बांदा में फिर मंडराया बाढ़ का खतरा, तटबंध को छलनी कर रहे हैं खनन माफिया, प्रशासन बेपरवाह,

डिजिटल डेस्क- बांदा और बाढ़ का रिश्ता पुराना है। बरसात के मौसम में बांदा के लोग कभी चैन से नहीं सो पाते थे। केन नदी का बाढ़ का पानी कब उनके घरों में घुस जाए, यह डर हमेशा बना रहता था। 1992 और 2005 की बाढ़ की याद आज भी लोगों के रोंगटे खड़े कर देती है, जब भयावह जल प्रलय ने भारी जन-धन हानि मचाई थी। बांदा शहर को बाढ़ से बचाने के लिए बसपा सरकार में मायावती के करीबी और तत्कालीन मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दीकी ने केन नदी और शहर के बीच लगभग दो किलोमीटर लंबा तटबंध बनवाया था। इस तटबंध पर पत्थरों की पिचिंग करवाई गई थी, ताकि बाढ़ का पानी शहर में न घुसे और जान-माल की हानि रोकी जा सके।

पिचिंग के नीचे लगातार चालू है अवैध खनन

इस तटबंध की वजह से पिछले 15 साल से बांदा के लोग बाढ़ के डर से मुक्त थे। लेकिन अब बालू और मिट्टी माफियाओं ने अपने निजी स्वार्थ के लिए तटबंध के किनारे पिचिंग के नीचे अवैध खनन शुरू कर दिया है। इससे बाढ़ के दौरान पिचिंग के साथ-साथ तटबंध टूटने का गंभीर खतरा मंडरा रहा है।

केन नदी के किनारे प्राकृतिक रूप से बने मिट्टी के ऊंचे-नीचे टीले बाढ़ के पानी को रोकने में अहम भूमिका निभाते थे। लेकिन स्वार्थी तत्वों ने इन टीलों को खोदकर मिट्टी बेच दी, जिससे अब बाढ़ का पानी सीधे पिचिंग पर टकरा सकता है। प्रशासन और सिंचाई विभाग की लापरवाही ने तटबंध को बर्बादी की कगार पर ला खड़ा किया है। नियमों के मुताबिक, तटबंध के 75 मीटर के दायरे में किसी भी तरह का खनन प्रतिबंधित है, फिर भी पिचिंग के ठीक नीचे गहरी खुदाई की गई।

तटबंध के टूटने से हो सकता है बड़ा हादसा

बालू और मिट्टी चोरों ने पिचिंग की दीवार को कई जगह तोड़ दिया और ट्रैक्टर, मोटरसाइकिल, गधों से बालू और मिट्टी ढोने के लिए रास्ते बना लिए। 26 जून को पैलानी तहसील में जिला प्रशासन ने बाढ़ आपदा से निपटने के लिए मॉक ड्रिल आयोजित की। इस दौरान सभी विभागों के अधिकारियों ने बाढ़ और उससे होने वाली समस्याओं से निपटने की तैयारियों का जायजा लिया। लेकिन विडंबना यह है कि जिला मुख्यालय के नाक के नीचे तटबंध की दुर्दशा पर किसी ने ध्यान नहीं दिया। अगर तटबंध टूटता है, तो बांदा शहर को भयावह जल प्रलय का सामना करना पड़ सकता है, जिसमें भारी जन-धन हानि की आशंका है।