मैनपुरी बनेगा यदुवंशियों का अखाड़ा? मुलायम नहीं उतरे तो शिवपाल यादव लड़ेंगे लोकसभा चुनाव’
2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव में कौन कहां से चुनाव लड़ेगा, इसको लेकर अभी से मंत्रणा शुरू हो गई है। राजनीतिक गलियारों में भी सीटों के बंटवारे को लेकर अभी से खुसुर फुसर होने लगी है। हालांकि सभी पार्टियों ने अपने-अपने क्षेत्रों में पार्टी की पकड़ को और मजबूत बनाने के लिए धार देनी भी शुरू कर दी है। वर्षों से सपा के खेमे में रही आजमगढ़ सीट पर अब भाजपा का कब्जा है। अखिलेश से लोकसभा सीट छिनने के बाद कुछ राजनीतिक दलों की नजरें उनके पिता मुलायम सिंह यादव की सीट मैनपुरी पर टिक गई हैं। वर्षों से सपा खेमे के कब्जे में इस सीट पर अब शिवपाल यादव ने भी ताल ठोंकने के संकेत दिए हैं। प्रसपा अध्यक्ष शिवपाल यादव ने मुलायम सिंह यादव के चुनाव न लड़ पाने की सूरत में खुद मैनपुरी लोकसभा सीट से मैदान में आने की बात कही है।
सपा से चुनावी तालमेल प्रसपा की थी भूल, भाजपा से समझौते को लेकर क्या है शिवपाल का इशारा?
शिवपाल से पूछा गया कि इस बात की चर्चा है कि अगर मुलायम सिंह स्वास्थ्य कारणों से मैनपुरी से नहीं लड़ेंगे तो आप भाजपा के सहयोग से मैनपुरी लोकसभा चुनाव लड़ सकते हैं, शिवपाल ने कहा कि वह चाहते हैं कि नेताजी स्वस्थ रहें और पुन: चुनाव लड़े और जीतें। यदि वह नहीं लड़ना चाहते हैं तो देखेंगे कि तब क्या हालात बनते हैं उसी अनुसार निर्णय लेंगे। मैनपुरी में मुलायम सिंह यादव वर्तमान में सांसद हैं। अगर मुलायम सिंह यादव 2024 का लोकसभा चुनाव नहीं लड़ें तो पूरी संभावना है कि शिवपाल यहां से चुनाव लड़ जाएं। बताया जा रहा है कि तब भाजपा उन्हें समर्थन दे सकती है। ऐसे में सपा व प्रसपा इस यादव बहुल सीट पर आमने सामने होगी।
सपा से बेहतर संबंध के लिए हमने पांच साल हमने गंवा दिए
शिवपाल ने कहा कि अखिलेश के साथ उनका अनुभव बहुत कड़वा रहा। हमें कई बार धोखा मिला। हमने सपा से बेहतर संबंधों की उम्मीद में पांच साल गवां दिए। इस विधानसभा चुनाव में एक सीट पर मान जाना मेरी बड़ी भूल थी लेकिन हमारी मजबूरी थी। हमारा सिंबल जब्त हो चुका था। हम अब अखिलेश के बारे में बात नहीं करना चाहते। पर एक बात तय है कि अगर उन्होंने हमारी बात मानी होती तो आज सपा सरकार चल रही होती।
उन्होंने हमें स्टार प्रचारक तक नहीं बनाया। अगर चुनावी दौरे के लिए हेलीकाप्टर दिया होता तो हर सीट पर सपा को 20000 वोट अतिरिक्त दिला दिया होता। अब अपनी पार्टी संगठन मजबूत कर रहे हैं, यादव समाज को एकजुट करने का काम भी यदुकुल मिशन के जरिए चलता रहेगा। दोनों काम साथ-साथ होंगे। एक सवाल पर शिवपाल यादव ने कहा कि डीपी यादव सियासी तौर पर भी उनके साथ आ गए हैं। लोकसभा चुनाव से पहले हम लोग सभी सीटों पर निकाय चुनाव लड़ेंगे। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में 48 सीट (कोई सीट नहीं जीती)पर लड़े थे। इस बार उससे ज्यादा ही लड़ेंगे।
8% यादव वोट के लिए आमने सामने चाचा-भतीजा,भाजपा भी बूथ लेवल पर यादवों को पार्टी से जोड़ने में जुटी
चाचा और भाजपा के चक्रव्यूह में फंसे अखिलेश यादव ?
मुलायम सिंह यादव के अस्वस्थ होने से अकेले पड़े अखिलेश यादव ?
