उत्तराखंड डेस्क रिपोर्ट, देहरादून से इस वक्त की सबसे बड़ी खबर उत्तराखंड में पंचायत चुनावों को लेकर संवैधानिक और प्रशासनिक संकट गहराता जा रहा है। राजभवन ने पंचायती राज एक्ट में संशोधन से जुड़े अध्यादेश को बिना मंजूरी लौटा दिया है। सरकार अब आज कैबिनेट बैठक में संशोधित प्रस्ताव पेश करने जा रही है,ताकि अध्यादेश को दोबारा मंजूरी के लिए भेजा जा सके।10,760 त्रिस्तरीय पंचायतें पहले ही खाली हो चुकी हैं।प्रशासकों का कार्यकाल भी खत्म हो चुका है ऐसे में सवाल ये कि क्या सरकार ने पंचायत व्यवस्था को राजनीतिक मोहरा बना दिया है वही त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों की सुगबुगाहट के बीच सरकार ने तीन बच्चों वाले नियमों में लोगों को राहत दे दी है। अब तीन बच्चों वाले लोग भी पंचायत चुनाव लड़ सकेंगे, लेकिन यह नियम 25 जुलाई 2019 या उसके बाद पैदा हुए तीसरे बच्चे वाले माता पिता पर लागू नहीं होगा। ये लोग पंचायत चुनावों में उम्मीदवार बनने के हकदार नहीं होंगे। साथ ही लंबे समय से चुनावों की तैयारियां कर रहे लोगों की उम्मीदों पर भी पानी फिर गया। नतीजा यह हुआ कि इन लोगों ने बाहर से ही अपने उम्मीदवारों को समर्थन देकर चुनाव लड़वाए। कई स्तर पर नाराजगी भी देखने को मिली। लोगों ने सरकार तक विभिन्न माध्यमों से अपनी बात पहुंचाई। अब जाकर करीब छह साल बाद सरकार ने इसमें बड़ी राहत दी है। अब इस नियम को थोड़ा सरल कर दिया गया है। तीन बच्चों वाला नियम अब 2019 या उसके बाद पैदा हुए बच्चों के माता पिता पर लागू होगा। इस संबंध में सरकार अध्यादेश लाई थी, जिसकी अधिसूचना जारी की गई है। वही विपक्षी पार्टी कांग्रेस का कहना है कि चुनाव को लेकर सरकार की नियत साफ दिखती है. पिछले नगर निकाय चुनावों में भी बीजेपी सरकार ने कई बार प्रशासकों का समय बढ़ाया. वही काम काम अब त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव को लेकर कर रही है। आज इसी पर करेंगे चर्चा देखिये एक रिपोर्ट।
उत्तराखंड में पंचायत चुनाव बीते छह महीने से लटके हुए हैं।अब तक प्रशासकों के सहारे काम चलाया गया, लेकिन उनका कार्यकाल भी समाप्त हो गया है।सरकार ने दोबारा अध्यादेश लाकर पंचायत एक्ट में संशोधन की कोशिश की,मगर राजभवन ने बिना हस्ताक्षर के अध्यादेश लौटा दिया। सूत्रों के अनुसार –विधायी और पंचायती राज विभाग से फिर से स्पष्टता मांगी गई है। और सबसे अहम बात विधायी विभाग ने खुद ही एक ही विषय पर दोबारा अध्यादेश लाने पर आपत्ति जताई थी,जो इस अध्यादेश के खारिज होने की सबसे बड़ी वजह बनी।
अब सरकार के पास दो विकल्प हैं या तो विशेष सत्र बुलाकर कानून पारित करे,या पंचायतों में अस्थिरता बनाए रखे।लेकिन अब स्थिति तेजी से बदल रही है सरकार ने हाईकोर्ट में शपथ पत्र देकर वादा किया है कि 15 जुलाई तक पंचायत चुनाव कराए जाएंगे। इसलिए अब योजना है कि प्रशासकों का कार्यकाल डेढ़ महीने तक बढ़ाया जाए और इस अवधि में चुनाव सम्पन्न कराए जाएं। जल्द ही सरकार इस पर कोई बैठक कर संशोधित अध्यादेश का प्रस्ताव लाया जाएगा,जिसमें राजभवन द्वारा बताई गई आपत्तियों का समाधान भी शामिल रहेगा। इसके बाद अध्यादेश को दोबारा राजभवन को भेजा जाएगा,और पंचायत चुनाव की तिथि भी तय कर दी जाएगी। जिसमे हरिद्वार को छोड़कर शेष 12 जिलों में पंचायत चुनाव 15 जुलाई तक कराए जाने की तैयारी है।
तो अब नजरें टिकी हैं राजभवन की मंजूरी,कैबिनेट के फैसले,और सरकार की संकल्प शक्ति पर। क्या पंचायत चुनाव फिर से लोकतंत्र की ओर लौटेंगे या ये पूरी प्रक्रिया सत्ता की खींचतान में और उलझेगी सबसे बड़ा सवाल क्या उत्तराखंड में पंचायत प्रणाली सुरक्षित है? या फिर संवैधानिक अनिश्चितता के दौर में है,