KNEWS DESK- चंबल के बीहड़ों में आतंक का पर्याय रही कुख्यात डकैत कुसुमा नाइन का लखनऊ केजीएमयू में इलाज के दौरान निधन हो गया। वह 20 वर्षों से आजीवन कारावास की सजा काट रही थीं और लंबे समय से टीबी (क्षय रोग) से ग्रसित थीं। आत्मसमर्पण के बाद जेल में रहते हुए उन्होंने आध्यात्मिक जीवन अपना लिया था।
यूपी और एमपी में कभी आतंक का पर्याय रही पूर्व डकैत कुसुमा नाइन का शनिवार को लखनऊ के केजीएमयू में टीबी रोग के कारण निधन हो गया। कुसुमा उम्रकैद की सजा काट रही थी और पिछले 20 साल से इटावा जेल में बंद थी। इटावा जिला जेल अधीक्षक कुलदीप सिंह ने बताया कि पिछले दो महीनों से वह टीबी से पीड़ित थी। उसकी हालत बिगड़ने पर 1 फरवरी को उसे इटावा के डॉ. भीमराव अंबेडकर सरकारी अस्पताल में भर्ती कराया गया था। वहां से उसे सैफई मेडिकल यूनिवर्सिटी रेफर किया गया, जहां से उसे लखनऊ के केजीएमयू में शिफ्ट किया गया।
15 मल्लाहों को लाइन से खड़ा कर गोली के कारण आई चर्चा में-
वर्ष 1996 में इटावा जिले के भरेह इलाके में कुसुमा नाइन ने संतोष और राजबहादुर नाम के मल्लाहों की आंखें निकाल ली थीं और उन्हें जिन्दा छोड़ दिया था। कुसुमा की क्रूरता के कारण डकैत उसे यमुना-चंबल की शेरनी कह कर बुलाने लगे थे। कुसुमा जिन लोगों का अपहरण करती उनके साथ बहुत बुरा बर्ताव करती थी। चूल्हे में लगी जलती हुई लकड़ी को निकाल कर उनके बदन को जलाती थी। जंजीरों से बांधकर उन्हें हंटर से मारा करती थी।
1964 में जालौन जिले में हुआ था जन्म-
कुसुमा नाइन का जन्म साल 1964 में उत्तर प्रदेश के जालौन जिले के टिकरी गांव में हुआ था। कुसुमा ने स्कूल जाना शुरू किया और कुछ सालों बाद ही उसे एक लड़के से प्यार हो गया। जब कुसुमा थोड़ी बड़ी हुई तो वह अपने प्यार यानी माधव मल्लाह के साथ भाग गई। लेकिन पिता की शिकायत पर पुलिस ने उन्हें दिल्ली में पकड़ लिया। फिर माधव मल्लाह पर डकैती का केस लगा और कुसुमा के पिता ने उसकी शादी केदार नाई से कर दी।
बता दें कि माधव मल्लाह चंबल के कुख्यात डकैत का साथी था। शादी की खबर पाने के कुछ माह बाद माधव गैंग के साथ कुसुमा के ससुराल पहुंचा और उसे अगवा कर लिया। माधव, उसी विक्रम मल्लाह का साथी था; जिसके साथ फूलन देवी का नाम जुड़ता था।
विक्रम मल्लाह की गैंग में रहने के दौरान ही उसे फूलन के जानी दुश्मन लालाराम को मारने का काम दिया गया। लेकिन फूलन से अनबन के कारण बाद में कुसुमा नाइन, लालाराम के साथ ही जुड़ गई। फिर विक्रम मल्लाह को ही मरवा देती है। इसी कुसुमा नाइन और लालाराम ने बाद में सीमा परिहार का अपहरण किया था, जो कि कुख्यात डकैत के रूप में उभरकर सामने आई थी। साल 1981 में फूलन देवी बेहमई कांड को अंजाम दिया था।
बेहमई कांड के बाद फूलन ने सरेंडर कर दिया था। इसके बाद बीहड़ में कुसुमा नाइन का दबदबा तो बढ़ा ही बल्कि लूट, डकैती और हत्या की दर्जनों घटनाओं को अंजाम भी दिया। वह अपनी क्रूरता के लिए भी कुख्यात थी।

भाजपा उम्मीदवार के पक्ष में माँगा था वोट-
वर्ष 1998 में कुसमा नाइन और फक्कड़ डाकू ने इटावा संसदीय सीट की भाजपा उम्मीदवार सुखदा मिश्रा के पक्ष में व्यापक प्रचार-प्रसार कर चम्बल इलाके के लोगों से वोट मांगे नतीजे के रूप में सुखदा की जीत हो गई। कानपुर रेंज के तत्कालीन पुलिस उप-महानिरीक्षक (डीआईजी) दिलीप त्रिवेदी डाकू फक्कड़ और कुसमा नाइन से उसके अड्डे पर समर्पण के इरादे से मिलने के लिए भी गए थे।
2004 में कुसुमा और उसकी गैंग ने खुद कर दिया सरेंडर- कुसुमा नाइन कितना कुख्यात थी इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि 200 मामले उत्तर प्रदेश में व 35 मामले मध्य प्रदेश में थे, जिनमें लूट, हत्या, डकैती, अपहरण आदि गंभीर मामले शामिल हैं। यूपी पुलिस ने कुसुमा नाइन पर 20 हजार व एमपी पुलिस ने 15 हजार का इनाम घोषित कर रखा था। कुसुमा नाइन ने वर्ष 2004 में आत्मसमर्पण कर दिया। इनके साथ इनके गैंग के फक्कड़ बाबा, रामचन्द्र बाजपेई, संतोष दुबे, कमलेश बाजपेई, मनोज मिश्रा व घूरे लाल यादव ने भी आत्मसमर्पण कर दिया था।