने वाली बात सामने आई है। वहीं दूसरी ओर राज्य के 1,011 प्राथमिक विद्यालय ऐसे हैं, जहां लड़कियों के लिए शौचालय की सुविधा नहीं है जबकि राज्य के 841 प्राथमिक विद्यालयों में लड़कों के लिए शौचालय सुविधा नहीं है। शौचालय निर्माण की यह स्थिति तब है जब पिछले एक वर्ष में 154 प्राथमिक विद्यालय बंद हो चुके हैं। वहीं अब इस मामले में राज्य में सियासत भी गरमा गई है। सरकार का दावा है कि वह शिक्षा की बेहतरी के लिए लगातार प्रयास कर रही है। बजट की कोई कमी नहीं है। सभी सुविधाएं बच्चों को उपल्ब्ध कराई जा रही है। वहीं विपक्ष का कहना है कि सरकार के सभी दावे हवा हवाई हैं। सवाल ये है कि आखिर जब बजट की कमी नहीं है तो फिर ऐसे हाल क्यों देखने को मिल रहे हैं।
उत्तराखंड की शिक्षा व्यवस्था पर एक बार फिर सवाल खड़े होने लगे हैं। दरअसल, भारी-भरकम बजट के बावजूद शिक्षा विभाग सरकारी स्कूलों में छात्र-छात्राओं को बुनियादी सुविधाएं मुहैया नहीं करा पा रहा है। ये हाल तब है जब मौजूदा वित्त वर्ष में विभाग को केंद्र सरकार से समग्र शिक्षा के तहत 1,196 करोड़ रुपये स्वीकृत हुए हैं। बता दें कि सरकारी स्कूलों में शिक्षकों की कमी के साथ ही बिजली, पानी, शौचालय और स्कूल की जर्जर ईमारतों से बच्चे लगातार परेशान हैं| वहीं भारी बारिश के बीच किसी बड़े हादसे का खतरा भी बना हुआ है लेकिन जिम्मेदार अधिकारी इस ओर कोई ध्यान नहीं दे रहे हैं|
आपको बता दें कि उत्तराखंड का शिक्षा विभाग हमेशा सवालों के घेरे में रहता है। आलम ये है कि शिक्षा विभाग को कितना भी पैसा दो पर सरकारी स्कूलों की स्थिति में कोई सुधार नहीं आ रहा है। वहीं स्कूलों की मरम्मत और छात्र-छात्राओं की ड्रेस के लिए दी गई धनराशि से 13668 स्कूल ने एक भी रुपया खर्च नहीं किया है। शिक्षा महानिदेशक बंशीधर तिवारी ने एक सप्ताह के भीतर प्रगति न होने पर खुद का एवं जिला व खंड स्तरीय अधिकारियों का वेतन रोकने के निर्देश दिए हैं। वहीं राज्य में शिक्षा विभाग की इस कार्यप्रणाली से बच्चों की शिक्षा पर इसका बुरा प्रभाव पड़ रहा है। हांलाकि सत्तापक्ष का दावा है कि सरकार जल्द ही सभी समस्याओं का समाधान कर लेगी|
कुल मिलाकर राज्य में सरकारी स्कूलों का स्तर दिन प्रतिदिन खराब होता जा रहा है| हजारों करोड़ रुपए बजट खर्चने के बाद भी स्कूलों की ये स्थिति काफी चिंताजनक है। सवाल ये है कि आखिर ऐसी स्थिति में बच्चे कैसे पढ़ेंगे, आखिर ऐसे अधिकारियों पर कार्रवाई क्यों नहीं की जा रही।