उत्तराखंड- उत्तराखंड में लंबे समय से कैबिनेट विस्तार का इंतजार कर रहे विधायकों में एक बार फिर हलचल तेज़ हो गई है। माना जा रहा है कि इस दीवाली में प्रदेश के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कैबिनेट के पांच खाली पदों को भरने की तैयारी शुरू कर दी है। राज्य में होने वाले 2027 विधानसभा चुनाव के मद्देनजर भी कैबिनेट विस्तार अहम माना जा रहा है। राज्य मंत्रिमंडल में फिलहाल पांच पद खाली हैं। इनमें से चार पद लंबे समय से रिक्त चल रहे हैं. जबकि एक पद पूर्व संसदीय कार्य मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल के इस्तीफे के बाद खाली हुआ है। बीजेपी विधायकों को लम्बे समय से इन पदों के भरे जाने का बेसब्री से इंतजार है। सूत्रों की मानें तो मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की कैबिनेट विस्तार को लेकर शीर्ष नेतृत्व से अहम चर्चा हो गई है। माना जा रहा है कि शीर्ष नेतृत्व की हरी झंडी मिलने के बाद इस पर जल्द फैसला लिया जा सकता है। जिसको लेकर मुख्यमंत्री धामी के साथ ही प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट ने भी इस संबंध में संकेत दे दिए है। उन्होंने कहा कि धामी कैबिनेट के खाली पद भरने को लेकर लंबे समय से कवायद जारी है। बातचीत अंतिम चरण में है और जल्द ही रिक्त पदों पर नियुक्तियां कर दी जाएंगी. वही विपक्ष का कहना है कि हर बार इसी तरह की चर्चा होती रहती है. दरअसल धामी सरकार कैबिनेट को भरना ही नहीं चाहती।
उत्तराखंड में एक बार फिर लंबे समय से कैबिनेट विस्तार का इंतजार कर रहे विधायकों में हलचल तेज़ हो गई है। सियासी गलियारों में कैबिनेट में शामिल किए जाने वाले चेहरों को लेकर चर्चाएं गरम हैं। जिन नामों को लेकर कयास लगाए जा रहे हैं उनमें विधायक खजानदास, मदन कौशिक, प्रदीप बत्रा, विनोद कंडारी, भरत चौधरी, बंशीधर भगत, राम सिंह कैड़ा आदि के नाम शामिल हैं। धामी कैबिनेट के विस्तार की चर्चाओं के बीच बीजेपी के कई विधायकों ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से मुलाकात भी कर ली है। मुख्यमंत्री धामी की विधायकों की इस मीटिंग को अहम माना जा रहा है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने खुद सोशल मीडिया के जरिए विधायकों से मुलाकात की जानकारी दी थी। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से मिलने वाले बीजेपी विधायकों में गंगोलीहाट विधायक फकीर राम टम्टा, रुद्रप्रयाग विधायक भरत सिंह चौधरी, गंगोत्री विधायक सुरेश चौहान, जागेश्वर विधायक मोहन सिंह माहरा तथा दायित्वधारी कैलाश पंत और रजनी रावत शामिल रहे थे। वहीं कांग्रेस ने इस देरी पर तंज़ कसा है। कांग्रेस प्रदेश प्रवक्ता शीशपाल सिंह बिष्ट का कहना है कि मंत्रिमंडल विस्तार में देरी का असली कारण है वर्तमान और पूर्व मुख्यमंत्री के बीच अंतरकलह। तीन साल से भी ज्यादा समय बीत गया, लेकिन कैबिनेट विस्तार नहीं हो पा रहा है। मुख्यमंत्री धामी एकला चलो की राह पर चल रहे हैं. और चुनिंदा मंत्री ही उनका आदेश मान रहे हैं। उन्होंने कहा कि प्रदेश का कामकाज पूरी तरह प्रभावित हो रहा है. प्रदेश की जनता दूर-दराज से उम्मीद लेकर मंत्री से मिलने आती हैं. लेकिन वास्तविकता यही है कि मंत्री विधानसभा में नहीं रहते. विदेश और अन्य राज्यों के दौरे में व्यस्त हैं। और इसी कारण बीजेपी के विधायकों में भी नाराज़गी बढ़ रही है. जिसका खामियाजा पार्टी को भुगतना पड़ सकता है।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी पिछले दिनों दिल्ली दौरे में हाईकमान के साथ उनकी महत्वपूर्ण बैठक भी हो चुकी है. जिसमें किस तरह से मंत्री पद भरे जाएंगे और किस तरह से यह देखा जाएगा कि किसे मंत्री बनाना है। इस बार जो मंत्री पद भरे जाएंगे उनमें जातीय समीकरण के साथ-साथ पहाड़ मैदान दोनों को संतुलित करके भरा जाएगा। सूत्रों की मानें तो जिस तरह से प्रेमचंद अग्रवाल जो कि एक बनिया समाज के साथ-साथ मैदानी क्षेत्र का भी प्रतिनिधित्व करते है। उनके इस्तीफे के बाद किसी ऐसे ही विधायक को जो मैदानी क्षेत्र के होने के साथ-साथ बनिया समाज को भी संतुलित कर सकते हैं उनको धामी मंत्रिमंडल में जगह मिल सकती है। कयास लगाए जा रहे हैं कि ऐसे बीजेपी के विधायक हरिद्वार क्षेत्र से हो सकते है। इसके साथ ही देहरादून जिले में दो विधायकों को मंत्री बनाया जा सकता है तो दूसरी तरफ रुद्रप्रयाग, चमोली और टिहरी से भी किसी एक को मंत्री बनाया जा सकता है. वैसे तो मांग उत्तरकाशी क्षेत्र से भी किसी एक विधायक को मंत्री बनाने की उठ रही है. लेकिन यह फिलहाल तय नहीं है कि उत्तरकाशी से कोई विधायक मंत्री बनेगा या नहीं। वहीं कुमाऊं क्षेत्र से भी जिसमें मैदान और पहाड़ दोनों शामिल हैं वहां से भी किसी विधायक को मंत्री बनाया जा सकता है। क्योंकि इस बार यह लगभग तय माना जा रहा है कि धामी सरकार में खाली पड़े मंत्री पदों को भर दिया जाएगा. ऐसे में कई विधायक इस जुगाड़ में लग गए हैं कि किसी तरह से उनका नंबर आ जाए। इसके लिए लगातार हाई कमान से लेकर पार्टी के शीर्ष नेताओं से भी मुलाकात के दौर शुरू हो चुके है।
उत्तराखंड की राजनीति में साल तो बदल रहे है लेकिन मंत्रिमंडल विस्तार का गणित वही का वही उलझा हुआ है। अब प्रदेश की जनता और विधायक, दोनों की निगाहें बस इस इंतेज़ार पे टिकी हैं कि कब कैबिनेट में खाली पड़े पदों की कुर्सियाँ भरी जाएँ. या इंतज़ार अभी जारी रहेगा, यह सवाल तो उठता ही है।