यूपी के 52% ओबीसी वोट बैंक में 8% यादव हैं। सपा के इस कोर वोट बैंक में 2024 में भाजपा सेंध लगाने की तैयारी कर रही है। क्योंकि, इनका यूपी की 17 लोकसभा सीट पर 40% तक असर रहता है। यही वजह है कि भाजपा बूथ लेवल पर यादवों को पार्टी से जोड़ रही है।
वहीं, अखिलेश के चाचा शिवपाल भी यादवों को अपने पाले में करने के लिए सड़क पर आ चुके हैं। उन्होंने गुरुवार को लखनऊ से यदुकुल जन जागरण अभियान शुरू किया है। इसका दायरा यूपी के अलावा अन्य राज्यों में भी रहेगा। इन 8% वोटर के लिए चाचा शिवपाल और भतीजे अखिलेश यादव में खींचतान तय मानी जा रही है।
भाजपा और सपा की यादव वोटर्स को साधने की तैयारियां…
अखिलेश यादव : 5 चुनावों में 90% यादव वोट हासिल किए
सपा प्रमुख अखिलेश की यादव वोट बैंक पर सबसे ज्यादा पकड़ है। दो दशक में यूपी के चुनाव में यादव वोट बैंक सपा के साथ ही रहा। मुलायम सिंह यादव के बाद अखिलेश का साथ यादवों ने नहीं छोड़ा है। बीते 5 लोकसभा और विधानसभा चुनावों में 90% यादव वोट बैंक ने सपा को एकतरफा वोट किया।
अखिलेश 2022 के विधानसभा चुनाव में खुलकर जातिगत जनगणना की अपील करते हुए मंच पर देखे गए। पिछड़े जाति के वोट बैंक को साधने के लिए अखिलेश ने जातिवार जनगणना कराने की मांग की है।
भाजपा का मिशन यादव: यादव सम्मान सम्मेलन से लेकर कैबिनेट में भी जगह दी
25 जुलाई को चौधरी हरमोहन सिंह यादव की 10वीं पुण्यतिथि के सम्मान में आयोजित कार्यक्रम में पीएम नरेंद्र मोदी वर्चुअल जुड़े। भाजपा इंदिरा गांधी प्रतिष्ठान में यादव समाज का सम्मेलन भी करवा चुकी है। जौनपुर में सबसे ज्यादा यादव वोट बैंक है। वहां से विधायक बनने वाले गिरीश यादव को योगी कैबिनेट में जिम्मेदारी दी गई।
इसके अलावा भाजपा के वरिष्ठ नेता अक्सर मुलायम सिंह यादव से मिलते हुए देखे जाते हैं। भाजपा मुलायम सिंह की बहू अपर्णा सिंह यादव और मुलायम सिंह के साढू प्रमोद गुप्ता समेत उनके परिवार के कई सदस्यों को भाजपा ज्वाइन करा चुकी है।
भाजपा 2017 के बाद से ही यादव वोट को साधने में जुटी है। इटावा के हरनाथ यादव को राज्यसभा सदस्य बनाया। सुभाष यदुवंश को पहले भाजपा युवा मोर्चा का प्रदेश अध्यक्ष बनाया और अब प्रदेश संगठन में जगह दी है। अभी हाल में जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में भाजपा के टिकट पर यादव समाज के तीन अध्यक्ष बनाने में सफल रही है।
लोकसभा चुनाव शिवपाल मैनपुरी से लड़ सकते हैं
शिवपाल ने पूर्व मंत्री डी पी यादव के साथ 1 सितंबर को यदुकुल जन जागरण अभियान की शुरुआत की। ताकि, यूपी समेत देश के अन्य राज्यों में यादवों को एकजुट किया जा सके। शिवपाल आए दिन बयान देते हुए देखे जाते हैं। अगर, अखिलेश ने मेरी बात मानी होती मुझे जिम्मेदारी दी होती तो आज वो सत्ता में होते।
शिवपाल यादव 2022 का चुनाव अखिलेश के साथ लड़े, लेकिन उन्हें सिर्फ 1 सीट ही मिली है। शिवपाल ने 2022 के विधानसभा चुनाव के परिणाम के बाद अपनी राह फिर से अखिलेश से अलग कर ली है। 2024 के चुनाव में शिवपाल यादव बड़ी भूमिका में नजर आ सकते हैं।
शिवपाल, मुलायम सिंह की लोकसभा सीट मैनपुरी से चुनाव तक लड़ सकते हैं। अपनी पारिवारिक सीट मानी जाने वाली जसवंत नगर विधानसभा से बेटे आदित्य यादव को विधानसभा का उप-चुनाव लड़वा सकते है।
यूपी की 50 विधानसभा सीटें ऐसी है जो यादव बाहुल्य है
प्रदेश में इटावा, एटा, फर्रुखाबाद, मैनपुरी, फिरोजबाद, कन्नौज, बदायूं, आजमगढ़, फैजाबाद, बलिया, संतकबीर नगर, जौनपुर और कुशीनगर जिले को यादव बाहुल्य माना जाता है। इन जिलों की करीब 50 विधानसभा सीटें हैं, जहां यादव वोटर अहम हैं।
एक्सपर्ट मानते हैं कि मुलायम के बाद शिवपाल यादवों में ज्यादा लोकप्रिय
पॉलिटिकल एक्सपर्ट मानते हैं कि सपा शुरू से ही जाति आधारित राजनीति करती रही है। अगर सपा से यादव वोट खिसक गए तो सत्ता में वापसी मुश्किल हो सकती है। हालांकि, मुलायम सिंह एक ऐसे नेता थे। जिन्हें यादव वोटर अपने अभिभावक के तौर पर देखते थे। वह योजनाएं बनाने और अन्य जगहों पर यादवों का ख्याल रखते थे।
इसके बाद अगर किसी का नाम आता है तो वह है शिवपाल का। मुलायम और शिवपाल अपने वोटरों की चिंता करते थे। ये दोनों जमीनी नेता माने जाते हैं। शिवपाल अपनी पार्टी बना चुके हैं और मुलायम सिंह सेहत के चलते सक्रिय नहीं हैं। ऐसे में सपा के कोर यादव वोटों को बीजेपी अपने साथ जोड़ने के मिशन पर लग गई है।
यूपी में पांच बार यादव सीएम बने
यूपी में यादव समाज की सियासी ताकत ऐसी है, जिसने ठाकुर और ब्राह्मणों के नेतृत्व को यूपी की सत्ता से न सिर्फ दूर किया, बल्कि मंडल आंदोलन के बाद मायावती को छोड़ दें तो सत्ता में लगातार बने भी रहे हैं। राम नरेश यादव से लेकर मुलायम सिंह और अखिलेश यादव तक तीन यादव पांच बार यूपी के मुख्यमंत्री बने। हालांकि, 2014 के बाद से यादव राजनीति को झटका भी लगा है और सत्ता के साथ-साथ राजनीति पर भी संकट खड़ा हुआ है।