कानपुर, होली भारत का वो त्यौहार जो सभी लोगों को बड़ा खास लगता है. इस दिन घर के सभी छोटे और बड़े लोग मिलकर रंगों से होली खेलते नजर आते है. वैसे हमारे देश में कई शहरों की होली पूरी दुनिया में फैमस है. जैसे की हम बात करें मथुरा की लथमार होली, वृंदावन की फूलों की होली और बरसाना की लड्डू और छड़ीमार होली. लेकिन इन सबके अलावा भारत के उत्तर प्रदेश के कानपुर में सात दिनों तक होली खेली जाती है. जी हां सही सुना आप ने कानपुर वालों को होली इतनी पसंद है कि ये पूरे हफ्ते होली खेलते नजर आते है. लेकिन अब सवाल उठता है कि कानपुर में सात होली क्यों खेली जाती है. तो चलिए जानते है इसके पीछे की वजह को.
कानपुर सात दिनों तक होली आज से नही मनाई जा रही है. इसकी शुरूआत 82 साल पहले साल 1942 में हुई थी. तब से लगातार कानपुर शहर में होली सात दिनों तक मनायी जाती है. इसके पीछे एक कहानी जो यहां रहने वाले लोग बताते है. 1942 से पहले यहां भी होली पूरे देश की तरह एक दिन खेली जाती थी. लेकिन फिर इस होली कुछ ऐसा हुआ की यहां के लोग सात दिनों तक होली खेलने लगे.
1942 से शुरू हुआ था गंगा मेला
साल 1942 में भारत में अंग्रेजों का शासन था. जिसके खिलाफ पूरे देश के युवा स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ रहे थे. इस क्रांति से कानपुर के युवा भी अछूते नहीं थे. साल 1942 में अंग्रोजों शासकों ने कानपुर शहर में ऐलान कराया कि कोई भी शहरवासी होली नही खेलेगा. फिर क्या था युवाओं ने इस ऐलान का मुंह तोड़ जवाब दिया और हटिया के रज्जन बाबू पार्क में पहले तिरंगा फहराया। उसके बाद जम कर होली खेलने लगें। होली खेलने की खबर वहां के अंग्रेज सैनिकों तक जा पहुंची। जिसके बाद गुस्साए ऑफिसर ने घोड़ों में सवार सैनिकों को भेजा और वहां होली खेल रहे युवकों को गिरफ्तार कर जेल में बंद कर दिया। ये खबर आग की तरह तेजी से पूरे शहर में फैल गई। जिसके कानपुर जनता ने इस गिरफ्तारी का जोरदार विरोध किया और ये तय कर की जब तक युवाओं को पुलिस जेल से रिहा नही करती है, तब तक बाजार पूरी तरह से बंद रहेगी । हटिया से शुरू हुआ ये आंदोलन धीरे-धीरे पूरे शहर में फैल गया। देखते-देखते आंदोलन को साहित्यकार, कारोबारी, मजदूरों का भी साथ मिलने लगा। पूरे शहर के साथ आस पास के गांव के बाजार बंद कर दिए गए। लोगों ने अपने चहेरे में लगे रंग को साफ नही किया। लोग सुबह उठते ही रज्जन बाबू पार्क में आ कर ब्रिटिश सरकार के खिलाफ धरने में बैठ जाते और शाम के 5 बजे अपने घर वापस चले जाते थे। इस आंदोलन की गूंज अब दिल्ली में भी सुनाई देने लगी। जिसके बाद नेहरू और गांधी समेत पूरी कांग्रेस इस आंदोलन के समर्थन में आ गई।
ब्रिटिश सरकार के लिए अब ये आंदोलन बड़ी समस्या बन गया। आंदोलन के चलते मजदूरों ने फैक्ट्री में काम करने से मना कर दिया। जिसकी वजह से फैक्ट्री के साथ पूरे शहर में कारोबार पूरी तरह से ठप हो गया। आखिरी में ब्रिटिश सरकार को जनता के सामने झुकना पड़ा और युवाओं को जेल से रिहा करना पड़ा। जिसके बाद लोगो ने जेल से लेकर के हटिया तक जमकर होली खेली।
जिस दिन युवाओं को जेल से छोड़ा गया था। उस दिन अनुराधा नक्षत्र था। जिसके बाद से कानपुर में हर अनुराधा नक्षत्र के दिन गंगा मेला मनाया जाने लगा।
हर साल कानपुर के हटिया से भैसों की टोली का मेला निकाला जाता है। जिसकी शुरुआत हटिया से की जाती है और इसका समापन सरसैया घाट में होता है। इस मेले में लोग बड़ी उत्साह के साथ रंग खेलते है एक दूसरे से मिलते है। कानपुर होली के दिन लोग रंग खेले या ना खेले पर गंगा मेला को रंग जरूर खेलते है।