उत्तराखंड- हल्द्वानी में हुई हिंसा को सप्ताह भर से ज्यादा का समय बीत गया है। आठ फरवरी को हुई इस हिंसा के बाद हल्द्वानी में हालात अब तक सामान्य नहीं हो पाए हैँ। हालांकि इस घटना के बाद सरकार ने हल्द्वानी शहर के बाहरी इलाकों से तो कर्फ्यू हटा लिया है लेकिन बनभूलपुरा क्षेत्र में यह लागू रखा गया है। वहीं सरकार की ओर से लगातार प्रभावितों तक राहत सामग्री पहुंचाई जा रही है। हल्द्वानी में उपद्रव के बाद सरकार ने शांति व्यवस्था को कायम रखने के लिए फोर्स की संख्या को बढ़ाकर 1100 से 1700 कर दी गई है। अब तक जवान 16-16 घंटे ड्यूटी कर रहे थे। फोर्स आने के बाद अब जवानों को आठ-आठ घंटे ही ड्यूटी करनी होगी। सरकार ने बनभूलपुरा की सुरक्षा व्यवस्था अर्द्धसैनिक बल के हवाले कर दी है। वहीं उत्तराखंड पुलिस अब आरोपियों की तलाश में जुट गई है। पुलिस ने अबतक 36 से ज्यादा दोषियों को गिरफ्तार किया है। जबकि सीसीटीवी और अन्य की मदद से आरोपियों की तलाश की जा रही है। वहीं राज्य के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का कहना है कि दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा जिसने भी राज्य का माहौल खराब किया है। उसकी जगह सलाखों के पीछे है।
वहीं मुख्यमंत्री ने बनभूलपुरा में अतिक्रमण स्थल पर थाना खोलने की घोषणा की मुख्यमंत्री की घोषणा के 24 घंटे के बाद ही बनभूलपुरा में चौकी का उद्घाटन कर दिया गया। हल्द्वानी हिंसा में घायल महिला पुलिसकर्मियों ने चौकी का उद्घाटन किया। वहीं इस घटना को लेकर राज्य में सियासत लगातार जारी है। कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दलों ने इस मामले की न्यायिक जांच की सरकार से मांग की है। इसके साथ ही नैनीताल जिले के जिलाधिकारी और एसएसपी को तत्काल निलंबित करते हुए पद से हटाए जाने की भी मांग की है। वहीं कांग्रेस का आरोप है कि सरकार जानबूझकर एक विशेष धर्म को चुनाव से पहले टारगेट करने की कोशिश कर रही है। वहीं कांग्रेस ने जिला प्रशासन की कार्रवाई पर सवाल उठाते हुए कहा कि जब मामला कोर्ट में विचाराधीन है तो फिर ध्वस्तीकरण की कार्रवाई क्यों की गई सवाल ये है कि क्या हल्द्वानी हिंसा सुनियोजित षडयंत्र की साजिश थी? वहीं सत्तापक्ष का कहना है कि कांग्रेस के आरोपों में कोई सच्चाई नहीं है, यह सिर्फ चुनावी है। वहीं देहरादून शहर काजी मुहम्मद अहमद कासमी का आरोप है कि सरकार उत्पीड़न की कार्रवाई कर उनसे संविधान का पालन करने की बात कह रही है जबकि खुद संविधान का उल्लंघन कर रही है।
कुल मिलाकर हल्द्वानी हिंसा को भले ही सप्ताह भर से ज्यादा का समय हो गया हो लेकिन हालात अब तक सामान्य नहीं हुए हैं। वहीं हल्द्वानी में हुई हिंसा अपने पीछे कई सवाल भी खड़े कर गई है। सवाल ये है कि आखिर किसने उत्तराखंड के माथे पर ये हिंसा का बदनुमा दाग लगाया है। सवाल ये है कि आखिर क्यों शासन प्रशासन ने पहले से सुरक्षा व्यवस्था के पुख्ता इंतजाम नहीं किए। सवाल ये है कि आखिर जब ये मामला कोर्ट में विचाराधीन है ऐसे में सुनवाई से पहले ही ध्वस्तीकरण की कार्रवाई क्यों की गई…सवाल ये भी कि आखिर इस हिंसा की आग के पीछे सियासी रोटियां कौन सेक रहा है।